श्रीनगर: हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि के बिड़ला परिसर में चल रहे अंतर महाविद्यालय सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक प्रतियोगिताओं का समापन धूमधाम से हुआ. अंतिम दिन नाटक तथा लोकनृत्यों की प्रस्तुति ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया. समापन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि एसएसबी श्रीनगर के उप महानिरीक्षक सुभाष चंद नेगी ने छात्र-छात्राओं को सम्बोधित किया.
नेगी ने कहा कि इस तरह की प्रतियोगिताओं से बच्चों के व्यक्तित्व में निखार आता है. वहीं प्रति कुलपति प्रो आरसी भट्ट ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और कहा कि छात्र-जीवन में शैक्षणिक गतिविधियों के साथ सांस्कृतिक क्रिया-कलापों में भी प्रतिभागिता आवश्यक है. वहीं इस अवसर पर अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रोफेसर महावीर सिंह नेगी ने सफल आयोजन के लिए विभिन्न आयोजन समितियों, संकायध्यक्षों, विभागाध्यक्षों, कर्मचारियों और छात्र संघ पदाधिकारियों का धन्यवाद दिया.
दो दिन तक चली अंतर महाविद्यालय प्रतियोगिताओं में बिड़ला परिसर समेत टिहरी, पौड़ी परिसर तथा डीएवी और डीवीएस परिसर ने भाग लिया. इसमें शैक्षणिक तथा सांस्कृतिक दो श्रेणियों में अलग अलग 17 प्रतियोगिताएं आयोजित हुईं. आयोजित सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं में ओवर ऑल चैंपियन बिड़ला परिसर श्रीनगर, द्वितीय स्थान डीबीएस देहरादून, तृतीय स्थान पर एसआरटी परिसर टिहरी रहा. वहीं शैक्षणिक प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान बिड़ला परिसर श्रीनगर ने, द्वितीय स्थान एसआरटी टिहरी तथा तृतीय स्थान डीबीएस देहरादून ने प्राप्त किया.
देवप्रयाग में संस्कृत शिविर: उधर देवप्रयाग में संस्कृत भारती और व्याकरण विभाग के तत्वावधान में शिविर आयोजित किया गया है. शिविर में बच्चों को वस्तुओं के नाम, पहचान, उच्चारण के साथ ही गायन का अभ्यास भी कराया जाता है. प्रतिभा प्रदर्शन सत्र में छात्र लोकगीतों को संस्कृत में प्रस्तुत करते हैं. लोक के रंगों और हमारी प्राचीन भाषा का यह संगम रुचिपरक होता है. सीखने के क्षेत्र में यह अभिनव प्रयोग है, क्योंकि लोकसंगीत का आत्मा और मन से गहरा नाता होता है और मनोरंजन के साथ सीखना अधिक आसान होता है.
बच्चे संस्कृत में अनूदित गीतों पर भारत के विभिन्न क्षेत्रों के लोकनृत्य करते हैं. क्या बिहू, क्या गरबा, क्या झुमैलो, क्या नाटी और क्या चौंफला इन सबसे अलंकृत संस्कृत में गाया जाता है. दस दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर के संयोजक व्याकरण प्राध्यापक डॉ सूर्यमणि भंडारी बताते हैं कि बच्चों की प्रतिभा निखारने का यह बेहतरीन तरीका है. संस्कृत को लोक से जोड़कर बच्चे उसके प्रति अधिक आकर्षित हो रहे हैं. डॉ भंडारी के अनुसार संस्कृत से सभी भारतीय भाषाएं उद्भूत हैं, इसलिए संस्कृत के साथ भारतीय लोकनृत्यों का श्रेष्ठ समन्वय हो रहा है.
शिविर में संस्कृत बोलचाल का प्रशिक्षण दे रहीं डॉ वैजयंती माला बताती हैं कि बच्चों को शाम को संस्कृत में ही गेम भी खिलवाये जाते हैं. क्योंकि बच्चों की खेल में रुचि होती है, इसलिए वे खेलों के माध्यम से संस्कृत को भी सहजता से और शीघ्र सीख लेते हैं.