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पश्चिम यूपी में "नल" के जल से "कमल" खिलाने का फैसला जयंत के विधायकों को नहीं भाया, सपा में जाने की तैयारी

Jayant Chaudhary Join NDA: यूपी विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना के साथ यूपी के सभी विधायक अयोध्या में रामलला के दर्शन करने के लिए गए थे. सपा विधायकों ने किनारा किया था लेकिन रालोद के पांच विधायक गए थे. इसमें चार रालोद विधायक नहीं गए थे.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 13, 2024, 3:54 PM IST

लखनऊ: राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया जयंत चौधरी ने आखिरकार इंडिया गठबंधन का साथ छोड़कर एनडीए के साथ जाने का फैसला ले लिया है. अब तक भारतीय जनता पार्टी पर लगातार प्रहार कर रहे जयंत अब बीजेपी के साथ मिलकर नल के जल से कमल खिलाने की पुरजोर कोशिश में जुट गए हैं.

अब वे इंडिया गठबंधन के नेताओं पर ही प्रहार करेंगे. समाजवादी पार्टी के साथ 2022 के विधानसभा में गठबंधन करने वाले जयंत ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए उसे तोड़ दिया है. अब उन्होंने भाजपा से नाता जोड़ा है. हालांकि, चर्चा है कि जयंत के इस फैसले से आरएलडी के कई विधायक खुश नहीं हैं.

चार विधायकों के नाम चर्चा में हैं जो जयंत से नाराज होकर सपा की तरफ रुख कर सकते हैं. सपा मुखिया भी आरएलडी मुखिया से धोखा खाए हैं. लिहाजा, आरएलडी के विधायकों को तोड़ने के उनके प्रयासों की भी चर्चा राजनीतिक गलियारों में शुरू हो गई है.

ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं है कि आरएलडी के कुछ विधायक आने वाले दिनों में सपा के खेमे में नजर आएं और लोकसभा चुनाव में सपा के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में ताल ठोकें.

यूपी विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने सभी पार्टी के विधायकों को राम नगरी अयोध्या में भगवान राम के दर्शन कराने का फैसला लिया था. 11 फरवरी को समाजवादी पार्टी को छोड़कर अन्य दलों के विधायक अयोध्या गए भी, क्योंकि अब आरएलडी मुखिया जयंत चौधरी भाजपा के पाले में आ गए हैं.

लिहाजा, आरएलडी के भी विधायक भगवान राम के दर्शन करने अयोध्या पहुंचे, लेकिन चार विधायकों ने अयोध्या जाने से दूरी बना ली. अब इन्हीं विधायकों की नाराजगी की चर्चाएं सामने आ रही हैं. इनमें से कई विधायक पिछला विधानसभा चुनाव आरएलडी के सिंबल पर लड़े थे लेकिन उनका सपा से पुराना नाता रहा है.

यही विधायक अब आरएलडी से नाता तोड़कर समाजवादी पार्टी से अपना संबंध जोड़ सकते हैं. इनमें दो मुस्लिम विधायक हैं तो दो हिंदू. हालांकि विधायकों की नाराजगी से आरएलडी के नेता साफ इनकार कर रहे हैं. यहां तक कि जयंत चौधरी भी मीडिया के सामने आकर कह चुके हैं कि विधायकों से चर्चा करने के बाद ही एनडीए के साथ जाने का फैसला लिया है.

यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव में मीरापुर से चंदन चौहान मैदान में उतरे थे. उन्होंने आरएलडी के प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की थी. वह विधायक आरएलडी से बने लेकिन उनकी गिनती हमेशा से ही अखिलेश के चहेते नेताओं में होती रही है.

उनका सिंबल आरएलडी का जरूर था लेकिन उनकी नजदीकियां हमेशा समाजवादी पार्टी के साथ रहीं. जब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने विधायकों को राम मंदिर दर्शन के लिए न जाने का फैसला लिया तो आरएलडी के विधायक चंदन चौहान भी अयोध्या नहीं गए.

ऐसे में उनके नाम को लेकर चर्चा है कि वह समाजवादी पार्टी के साथ आने वाले दिनों में गलबहियां करते हुए नजर आ सकते हैं. हालांकि विधायक चंदन चौहान का कहना है कि निजी काम से अयोध्या नहीं जा पाए थे. वे आरएलडी के साथ ही बने रहेंगे.

विधायक मदन भैया का चर्चा में है नाम: रालोद के एक अन्य विधायक मदन भैया का नाम भी चर्चा में है कि वह जयंत चौधरी के फैसले से खुश नहीं हैं. खतौली से विधायक मदन भैया भी 11 फरवरी को रामलाल के दर्शन करने अयोध्या नहीं गए थे. खतौली से विधानसभा उपचुनाव में आरएलडी के टिकट पर मदन भैया चुनाव मैदान में उतरे थे और जीत हासिल की थी. चर्चाएं आम है कि उनकी सपा में दिलचस्पी है. हालांकि मदन भैया कह रहे हैं कि वह आरएलडी नहीं छोड़ेंगे.

