भरतपुर: एक मंदिर में एक देवी-देवता की एक ही प्रतिमा देखने को मिलती है, लेकिन भरतपुर में 300 वर्ष प्राचीन एक ऐसा मंदिर है, जिसमें गणेश जी की दो प्रतिमाएं विराजमान हैं. इतना ही नहीं, रियासत काल में इस मंदिर में गणेश जी और शिव जी के अभिषेक के लिए हाथी गंगाजल लेकर पहुंचता था. वहीं, मान्यता है कि भरतपुर के राजा युद्ध में जाने से पहले इस मंदिर में आकर दोनों गजानन से आशीर्वाद लेकर जाते और हमेशा जीतकर लौटते. गणेश चतुर्थी के अवसर जानते हैं भरतपुर के इस प्राचीन गणेश मंदिर की महिमा...
इसलिए कराई स्थापना : शहर के चौबुर्जा पर लोहागढ़ किले के द्वार के आगे स्थित गणेश मंदिर के पुजारी संतोष पंडा ने बताया कि मंदिर की स्थापना करीब 300 वर्ष पूर्व महाराज सूरजमल ने कराई थी. बताया जाता है कि उस समय किले के बाहर घना जंगल था, जब भी महाराज किले के गेट से निकलते तो जंगली जानवर नजर आते थे. इसलिए महाराज सूरजमल ने किले के द्वार के सम्मुख गणेश जी का मंदिर स्थापित कराया, ताकि किले से निकलते ही भगवान के दर्शन हो.
एक ही मंदिर में दो प्रतिमा : पुजारी संतोष पंडा ने बताया कि सामान्यतौर पर एक मंदिर में एक भगवान जी की एक ही प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की मान्यता है. मान्यता ये भी है कि यदि एक ही मंदिर में एक देवी-देवता की दो प्रतिमा स्थापित करा दी तो एक प्रतिमा स्वतः खंडित हो जाएगी, लेकिन चौबुर्जा गणेश मंदिर में दोनों प्रतिमा सही सलामत हैं और इनका नियमित पूजन भी होता है.
पुजारी संतोष पंडा ने बताया कि रियासत काल में दो अलग-अलग मंदिरों के लिए गणेश जी की दो प्रतिमाएं लाई गईं थीं. चौबुर्जा वाले मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की जा रही थी, तभी मुगलों के आक्रमण की सूचना मिली. उन हालातों को देखते हुए उसी समय दोनों प्रतिमाएं इसी मंदिर में स्थापित करा दीं. तब से इस एक ही मंदिर में गजानन की दो प्रतिमाओं की पूजा की जाती है.
हाथी लेकर आता था गंगाजल : पुजारी संतोष पंडा ने बताया कि रियासत काल में सुबह की आरती के वक्त महल का हाथी महल से बाल्टी में गंगाजल लेकर मंदिर पहुंचता था. पुजारी उस गंगाजल से गणेश जी और शिवजी का अभिषेक करते. उसके बाद उस बाल्टी को प्रसाद से भर देते, जिसे हाथी महल लेकर लौट जाता था.
कभी युद्ध नहीं हारे : पुजारी संतोष ने बताया कि रियासत काल में युद्ध पर जाने से पहले महाराज अपनी सेना के साथ मंदिर पहुंचकर गणेश जी के दर्शन करते और आशीर्वाद लेकर तब युद्ध लड़ने जाते. भरतपुर की सेना हमेशा युद्ध जीतकर ही लौटती. आज भी शहरवासी यहां हर दिन पूजा और दर्शन करने पहुंचते हैं. शहरवासियों में आज भी इस मंदिर के प्रति गहरी आस्था है.