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लोकसभा चुनाव: उत्तराखंड कांग्रेस के भविष्य पर उठने लगे सवाल, उथल-पुथल से BJP के पक्ष में रुझान, दांव पर साख!

Uttarakhand Congress उत्तराखंड में कांग्रेस 2014, 2019 लोकसभा चुनाव और 2017, 2022 विधानसभा चुनाव में मुंह के खाने के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की साख दांव पर है. हैरानी की बात ये है कांग्रेस के कई दिग्गज नेता चुनाव से बचने की कोशिश भी रहे हैं.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Mar 11, 2024, 4:33 PM IST

Updated : Mar 11, 2024, 6:39 PM IST

उत्तराखंड कांग्रेस के भविष्य पर उठने लगे सवाल.

देहरादूनः लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड कांग्रेस भले ही प्रदेश की पांचों लोकसभा सीट जीतने का दावा कर रही है. लेकिन धरातल पर स्थिति कुछ और ही नजर आ रही है. एक तरफ प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेता चुनाव लड़ने से बचते नजर आ रहे हैं तो दूसरी तरफ लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव बड़े अंतराल से हारने के बाद इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की साख दांव पर लगी है. ऐसे में इस चुनाव के बाद उत्तराखंड में कांग्रेस के वजूद की स्थिति स्पष्ट हो पाएगी.

लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर राजनीतिक पार्टियां दमखम से तैयारी में जुटी हुई है. ताकि प्रदेश की पांचों लोकसभा सीटों पर काबिज हो सके. चुनावी तैयारी के बीच उत्तराखंड की राजनीति में इन दोनों उथल पुथल भी देखा जा रहा है. एक तरफ भाजपा ने तीन लोकसभा सीटों के लिए प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया है. दूसरी तरफ कांग्रेस के मनीष खंडूड़ी, शैलेंद्र रावत और अशोक वर्मा जैसे कई दिग्गज नेता भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर रहे हैं. इसके अलावा कांग्रेस अभी भी लोकसभा सीटों पर प्रत्याशियों के नाम का ऐलान नहीं कर पाई है. कहा ये भी जा रहा है कि कांग्रेस नेता चुनाव लड़ने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस आलाकमान असहज है. यही वजह है कि कांग्रेस आलाकमान को प्रत्याशियों के चयन में काफी समय लग रहा है.

चुनाव लड़ने से बच रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता: सूत्र बताते हैं कि उत्तराखंड कांग्रेस के कई बड़े दिग्गज नेता चुनाव लड़ने से बचते नजर आ रहे हैं. नेताओं के चुनाव लड़ने से बचने के तमाम वजह सामने आ रहे हैं. जिसमें मुख्य रूप से साल 2014 और 2019 में हुए लोकसभा चुनाव की तरह ही साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भी मोदी लहर का बड़ा फैक्टर देखने को मिल रहा है.

उत्तराखंड कांग्रेस में बन रहे तमाम राजनीतिक समीकरणों और कांग्रेस के भविष्य पर उठ रहे सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत का कहना है कि बड़े राजनीतिक दल चुनाव लड़ने के लिए ही होते हैं. क्योंकि चुनाव नहीं लड़ेंगे तो इसका असर पड़ेगा. चुनाव से राजनीतिक संगठन एक्टिव हो जाता है. कार्यकर्ता मोटिवेट होते हैं. किसी भी चुनाव में हार जीत लगी रहती है. लेकिन हार के बाद भी अगर कड़ी टक्कर दे दी तो संगठन और मजबूत होता है. लेकिन अगर कांग्रेस के नेता पहले ही मैदान छोड़ देंगे तो कांग्रेस का संगठन काफी कमजोर पड़ जाएगा.

चुनाव महंगा होना भी बड़ी वजह: जय सिंह रावत कहते हैं कि कांग्रेस नेताओं द्वारा चुनाव न लड़ने की इच्छा जाहिर करना एक वजह महंगा चुनाव भी है. मौजूदा समय में एक लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने के लिए लगभग-लगभग 15 करोड़ रुपए की जरूरत पड़ती है. लेकिन प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते चुनाव और भी महंगा हो गया है.

चुनाव के चंदा जुटाना भी कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर: वरिष्ठ पत्रकार रावत की माने तो प्रदेश के लगभग सभी सीटों पर रुझान भाजपा के पक्ष में नजर आ रहा है. कांग्रेस नेताओं में चुनाव लड़ने के प्रति कॉन्फिडेंस की कमी, कांग्रेस कार्यकर्ताओं में हौसले की कमी के साथ ही कांग्रेस के पास संसाधनों की कमी के चलते कांग्रेस के तमाम नेता चुनाव लड़ने से कतरा रहे हैं. इसके उलट भाजपा के पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे की कमी नहीं है. भाजपा के प्रत्याशी भी इतने समर्थ हैं कि वो अपने बलबूते चुनाव लड़ सकते हैं. इसके अलावा, सीटिंग पार्टी को आसानी से चुनाव लड़ने के लिए चंदा भी मिल जाता है. लेकिन विपक्षी पार्टियों को चुनाव लड़ने के लिए चंदा एकत्र करने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है.

