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14 जनवरी को मकर संक्रांति पर खुलेंगे आदिबद्री मंदिर के कपाट, बदरीनाथ से पहले होती है इनकी पूजा - UTTARAKHAND ADIBADRI TEMPLE

आदिबद्री को भगवान विष्णु का सबसे पहला निवास स्थान माना जाता है, मकर संक्रांति पर आदिबद्री मंदिर में 7 दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा

ADI BADRI TEMPLE UTTARAKHAND
14 जनवरी को खुलेंगे आदिबद्री मंदिर के कपाट (SOURCE: ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 11, 2025, 1:24 PM IST

गैरसैंण: उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण से लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आदिबद्री मंदिर के कपाट 14 जनवरी को मकर सक्रांति के दिन श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे. इस दौरान एक सप्ताह तक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा. भगवान आदिबद्री मंदिर के कपाट साल में पौष माह के लिए बंद रहते हैं. बीती 15 दिसंबर को मंदिर के कपाट बंद हुए थे और मकर संक्रांति पर भक्तों के लिए दोबारा खोले जाते हैं. यह स्थल न केवल धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है.

दर्शन के लिए बड़ी संख्या में आते हैं श्रद्धालु: स्थानीय निवासियों का कहना है कि आदिबद्री मंदिर समूह को देखने के लिए श्रद्धालु ग्रीष्मकाल से लेकर शीतकाल तक यहां पहुंचते हैं. इसको लेकर सरकार को आदिबद्री क्षेत्र को पर्यटन के लिहाज से विकसित करने की जरूरत है. वहीं मंदिर समिति के अध्यक्ष जगदीश प्रसाद बहुगुणा ने शासन-प्रशासन से आदिबद्री में पर्यटन को बढ़ाने की मांग की है.

ADI BADRI TEMPLE UTTARAKHAND
15 दिसंबर को बंद हुए थे कपाट (SOURCE: ETV BHARAT)

भगवान विष्णु का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है आदिबद्री: आदिबद्री मंदिर भगवान नारायण को समर्पित है, जो भगवान विष्णु के एक अवतार हैं. परिसर के भीतर मुख्य मंदिर में भगवान नारायण की एक पूज्यनीय काले पत्थर की मूर्ति है. आदिबद्री को भगवान विष्णु का सबसे पहला निवास स्थान माना जाता है. बद्रीनाथ से पहले आदिबद्री की ही पूजा की जाती है. किंवदंतियों के अनुसार भगवान विष्णु कलियुग में बदरीनाथ जाने से पहले सतयुग, त्रेता और द्वापर युगों के दौरान आदिबद्री में निवास करते थे.

बिना आदिबद्री के दर्शन किए पूरी नहीं मानी जाती बदरीनाथ की यात्रा: मान्यता के अनुसार बदरीनाथ धाम के दर्शन करने से पहले आदिबद्री के दर्शन करने जरूरी होते हैं, तभी बदरीनाथ की यात्रा सफल होती है. माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने इन मंदिरों के निर्माण का समर्थन किया था, जिसका उद्देश्य पूरे देश में हिंदू धर्म के सिद्धांतों का प्रसार करना था. किसी जमाने में आदिबद्री मंदिर 16 मंदिरों का समूह हुआ करता था, लेकिन अब यहां सिर्फ 14 मंदिर रह गए हैं.

आदिबद्री परिसर में भगवान विष्णु के मुख्य मंदिर के समेत 16 मंदिर मौजूद थे. इनमें से दो काफी पहले खंडित हो गए थे. अब 14 बाकी हैं. इन 14 मंदिरों के बारे में बताया जाता है कि भगवान के सभी गण जैसे कि उनकी सवारी के रूप में गरुड़ भगवान, अन्नपूर्णा देवी, कुबेर भगवान, सत्यनारायण, लक्ष्मी नारायण, गणेश भगवान, हनुमान जी, गौरी शंकर, महिषासुर मर्दिनी, शिवालय, जानकी जी, सूर्य भगवान इत्यादि के 14 मंदिर अभी भी आदिबद्री परिसर में मौजूद हैं.