विधायक गुलाम मोहम्मद का समाजवादी पार्टी से पुराना नाता: आरएलडी मुखिया जयंत चौधरी के फैसले से नाखुश होने वालों की सूची में सिवालसाख विधानसभा सीट से विधायक गुलाम मोहम्मद का भी नाम है. गुलाम समाजवादी पार्टी के काफी करीबी माने जाते हैं. वह समाजवादी पार्टी के पुराने नेता रहे हैं.

सपा के सिंबल पर कई बार चुनाव भी लड़ चुके हैं. बीजेपी के साथ आरएलडी के गठबंधन से आरएलडी विधायक गुलाम मोहम्मद खुश नहीं बताए जा रहे हैं. हालांकि उन्होंने भी अपना पक्ष रखा है कि वह आरएलडी के साथ हैं, लेकिन चर्चा यही है कि वे सपा के काफी खास हैं और बीजेपी के साथ नहीं जाना चाहते.

ऐसे में समाजवादी पार्टी उन्हें आरएलडी से तोड़कर लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी भी बना सकती है. अयोध्या नहीं जाने के पीछे उनका मुस्लिम समुदाय से होने का एक कारण भी सामने जरूर आ रहा है.

अशरफ नल छोड़, साइकिल पर हो सकते हैं सवार: आरएलडीके के शामली के थाना भवन विधानसभा सीट से मुस्लिम विधायक अशरफ अली के अयोध्या न जाने के पीछे एक बड़ी वजह मुस्लिम समुदाय से होना है, लेकिन यह बात भी सामने आ रही है कि उन्हें भी आरएलडी का सपा से गठबंधन रास आ रहा था, लेकिन बीजेपी से उनकी हमदर्दी बिल्कुल भी नहीं है.

ऐसे में वे भी चौंकाने वाला फैसला जल्द ले सकते हैं. रालोद को दरकिनार कर समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवार हो सकते हैं. चर्चाएं यह भी हैं कि अगर अशरफ अली समाजवादी पार्टी के साथ जाते हैं तो सपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीट से उन्हें उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतार सकती है.

रालोद के राष्ट्रीय सचिव अनुपम मिश्रा ने बताया कि आरएलडी के सभी विधायक आरएलडी के साथ हैं. कोई कहीं नहीं जा रहा है. एनडीए के साथ जाने का फैसला पार्टी के विधायकों और कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत करके ही लिया गया है.

ये भी पढ़ेंः यूपी की 10 राज्यसभा सीटों में 7 पर भाजपा की जीत पक्की, जयंत चौधरी कर सकते हैं खेला

लखनऊ: राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया जयंत चौधरी ने आखिरकार इंडिया गठबंधन का साथ छोड़कर एनडीए के साथ जाने का फैसला ले लिया है. अब तक भारतीय जनता पार्टी पर लगातार प्रहार कर रहे जयंत अब बीजेपी के साथ मिलकर नल के जल से कमल खिलाने की पुरजोर कोशिश में जुट गए हैं.

अब वे इंडिया गठबंधन के नेताओं पर ही प्रहार करेंगे. समाजवादी पार्टी के साथ 2022 के विधानसभा में गठबंधन करने वाले जयंत ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए उसे तोड़ दिया है. अब उन्होंने भाजपा से नाता जोड़ा है. हालांकि, चर्चा है कि जयंत के इस फैसले से आरएलडी के कई विधायक खुश नहीं हैं.

चार विधायकों के नाम चर्चा में हैं जो जयंत से नाराज होकर सपा की तरफ रुख कर सकते हैं. सपा मुखिया भी आरएलडी मुखिया से धोखा खाए हैं. लिहाजा, आरएलडी के विधायकों को तोड़ने के उनके प्रयासों की भी चर्चा राजनीतिक गलियारों में शुरू हो गई है.

ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं है कि आरएलडी के कुछ विधायक आने वाले दिनों में सपा के खेमे में नजर आएं और लोकसभा चुनाव में सपा के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में ताल ठोकें.

यूपी विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने सभी पार्टी के विधायकों को राम नगरी अयोध्या में भगवान राम के दर्शन कराने का फैसला लिया था. 11 फरवरी को समाजवादी पार्टी को छोड़कर अन्य दलों के विधायक अयोध्या गए भी, क्योंकि अब आरएलडी मुखिया जयंत चौधरी भाजपा के पाले में आ गए हैं.

लिहाजा, आरएलडी के भी विधायक भगवान राम के दर्शन करने अयोध्या पहुंचे, लेकिन चार विधायकों ने अयोध्या जाने से दूरी बना ली. अब इन्हीं विधायकों की नाराजगी की चर्चाएं सामने आ रही हैं. इनमें से कई विधायक पिछला विधानसभा चुनाव आरएलडी के सिंबल पर लड़े थे लेकिन उनका सपा से पुराना नाता रहा है.

