कुचामनसिटी. इन दिनों प्रदेश में गणगौर पर्व की उमंग देखने को मिल रही है. जहां घेवर की खुशबू बाजार में महक रही है, तो कई स्थानों पर गणगौर की सवारी निकालने की भी शुरुआत हो चुकी है. कुचामन सिटी में भी गणगौर की सवारी निकाली गई. जैसे-जैसे गणगौर पर्व नजदीक आ रहा है, महिलाओं में उत्साह बढ़ता जा रहा है.
बता दें कि ईसर गणगौर का पर्व चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है. इसी के तहत आज मंगलवार को कुचामनसिटी के कई इलाकों में ईसर गणगौर की सवारी निकाली गई. इस दौरान महिलाओं की भीड़ उमड़ी. महिलाएं सोलह श्रृंगार से युक्त परिधान में नाचती-गाती नजर आईं. राजस्थानी गीतों पर हर उम्र की महिलाएं जमकर थिरकी.
विवाहिता मिंटू गौड़ बताती है कि होली के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से नवविवाहिताएं 16 दिन तक प्रतिदिन गणगौर पूजती है. धार्मिक रूप की बात करें तो पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर माता व भगवान शंकर के अवतार के रूप में ईसर की पूजा की जाती है. प्राचीन समय में पार्वती ने शंकर भगवान को पति रूप में पाने के लिए व्रत और तपस्या की थी. भगवान शंकर तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान मांगने के लिए कहा. इस पर पार्वती ने उन्हें ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा की. पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और पार्वती की शिव से शादी हो गई. तभी से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए ईसर और गणगौर की पूजा करती हैं. सुहागिन औरतें पति की लम्बी आयु के लिए यह पूजा करती हैं.
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गणगौर पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि से आरम्भ की जाती है. विवाहिता रेखा शर्मा ने बताया कि इन दिनों कुचामन शहर और ग्रामीण अंचल में गणगौर के गीतों के बोल गूंज रहे हैं. गणगौर पर्व मनाने का ये क्रम पूरे सोलह दिन दोनों तक चलता रहता है. राजस्थान में कहावत है कि तीज त्योहारा बावड़ी, ले डूबी गणगौर यानी सावन की तीज से त्योहारों का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही त्योहारों पर चार महीने का विराम लग जाता है. इसलिए इस त्योहार को उमंग और उल्लास से मनाया जाता है.