भाजपा का प्रोपेगेंडा: जय सिंह रावत कहते हैं कि चुनाव के दौरान पार्टियों को नैरेटिव बनाना पड़ता है. यही वजह है कि भाजपा इस बात पर जोर दे रही है कि विपक्ष समाप्त हो गया है. ये राजनीति है जहां उतार-चढ़ाव चलता रहता है. लेकिन ये कहना कि कांग्रेस खत्म हो जाएगी. ये सिर्फ भाजपा का एक प्रोपेगेंडा है. ताकि जनता में भाजपा के प्रति एक माइंड सेट किया जा सके.

'कांग्रेस तुष्टिकरण और भाजपा संतुष्टिकरण का राजनीति करती है': कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल का कहना है कि आज कांग्रेस का बड़े से बड़ा नेता चुनाव लड़ने का इच्छुक नहीं है. क्योंकि विपक्ष भ्रामक प्रचार, पीएम मोदी को गाली और तुष्टिकरण की राजनीति करता है. जबकि भाजपा संतुष्टिकरण के आधार पर काम करती है. ऐसे में जिस तरह से भाजपा ने साल 2014, साल 2019 में लोकसभा की पांचों सीटों पर जीत दर्ज की थी, इसी तरह आगामी लोकसभा चुनाव ने पांचों सीटों पर फिर भाजपा काबिज होगी. भाजपा के पास नीति, नियत और नेतृत्व भी है. लेकिन कांग्रेस के पास न नीति, नियत और न ही नेतृत्व है. जिसके चलते जनता मोदी के साथ है.

कांग्रेस युक्त भाजपा: वहीं, प्रदेश में बन रहे तमाम राजनीतिक समीकरणों के सवाल पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि भाजपा अपनी फिक्र करें. कांग्रेस की फिक्र न करें. माहरा ने कहा कि 'कांग्रेस मुक्त भारत' बनाते-बनाते भाजपा ने खुद को कांग्रेस युक्त भाजपा बना लिया है. वर्तमान समय में आज 9 में से 5 कैबिनेट मंत्री कांग्रेस पृष्टिभूमि से हैं. ऐसे में भाजपा किसी को कांग्रेस से आयात करके मुख्यमंत्री भी बना दे, जो ज्यादा बेहतर होगा. क्योंकि भाजपा को कुछ आता नहीं है. चोरी करना, सरकारों को गिरने का काम भाजपा ने किया है. भाजपा के पास पैसा है, पावर है तो कुछ भी करे. लेकिन ये लंबे समय तक चलने वाला नहीं है. लिहाजा, 1977 वाली घटना फिर से होगी और भाजपा नीचे आएगी.

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में जोरों पर 'नियुक्ति' वाली सियासत, युवाओं को लुभाने की कोशिश, चुनाव से पहले बांटे जा रहे अप्वाइंटमेंट लेटर

उत्तराखंड कांग्रेस के भविष्य पर उठने लगे सवाल.

देहरादूनः लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड कांग्रेस भले ही प्रदेश की पांचों लोकसभा सीट जीतने का दावा कर रही है. लेकिन धरातल पर स्थिति कुछ और ही नजर आ रही है. एक तरफ प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेता चुनाव लड़ने से बचते नजर आ रहे हैं तो दूसरी तरफ लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव बड़े अंतराल से हारने के बाद इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की साख दांव पर लगी है. ऐसे में इस चुनाव के बाद उत्तराखंड में कांग्रेस के वजूद की स्थिति स्पष्ट हो पाएगी.

लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर राजनीतिक पार्टियां दमखम से तैयारी में जुटी हुई है. ताकि प्रदेश की पांचों लोकसभा सीटों पर काबिज हो सके. चुनावी तैयारी के बीच उत्तराखंड की राजनीति में इन दोनों उथल पुथल भी देखा जा रहा है. एक तरफ भाजपा ने तीन लोकसभा सीटों के लिए प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया है. दूसरी तरफ कांग्रेस के मनीष खंडूड़ी, शैलेंद्र रावत और अशोक वर्मा जैसे कई दिग्गज नेता भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर रहे हैं. इसके अलावा कांग्रेस अभी भी लोकसभा सीटों पर प्रत्याशियों के नाम का ऐलान नहीं कर पाई है. कहा ये भी जा रहा है कि कांग्रेस नेता चुनाव लड़ने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस आलाकमान असहज है. यही वजह है कि कांग्रेस आलाकमान को प्रत्याशियों के चयन में काफी समय लग रहा है.

चुनाव लड़ने से बच रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता: सूत्र बताते हैं कि उत्तराखंड कांग्रेस के कई बड़े दिग्गज नेता चुनाव लड़ने से बचते नजर आ रहे हैं. नेताओं के चुनाव लड़ने से बचने के तमाम वजह सामने आ रहे हैं. जिसमें मुख्य रूप से साल 2014 और 2019 में हुए लोकसभा चुनाव की तरह ही साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भी मोदी लहर का बड़ा फैक्टर देखने को मिल रहा है.

