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उत्तराखंड: वन अनुसंधान केंद्र ने दुनिया के सबसे ऊंचाई क्षेत्र में तैयार किया मियावाकी तकनीक से जंगल, इटली को छोड़ा पीछे - NEW TECHNOLOGY DEVELOPED IN FOREST

उत्तराखंड में जंगलों को बचाए रखने के लिए लगातार कार्य हो रहे हैं. इसी कड़ी में मियावाकी तकनीकी से जंगल विकसित किया जा रहा है.

Forest developed using Miyawaki technology in Munsiyari
मुनस्यारी में मियावाकी तकनीक से विकसित जंगल (Photo-ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 17, 2024, 9:55 AM IST

Updated : Nov 17, 2024, 12:32 PM IST

पिथौरागढ़: उत्तराखंड में लगातार जंगलों के क्षेत्रफल में गिरावट आ रही है, जो सरकार और वन विभाग के लिए चिंता का सबब बनता जा रहा है. इसी को देखते हुए अब उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने जंगलों को विकसित करने के लिए नई तकनीकी के माध्यम से जंगल को विकसित कर रहा है. जिससे जंगलों को हरा-भरा रखा जा सके. मुख्य वन संरक्षक व निदेशक उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र द्वारा दुनिया का पहला सबसे ऊंचाई वाले क्षेत्र पर मियावाकी तकनीकी से जंगल तैयार किया है, जो अपने आप में विश्व रिकॉर्ड है.

जापान की है मियावाकी तकनीक: उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र अब जापान की मियावाकी तकनीक से जंगल विकसित कर रहा है. इसकी शुरुआत सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के मुनस्यारी क्षेत्र में की है. मुनस्यारी में तकनीक से 0.16 हेक्टेयर दायरे में जंगल विकसित किया है. इसकी खासियत यह है कि जंगल में स्थानीय प्रजाति के पेड़-पौधे मौजूद हैं. मुनस्यारी में उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने जुलाई 2021 में मियावाकी तकनीकी से जंगल विकसित करने का काम शुरू किया.

पिथौरागढ़ के मुनस्यारी में मियावाकी तकनीक से विकसित किया जंगल (Video-ETV Bharat)

वन अनुसंधान केंद्र की खास पहल: आज क्षेत्र जंगल के रूप में पूर्ण रूप से विकसित हो चुका है, जो वन विभाग और वन अनुसंधान केंद्र के लिए एक सुखद परिणाम सामने आया है. वर्तमान में यहां 0.16 हेक्टेयर दायरे में इस तकनीक से विकसित जंगल में हरे-भरे पेड़-पौधे लहलहा रहे हैं. वन क्षेत्राधिकारी मुनस्यारी आरपी जोशी ने बताया कि है मियावाकी तकनीक एक जापानी तकनीकी है अनुसंधान केंद्र द्वारा जापानी तकनीकी के माध्यम से जंगल तैयार किया जा रहे हैं.

Promoting local vegetation in forest
जंगल में स्थानीय वनस्पति को बढ़ावा (Photo-ETV Bharat)

कई प्रजाति के पौध किए विकसित: खास बात यह है कि मुनस्यारी में तैयार किए गए जंगल में स्थानीय प्रजाति के बुरांश, थुनैर, बांज, कठभोज, अखरोट, किलमोड़ा, घिघांरू, चिल्ल, देवदार, पदम, उतीस समेत 40 प्रजातियों के पेड़-पौधों विकसित किए गए हैं. वन क्षेत्राधिकारी ने बताया कि जंगलों में पौधों को विकसित होने में लंबा समय लगता है. मियावाकी तकनीक से सिर्फ 10 से 15 वर्षों में ही जंगल पूर्ण रूप से विकसित किया जा सकता है. इस प्रक्रिया में पौधों की वृद्धि 10 गुना अधिक तेजी से होती है.

स्थानीय वनस्पति को बढ़ावा: इसकी खासियत यह है कि संबंधित जमीन पर वहीं की स्थानीय वनस्पति को बढ़ावा दिया जाता है, ताकि अनुकूल आबोहवा, जलवायु, मौसम व मृदा इन पौधों के विकास में मददगार बन सके. इसमें पौधों की ग्रोथ तेजी से होती है और इनके मरने की संभावना बेहद कम हो जाती है. इस तकनीक में पहले गड्ढे खोदकर कुछ महीने के लिए छोड़ दिए जाते हैं. बाद में उसमें दालों, गोबर और भूसे से बनी जैविक खाद डालकर पौधरोपण होता है.

