लखनऊः राज्य विधान मंडल के मानसून सत्र के सदन की कार्यवाही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई. लेकिन कार्यवाही में समाजवादी पार्टी के चार बागी विधायक गैरहाजिर रहे. वहीं दो बागी विधायक कार्यवाही में शामिल हुए तो सिर्फ खानापूर्ति के लिए. ऐसे में जनहित के मुद्दों से समाजवादी पार्टी के बागी विधायक पूरी तरह से दूर रहे. सपा विधायकों के सदन में न पहुंचने को लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं कि ये बागी विधायक जनहित से जुड़े मुद्दों को सदन में उठाने में पूरी तरह से फेल साबित हुए. यही नहीं सपा के बागी विधायक अधर में फंस गए हैं.
राज्य सभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी के सात विधायकों ने बगावत की थी. इनमें सपा के मुख्य सचेतक रहे ऊंचाहार विधायक डॉ. मनोज पांडेय, अमेठी के गौरीगंज से विधायक राकेश प्रताप सिंह, गोसाईगंज से विधायक अभय सिंह, अम्बेडकर के जलालपुर से विधायक राकेश पांडेय, जालौन के कालपी से विधायक विनोद चतुर्वेदी, अमेठी से महाराजी प्रजापति, प्रयागराज की चायल से विधायक पूजा पाल ने भाजपा के राज्यसभा उम्मीदवार संजय सेठ को वोट दिया था. लोकसभा चुनाव के दौरान मनोज पांडेय तो औपचारिक रूप से भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी. अन्य सदस्यों ने किसी न किसी रूप में भाजपा की मदद की, ऐसी बात सपा की तरफ से की गई है. इसके अलावा केंद्र सरकार ने कई विधायकों को वाई श्रेणी की सुरक्षा देकर उपकृत करने का काम भी किया. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सभी बागी विधायकों की सदस्यता समाप्त कराने की बात कही है. इसके साथ ही इनके लिए समाजवादी पार्टी के दरवाजे हमेशा के लिए बंद कर दिए गए हैं. अगर समाजवादी पार्टी का कोई नेता भी किसी विधायक की पैरवी करेगा तो उसे भी बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा.
अब जब पिछले दिनों विधानसभा सदन की शुरूआत हुई तो सपा के 5 बागी विधायक मनोज पांडेय, राकेश पांडेय, विनोद चतुर्वेदी, महराजी प्रजापति, पूजा पाल कार्यवाही में हिस्सा लेने पहुंचे ही नहीं. जबकि राकेश सिंह और अभय सिंह, राकेश पांडेय सिर्फ कुछ घण्टे के लिए ही सदन की कार्यवाही में नजर आए. वहीं, समाजवादी पार्टी के अन्य बागी विधायकों के सदन में न पहुंचने को लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं कि ये लोग जब सदन में ही नहीं आये तो जनहित के मुद्दों को उठाने में भी इनकी दिलचस्पी नहीं रही.
राजनीतिक विश्लेषक उत्कर्ष सिन्हा कहते हैं कि सपा के बागी विधायक इसलिए सदन की कार्यवाही में जाने पर कहां बैठते. अगर जिस दल में वह गए हैं या उनकी नजदीकी बढ़ी है उसके साथ बैठते तो दलबदल कानून के अंतर्गत उनकी सदस्यता याचिका दायर करते समय चली जाती. वहीं. जिस दल के हैं वह उन्हें अब अपना मानते ही नहीं हैं. उनके सामने बड़ी असहज स्थिति रही है. जनहित के मुद्दों को लेकर सवाल जरूर पूछने चाहिए. जिस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं तो वहां की समस्याओं आदि के बारे विधानसभा में चर्चा और समस्या के समाधान की पहल जरूरी है. यही अच्छे लोकतंत्र की खूबसूरती है.