यही विधायक अब आरएलडी से नाता तोड़कर समाजवादी पार्टी से अपना संबंध जोड़ सकते हैं. इनमें दो मुस्लिम विधायक हैं तो दो हिंदू. हालांकि विधायकों की नाराजगी से आरएलडी के नेता साफ इनकार कर रहे हैं. यहां तक कि जयंत चौधरी भी मीडिया के सामने आकर कह चुके हैं कि विधायकों से चर्चा करने के बाद ही एनडीए के साथ जाने का फैसला लिया है.

यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव में मीरापुर से चंदन चौहान मैदान में उतरे थे. उन्होंने आरएलडी के प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की थी. वह विधायक आरएलडी से बने लेकिन उनकी गिनती हमेशा से ही अखिलेश के चहेते नेताओं में होती रही है.

उनका सिंबल आरएलडी का जरूर था लेकिन उनकी नजदीकियां हमेशा समाजवादी पार्टी के साथ रहीं. जब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने विधायकों को राम मंदिर दर्शन के लिए न जाने का फैसला लिया तो आरएलडी के विधायक चंदन चौहान भी अयोध्या नहीं गए.

ऐसे में उनके नाम को लेकर चर्चा है कि वह समाजवादी पार्टी के साथ आने वाले दिनों में गलबहियां करते हुए नजर आ सकते हैं. हालांकि विधायक चंदन चौहान का कहना है कि निजी काम से अयोध्या नहीं जा पाए थे. वे आरएलडी के साथ ही बने रहेंगे.

विधायक मदन भैया का चर्चा में है नाम: रालोद के एक अन्य विधायक मदन भैया का नाम भी चर्चा में है कि वह जयंत चौधरी के फैसले से खुश नहीं हैं. खतौली से विधायक मदन भैया भी 11 फरवरी को रामलाल के दर्शन करने अयोध्या नहीं गए थे. खतौली से विधानसभा उपचुनाव में आरएलडी के टिकट पर मदन भैया चुनाव मैदान में उतरे थे और जीत हासिल की थी. चर्चाएं आम है कि उनकी सपा में दिलचस्पी है. हालांकि मदन भैया कह रहे हैं कि वह आरएलडी नहीं छोड़ेंगे.

विधायक गुलाम मोहम्मद का समाजवादी पार्टी से पुराना नाता: आरएलडी मुखिया जयंत चौधरी के फैसले से नाखुश होने वालों की सूची में सिवालसाख विधानसभा सीट से विधायक गुलाम मोहम्मद का भी नाम है. गुलाम समाजवादी पार्टी के काफी करीबी माने जाते हैं. वह समाजवादी पार्टी के पुराने नेता रहे हैं.

सपा के सिंबल पर कई बार चुनाव भी लड़ चुके हैं. बीजेपी के साथ आरएलडी के गठबंधन से आरएलडी विधायक गुलाम मोहम्मद खुश नहीं बताए जा रहे हैं. हालांकि उन्होंने भी अपना पक्ष रखा है कि वह आरएलडी के साथ हैं, लेकिन चर्चा यही है कि वे सपा के काफी खास हैं और बीजेपी के साथ नहीं जाना चाहते.

ऐसे में समाजवादी पार्टी उन्हें आरएलडी से तोड़कर लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी भी बना सकती है. अयोध्या नहीं जाने के पीछे उनका मुस्लिम समुदाय से होने का एक कारण भी सामने जरूर आ रहा है.

अशरफ नल छोड़, साइकिल पर हो सकते हैं सवार: आरएलडीके के शामली के थाना भवन विधानसभा सीट से मुस्लिम विधायक अशरफ अली के अयोध्या न जाने के पीछे एक बड़ी वजह मुस्लिम समुदाय से होना है, लेकिन यह बात भी सामने आ रही है कि उन्हें भी आरएलडी का सपा से गठबंधन रास आ रहा था, लेकिन बीजेपी से उनकी हमदर्दी बिल्कुल भी नहीं है.

ऐसे में वे भी चौंकाने वाला फैसला जल्द ले सकते हैं. रालोद को दरकिनार कर समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवार हो सकते हैं. चर्चाएं यह भी हैं कि अगर अशरफ अली समाजवादी पार्टी के साथ जाते हैं तो सपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीट से उन्हें उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतार सकती है.

रालोद के राष्ट्रीय सचिव अनुपम मिश्रा ने बताया कि आरएलडी के सभी विधायक आरएलडी के साथ हैं. कोई कहीं नहीं जा रहा है. एनडीए के साथ जाने का फैसला पार्टी के विधायकों और कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत करके ही लिया गया है.

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