उत्तराखंड कांग्रेस में बन रहे तमाम राजनीतिक समीकरणों और कांग्रेस के भविष्य पर उठ रहे सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत का कहना है कि बड़े राजनीतिक दल चुनाव लड़ने के लिए ही होते हैं. क्योंकि चुनाव नहीं लड़ेंगे तो इसका असर पड़ेगा. चुनाव से राजनीतिक संगठन एक्टिव हो जाता है. कार्यकर्ता मोटिवेट होते हैं. किसी भी चुनाव में हार जीत लगी रहती है. लेकिन हार के बाद भी अगर कड़ी टक्कर दे दी तो संगठन और मजबूत होता है. लेकिन अगर कांग्रेस के नेता पहले ही मैदान छोड़ देंगे तो कांग्रेस का संगठन काफी कमजोर पड़ जाएगा.

चुनाव महंगा होना भी बड़ी वजह: जय सिंह रावत कहते हैं कि कांग्रेस नेताओं द्वारा चुनाव न लड़ने की इच्छा जाहिर करना एक वजह महंगा चुनाव भी है. मौजूदा समय में एक लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने के लिए लगभग-लगभग 15 करोड़ रुपए की जरूरत पड़ती है. लेकिन प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते चुनाव और भी महंगा हो गया है.

चुनाव के चंदा जुटाना भी कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर: वरिष्ठ पत्रकार रावत की माने तो प्रदेश के लगभग सभी सीटों पर रुझान भाजपा के पक्ष में नजर आ रहा है. कांग्रेस नेताओं में चुनाव लड़ने के प्रति कॉन्फिडेंस की कमी, कांग्रेस कार्यकर्ताओं में हौसले की कमी के साथ ही कांग्रेस के पास संसाधनों की कमी के चलते कांग्रेस के तमाम नेता चुनाव लड़ने से कतरा रहे हैं. इसके उलट भाजपा के पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे की कमी नहीं है. भाजपा के प्रत्याशी भी इतने समर्थ हैं कि वो अपने बलबूते चुनाव लड़ सकते हैं. इसके अलावा, सीटिंग पार्टी को आसानी से चुनाव लड़ने के लिए चंदा भी मिल जाता है. लेकिन विपक्षी पार्टियों को चुनाव लड़ने के लिए चंदा एकत्र करने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है.

भाजपा का प्रोपेगेंडा: जय सिंह रावत कहते हैं कि चुनाव के दौरान पार्टियों को नैरेटिव बनाना पड़ता है. यही वजह है कि भाजपा इस बात पर जोर दे रही है कि विपक्ष समाप्त हो गया है. ये राजनीति है जहां उतार-चढ़ाव चलता रहता है. लेकिन ये कहना कि कांग्रेस खत्म हो जाएगी. ये सिर्फ भाजपा का एक प्रोपेगेंडा है. ताकि जनता में भाजपा के प्रति एक माइंड सेट किया जा सके.

'कांग्रेस तुष्टिकरण और भाजपा संतुष्टिकरण का राजनीति करती है': कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल का कहना है कि आज कांग्रेस का बड़े से बड़ा नेता चुनाव लड़ने का इच्छुक नहीं है. क्योंकि विपक्ष भ्रामक प्रचार, पीएम मोदी को गाली और तुष्टिकरण की राजनीति करता है. जबकि भाजपा संतुष्टिकरण के आधार पर काम करती है. ऐसे में जिस तरह से भाजपा ने साल 2014, साल 2019 में लोकसभा की पांचों सीटों पर जीत दर्ज की थी, इसी तरह आगामी लोकसभा चुनाव ने पांचों सीटों पर फिर भाजपा काबिज होगी. भाजपा के पास नीति, नियत और नेतृत्व भी है. लेकिन कांग्रेस के पास न नीति, नियत और न ही नेतृत्व है. जिसके चलते जनता मोदी के साथ है.

कांग्रेस युक्त भाजपा: वहीं, प्रदेश में बन रहे तमाम राजनीतिक समीकरणों के सवाल पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि भाजपा अपनी फिक्र करें. कांग्रेस की फिक्र न करें. माहरा ने कहा कि 'कांग्रेस मुक्त भारत' बनाते-बनाते भाजपा ने खुद को कांग्रेस युक्त भाजपा बना लिया है. वर्तमान समय में आज 9 में से 5 कैबिनेट मंत्री कांग्रेस पृष्टिभूमि से हैं. ऐसे में भाजपा किसी को कांग्रेस से आयात करके मुख्यमंत्री भी बना दे, जो ज्यादा बेहतर होगा. क्योंकि भाजपा को कुछ आता नहीं है. चोरी करना, सरकारों को गिरने का काम भाजपा ने किया है. भाजपा के पास पैसा है, पावर है तो कुछ भी करे. लेकिन ये लंबे समय तक चलने वाला नहीं है. लिहाजा, 1977 वाली घटना फिर से होगी और भाजपा नीचे आएगी.

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Last Updated : Mar 11, 2024, 6:39 PM IST
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