Forest developed Miyawaki technology
वन अनुसंधान केंद्र ने मियावाकी तकनीक से जंगल किया विकसित (Photo-ETV Bharat)

क्या बोले वन विभाग के अधिकारी: मियावाकी तकनीक पर हल्द्वानी मुख्य वन संरक्षक व निदेशक उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र द्वारा दुनिया का पहला सबसे ऊंचाई वाले क्षेत्र पर मियावाकी तकनीकी से जंगल तैयार किया है, जो अपने आप में विश्व रिकॉर्ड है. इससे पहले यह रिकॉर्ड इटली के एक जंगल को वर्ष 2018 में 1836 मीटर पर तैयार किया गया था. लेकिन उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र मुनस्यारी के पातल थौड़ में 2450 मीटर ऊंचाई पर मियावाकी तकनीकी से जंगल तैयार किया है.

जंगल विकसित करना था चुनौतीपूर्ण: जो अपने आप में विश्व रिकॉर्ड है. जो इटली का रिकॉर्ड तोड़ते हुए मियावाकी पद्धति से जंगल को तैयार किया गया है. उन्होंने बताया कि इस जंगल को तैयार करने में बड़ी चुनौतियां भी सामने आई हैं. क्योंकि जिस जगह पर जंगल तैयार किया गया है 4 महीने तक बर्फ से ढका रहता है. इसके अलावा स्थानीय पशुओं और जंगली जानवरों से भी बचाना विभाग की चुनौती थी. लेकिन विभाग के कर्मचारियों के अथक प्रयास से जंगल विकसित हो गया है.

मियावाकी विधि क्या है: मियावाकी वृक्षारोपण तकनीक वनरोपण की एक अनूठी विधि है. जिसे जापान में अकीरा मियावाकी नामक वनस्पतिशास्त्री ने विकसित किया था. इस विधि में एक छोटे से क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के देशी वृक्षों को लगाया जाता है, जो बाद में एक घने, बहुस्तरीय जंगल में विकसित होते हैं. इस तकनीक का उद्देश्य एक ऐसा जंगल बनाना है जिसमें उच्च स्तर की जैव विविधता हो और जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सके. मियावाकी तकनीक तेजी से जंगल विकसित करने की क्षमता के लिए जाना जाती है. जिसमें पेड़ पारंपरिक जंगलों में पाए जाने वाले पेड़ों की तुलना में छोटे और चौड़े होते हैं.

पढ़ें-

पिथौरागढ़: उत्तराखंड में लगातार जंगलों के क्षेत्रफल में गिरावट आ रही है, जो सरकार और वन विभाग के लिए चिंता का सबब बनता जा रहा है. इसी को देखते हुए अब उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने जंगलों को विकसित करने के लिए नई तकनीकी के माध्यम से जंगल को विकसित कर रहा है. जिससे जंगलों को हरा-भरा रखा जा सके. मुख्य वन संरक्षक व निदेशक उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र द्वारा दुनिया का पहला सबसे ऊंचाई वाले क्षेत्र पर मियावाकी तकनीकी से जंगल तैयार किया है, जो अपने आप में विश्व रिकॉर्ड है.

जापान की है मियावाकी तकनीक: उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र अब जापान की मियावाकी तकनीक से जंगल विकसित कर रहा है. इसकी शुरुआत सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के मुनस्यारी क्षेत्र में की है. मुनस्यारी में तकनीक से 0.16 हेक्टेयर दायरे में जंगल विकसित किया है. इसकी खासियत यह है कि जंगल में स्थानीय प्रजाति के पेड़-पौधे मौजूद हैं. मुनस्यारी में उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने जुलाई 2021 में मियावाकी तकनीकी से जंगल विकसित करने का काम शुरू किया.

पिथौरागढ़ के मुनस्यारी में मियावाकी तकनीक से विकसित किया जंगल (Video-ETV Bharat)

वन अनुसंधान केंद्र की खास पहल: आज क्षेत्र जंगल के रूप में पूर्ण रूप से विकसित हो चुका है, जो वन विभाग और वन अनुसंधान केंद्र के लिए एक सुखद परिणाम सामने आया है. वर्तमान में यहां 0.16 हेक्टेयर दायरे में इस तकनीक से विकसित जंगल में हरे-भरे पेड़-पौधे लहलहा रहे हैं. वन क्षेत्राधिकारी मुनस्यारी आरपी जोशी ने बताया कि है मियावाकी तकनीक एक जापानी तकनीकी है अनुसंधान केंद्र द्वारा जापानी तकनीकी के माध्यम से जंगल तैयार किया जा रहे हैं.