ये भी पढ़ें- ब्रह्म मुहूर्त में खुले द्वापर युग में यहां होते थे बदरी विशाल के दर्शन, ASI ने 16 मंदिरों की इस पौराणिक धरोहर को माना खास

गैरसैंण: उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण से लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आदिबद्री मंदिर के कपाट 14 जनवरी को मकर सक्रांति के दिन श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे. इस दौरान एक सप्ताह तक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा. भगवान आदिबद्री मंदिर के कपाट साल में पौष माह के लिए बंद रहते हैं. बीती 15 दिसंबर को मंदिर के कपाट बंद हुए थे और मकर संक्रांति पर भक्तों के लिए दोबारा खोले जाते हैं. यह स्थल न केवल धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है.

दर्शन के लिए बड़ी संख्या में आते हैं श्रद्धालु: स्थानीय निवासियों का कहना है कि आदिबद्री मंदिर समूह को देखने के लिए श्रद्धालु ग्रीष्मकाल से लेकर शीतकाल तक यहां पहुंचते हैं. इसको लेकर सरकार को आदिबद्री क्षेत्र को पर्यटन के लिहाज से विकसित करने की जरूरत है. वहीं मंदिर समिति के अध्यक्ष जगदीश प्रसाद बहुगुणा ने शासन-प्रशासन से आदिबद्री में पर्यटन को बढ़ाने की मांग की है.

ADI BADRI TEMPLE UTTARAKHAND
15 दिसंबर को बंद हुए थे कपाट (SOURCE: ETV BHARAT)

भगवान विष्णु का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है आदिबद्री: आदिबद्री मंदिर भगवान नारायण को समर्पित है, जो भगवान विष्णु के एक अवतार हैं. परिसर के भीतर मुख्य मंदिर में भगवान नारायण की एक पूज्यनीय काले पत्थर की मूर्ति है. आदिबद्री को भगवान विष्णु का सबसे पहला निवास स्थान माना जाता है. बद्रीनाथ से पहले आदिबद्री की ही पूजा की जाती है. किंवदंतियों के अनुसार भगवान विष्णु कलियुग में बदरीनाथ जाने से पहले सतयुग, त्रेता और द्वापर युगों के दौरान आदिबद्री में निवास करते थे.

बिना आदिबद्री के दर्शन किए पूरी नहीं मानी जाती बदरीनाथ की यात्रा: मान्यता के अनुसार बदरीनाथ धाम के दर्शन करने से पहले आदिबद्री के दर्शन करने जरूरी होते हैं, तभी बदरीनाथ की यात्रा सफल होती है. माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने इन मंदिरों के निर्माण का समर्थन किया था, जिसका उद्देश्य पूरे देश में हिंदू धर्म के सिद्धांतों का प्रसार करना था. किसी जमाने में आदिबद्री मंदिर 16 मंदिरों का समूह हुआ करता था, लेकिन अब यहां सिर्फ 14 मंदिर रह गए हैं.

आदिबद्री परिसर में भगवान विष्णु के मुख्य मंदिर के समेत 16 मंदिर मौजूद थे. इनमें से दो काफी पहले खंडित हो गए थे. अब 14 बाकी हैं. इन 14 मंदिरों के बारे में बताया जाता है कि भगवान के सभी गण जैसे कि उनकी सवारी के रूप में गरुड़ भगवान, अन्नपूर्णा देवी, कुबेर भगवान, सत्यनारायण, लक्ष्मी नारायण, गणेश भगवान, हनुमान जी, गौरी शंकर, महिषासुर मर्दिनी, शिवालय, जानकी जी, सूर्य भगवान इत्यादि के 14 मंदिर अभी भी आदिबद्री परिसर में मौजूद हैं.

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