बाड़मेर: शहर के रातानाडा में पहाड़ी पर स्थित गणेश मंदिर लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र है. यह सिद्धि विनायक मंदिर शहर के प्राचीन मंदिरों में से एक है. विक्रम संवत 2002 भाद्रपद सुदी गणेश चतुर्थी के दिन ही मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी. स्थापना के बाद दो बार मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया. पहली बार साल 1991 और दूसरी बार 2008 में मंदिर को भव्य रूप दिया गया.
हस्तनिर्मित मिट्टी की प्रतिमा स्थापित : मंदिर पुजारी परिवार की सदस्य मायादेवी ने बताया कि यह शहर का सबसे पुराना गणेश मंदिर है. यह मंदिर 80 साल पुराना है. इस मंदिर में मिट्टी से बनाई गई भगवान सिद्धि विनायक की प्रतिमा स्थापित है. इस मूर्ति पर घी, सिन्दूर व वर्क लगाकर श्रृंगार किया जाता है.
श्रद्धालुओं की पूरी होती है मनोकामना : उन्होंने बताया कि जब मन्दिर बनाया गया था तब यहां पहाड़ियां और रेत के धोरे थे. एक पगडंडी से चलते हुए आए उनके ससुर मंगजी महाराज ने यहां आकर गणेश जी की पूजा अर्चना की. उन्होंने बताया कि शुरुआत में मन्दिर छोटा सा था, लेकिन समय के साथ मंदिर को भव्य रूप दिया गया. स्थापना के बाद से ही उनका ही परिवार यहां नियमित रूप से पूजा करता है.
मंदिर की स्थापना के पीछे की कहानी : मंदिर पुजारी की पोती मीना ने बताया कि उनके दादा मंगजी महाराज के दोस्त रामचंद्र गार्ड के कोई संतान नहीं थी. ऐसे में दादाजी ने उन्हें सलाह दी कि गणेशजी का मंदिर बनाओ. इसके बाद उन्होंने मंदिर बनाया. मन्दिर में हस्तनिर्मित मिट्टी की प्रतिमा स्थापित की गई. उन्होंने बताया कि इसमें दादा मगजी, रामचंद्र गार्ड, ईश्वरलाल अवस्थी, दामोदर अवस्थी, मिश्रीलाल व्यास, कालूराम, श्रीकिशन दवे व मदनलाल सहित कुछ अन्य प्रबुद्धजन मंदिर प्रतिष्ठा कार्य में प्रमुख रूप से शामिल रहे थे. उन्होंने बताया कि मंदिर बनने के कुछ साल बाद रामचंद्र गार्ड की मनोकामना पूरी हुई और उनके दो बेटियां हुई. मंदिर बनने के बाद से ही लोगों की आस्था इससे जुड़ी है.
आस्था का बड़ा केंद्र : श्रद्धालु विष्णुदत्त दवे बताते है कि वह पिछले 13 सालों से मंदिर में आ रहे हैं. यह बाड़मेर का सबसे पुराना गणेश मंदिर है. सच्चे मन से मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है. यहां पर गणेश चतुर्थी का बड़ा आयोजन होता है.