Promoting local vegetation in forest
जंगल में स्थानीय वनस्पति को बढ़ावा (Photo-ETV Bharat)

कई प्रजाति के पौध किए विकसित: खास बात यह है कि मुनस्यारी में तैयार किए गए जंगल में स्थानीय प्रजाति के बुरांश, थुनैर, बांज, कठभोज, अखरोट, किलमोड़ा, घिघांरू, चिल्ल, देवदार, पदम, उतीस समेत 40 प्रजातियों के पेड़-पौधों विकसित किए गए हैं. वन क्षेत्राधिकारी ने बताया कि जंगलों में पौधों को विकसित होने में लंबा समय लगता है. मियावाकी तकनीक से सिर्फ 10 से 15 वर्षों में ही जंगल पूर्ण रूप से विकसित किया जा सकता है. इस प्रक्रिया में पौधों की वृद्धि 10 गुना अधिक तेजी से होती है.

स्थानीय वनस्पति को बढ़ावा: इसकी खासियत यह है कि संबंधित जमीन पर वहीं की स्थानीय वनस्पति को बढ़ावा दिया जाता है, ताकि अनुकूल आबोहवा, जलवायु, मौसम व मृदा इन पौधों के विकास में मददगार बन सके. इसमें पौधों की ग्रोथ तेजी से होती है और इनके मरने की संभावना बेहद कम हो जाती है. इस तकनीक में पहले गड्ढे खोदकर कुछ महीने के लिए छोड़ दिए जाते हैं. बाद में उसमें दालों, गोबर और भूसे से बनी जैविक खाद डालकर पौधरोपण होता है.

Forest developed Miyawaki technology
वन अनुसंधान केंद्र ने मियावाकी तकनीक से जंगल किया विकसित (Photo-ETV Bharat)

क्या बोले वन विभाग के अधिकारी: मियावाकी तकनीक पर हल्द्वानी मुख्य वन संरक्षक व निदेशक उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र द्वारा दुनिया का पहला सबसे ऊंचाई वाले क्षेत्र पर मियावाकी तकनीकी से जंगल तैयार किया है, जो अपने आप में विश्व रिकॉर्ड है. इससे पहले यह रिकॉर्ड इटली के एक जंगल को वर्ष 2018 में 1836 मीटर पर तैयार किया गया था. लेकिन उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र मुनस्यारी के पातल थौड़ में 2450 मीटर ऊंचाई पर मियावाकी तकनीकी से जंगल तैयार किया है.

जंगल विकसित करना था चुनौतीपूर्ण: जो अपने आप में विश्व रिकॉर्ड है. जो इटली का रिकॉर्ड तोड़ते हुए मियावाकी पद्धति से जंगल को तैयार किया गया है. उन्होंने बताया कि इस जंगल को तैयार करने में बड़ी चुनौतियां भी सामने आई हैं. क्योंकि जिस जगह पर जंगल तैयार किया गया है 4 महीने तक बर्फ से ढका रहता है. इसके अलावा स्थानीय पशुओं और जंगली जानवरों से भी बचाना विभाग की चुनौती थी. लेकिन विभाग के कर्मचारियों के अथक प्रयास से जंगल विकसित हो गया है.

मियावाकी विधि क्या है: मियावाकी वृक्षारोपण तकनीक वनरोपण की एक अनूठी विधि है. जिसे जापान में अकीरा मियावाकी नामक वनस्पतिशास्त्री ने विकसित किया था. इस विधि में एक छोटे से क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के देशी वृक्षों को लगाया जाता है, जो बाद में एक घने, बहुस्तरीय जंगल में विकसित होते हैं. इस तकनीक का उद्देश्य एक ऐसा जंगल बनाना है जिसमें उच्च स्तर की जैव विविधता हो और जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सके. मियावाकी तकनीक तेजी से जंगल विकसित करने की क्षमता के लिए जाना जाती है. जिसमें पेड़ पारंपरिक जंगलों में पाए जाने वाले पेड़ों की तुलना में छोटे और चौड़े होते हैं.

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Last Updated : Nov 17, 2024, 12:32 PM IST
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