संभल: संभल जिले में जिला पंचायत राज अधिकारी (डीपीआरओ) का कारनामा सामने आया है. डीपीआरओ ने जांच में दोषी मिले ग्राम पंचायत अधिकारी पर मेहरबानी करके ग्राम प्रधान को सचिव के फर्जी हस्ताक्षर कर बैंक से भुगतान प्राप्त करने के आरोप में मुकदमा दर्ज करने के निर्देश दिए हैं. वहीं बैंक की ओर से कहा गया है कि भुगतान जाली हस्ताक्षर से नहीं हुआ है. हैरानी की बात यह है कि जिले के मुख्य विकास अधिकार (सीडीओ) ने पंचायत सचिव के खिलाफ डीपीआरओ को कार्रवाई के निर्देश दिए हैं. इसके बावजूद डीपीआरओ स्तर से कार्रवाई न होने से पूरे जिला प्रशासन की फजीहत हो रही है.
मामला जिले के बहजोई विकासखंड के गांव कमालपुर सराय का है. ग्राम प्रधान मनोज कुमार पर आरोप है कि उन्होंने पंचायत सचिव के फर्जी हस्ताक्षर कर गौ आश्रय के नाम पर भूसे का लाखों रुपये निकाल लिया. मामला संज्ञान में आने पर ग्राम प्रधान मनोज कुमार को निलंबित कर दिया. कार्यवाहक के तौर पर बबीता को ग्राम प्रधान की जिम्मेदारी दे दी गई. कार्यवाहक प्रधान बबीता का आरोप है कि ग्राम प्रधान मनोज कुमार ने अपने कार्यकाल के दौरान पंचायत भवन में कंप्यूटर सिस्टम, इन्वर्टर, बैटरी, टेबल और कुर्सियां आदि सामान निकाल लिया. इस मामले में डीपीआरओ उपेंद्र कुमार पांडेय ने बहजोई ब्लॉक के एडीओ पंचायत को जांच कर एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए. इसके अलावा सीडीओ भरत कुमार मिश्रा ने एडीपीआरओ चैतन्य कुमार को जांच सौंपी.
एडीपीआरओ चैतन्य कुमार ने अपनी जांच रिपोर्ट में पाया कि कमालपुर सराय ग्राम पंचायत में तैनात रहे ग्राम पंचायत अधिकारी आकाश कुमार ने गलत तरीके से 8 बाउचर के माध्यम से दो लाख रुपये से अधिक का भुगतान कराया है. भुगतान तब किया जब उसका तबादला हो चुका था. इस दौरान आकाश ने कमालपुर सराय में तैनात मौजूदा सचिव शिवम यादव को अभिलेखों का चार्ज भी नहीं दिया. पंचायत नियमों के अनुसार ग्राम पंचायत में स्टॉक रजिस्टर आदि रखने की जिम्मेदारी सचिव की होती है न कि ग्राम प्रधान की. ऐसे में सवाल उठता है कि जब सचिव आकाश कुमार ने सरकारी अभिलेखों का चार्ज वर्तमान सचिव को नहीं दिया, तो फिर प्रधान ने पंचायत भवन का सामान किस आधार पर निकाल लिया.
एडीपीआरओ की जांच रिपोर्ट के आधार पर सीडीओ ने डीपीआरओ को निर्देश देते हुए ग्राम पंचायत अधिकारी आकाश कुमार की सेवा समाप्ति पर स्क्रीनिंग कमेटी गठित करने अथवा आरोप पत्र जारी कर विभागीय कार्रवाई के निर्देश दिए हैं. अब ऐसे में डीपीआरओ की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं. डीपीआरओ पर आरोप लग रहा है कि सीडीओ के आदेश के बाद भी आरोपी सचिव के खिलाफ कार्रवाई न करके सिर्फ प्रधान के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है. दरअसल इस मामले में पेच यह है कि बैंक ने भुगतान फर्जी हस्ताक्षर से नहीं होने के स्पष्टीकरण दिया है.
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