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उत्तराखंड में IFS अफसरों की कमी के बीच विवादों में घिरते अधिकारी, साल 2021 के बाद बढ़ी परेशानी! - Uttarakhand Forest Department

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Aug 18, 2024, 12:30 PM IST

Uttarakhand Forest Department, IFS Officer Controversy उत्तराखंड में ऑल इंडिया सर्विस के अफसरों पर ताबड़तोड़ कार्रवाई एक मिसाल बन गई है. दरअसल, वन विभाग में 2021 के बाद आईएफएस अफसरों के साथ शुरू हुआ विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा. स्थिति ये है कि एक दर्जन से ज्यादा अधिकारी ऐसे हैं, जिन्हें निलंबन, अटैचमेंट, चार्जशीट या जेल तक की हवा खानी पड़ी है. राज्य में वन विभाग के तहत ऐसा क्यों हो रहा है, पढ़िए खास रिपोर्ट...

Uttarakhand Forest Headquarter
उत्तराखंड वन मुख्यालय (ETV Bharat GFX)

देहरादून: ऑल इंडिया सर्विस के अफसरों पर कार्रवाई का ऐसा दौर शायद ही किसी प्रदेश में दिखाई दिया हो. जैसा उत्तराखंड में रहा. ये स्थिति साल 2021 के बाद बनती दिखाई दी. जब कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में पाखरो सफारी का मामला सामने आया. इस प्रकरण के बाद महकमा ऐसे विवाद में फंसा, जिससे अब तक वो उबर नहीं पाया है. पहले इस मामले के कारण कुछ अफसरों को जेल की हवा खानी पड़ी तो कुछ को निलंबन और अटैचमेंट पर भी रहना पड़ा.

मामले में तत्कालीन प्रमुख वन संरक्षक हॉफ राजीव भरतरी को आरोप पत्र जारी किया गया. जिसका रिटायरमेंट के बाद भी उन्हें सामना करना पड़ रहा है. तत्कालीन के वाइल्डलाइफ वार्डन जेएस सुहाग निलंबित कर दिए गए. तत्कालीन निदेशक राहुल को वन मुख्यालय में अटैचमेंट पर रहना पड़ा. किशन चंद को तो जेल की भी हवा खानी पड़ी. हालांकि, इस मामले में डीजी फॉरेस्ट की जांच में आईएफएस (IFS) अफसर सुशांत पटनायक का नाम भी सामने आया.

विवाद की ये शुरुआत आगे जाकर दो प्रमुख वन संरक्षक के बीच कुर्सी की लड़ाई तक भी पहुंची. जब सरकार ने हॉफ राजीव भरतरी को हटाया तो वो हाईकोर्ट में इसके खिलाफ चले गए और विनोद सिंघल को हटाकर खुद की प्रमुख वन संरक्षक बनाए जाने का आदेश ले आए. इस मामले ने वन विभाग की छवि पर बेहद ज्यादा चोट पहुंचाई. बहरहाल, दोनों शीर्ष अफसर रिटायर हो गए.

इसके बाद सब कुछ ठीक होता हुआ दिखाई दिया, लेकिन अचानक पेड़ों के अवैध कटान के मामले सामने आने लगे. चकराता और पुरोला में सैकड़ों पेड़ों को अवैध रूप से काटे जाने की बात सामने आ गई. इसके बाद पुरोला टोंस वन प्रभाग में तत्कालीन डीएफओ सुबोध काला को निलंबित कर दिया गया. उधर, चकराता क्षेत्र में तत्कालीन डीएफओ कल्याणी को मुख्यालय में अटैच कर दिया गया.

बिनसर अभयारण्य क्षेत्र में वनाग्नि में 6 वनकर्मियों की गई थी जान: इस मामले में जांच के आदेश देने के बाद वन विभाग कुछ शांत लग रहा था कि तभी वनाग्नि सीजन में बिनसर अभयारण्य क्षेत्र में भीषण आग लगने का मामला सामने आया. जिसमें 6 लोगों की जान चली गई. प्रकरण सामने आने के बाद मुख्यमंत्री ने इसका संज्ञान लिया और क्षेत्रीय डीएफओ ध्रुव सिंह मर्तोलिया के साथ वन संरक्षक कोको रोसे को निलंबित कर दिया गया. इतना ही नहीं कुमाऊं चीफ पीके पात्रों को पद से हटाकर वन मुख्यालय में अटैच कर दिया गया.

उत्तराखंड में आईएफएस अधिकारियों की भारी कमी: उत्तराखंड में आईएफएस अधिकारियों की पहले ही काफी ज्यादा कमी है. इसी वजह से कई अधिकारियों को डबल चार्ज या इससे भी ज्यादा जिम्मेदारियां देनी पड़ रही है. वन मुख्यालय में तो एक ही अधिकारी को कई कई जिम्मेदारियां दी गई है. इन स्थितियों के बीच वन विभाग में ऑल इंडिया सर्विस के अफसर का निलंबन और हो रही कार्रवाई इस कमी को बढ़ा रही है.

क्या बोले वन मंत्री सुबोध उनियाल? हालांकि, इस मामले पर वन मंत्री सुबोध उनियाल कहते हैं कि विभाग के स्तर पर अधिकारियों पर हो रही कार्रवाई की समीक्षा की जा रही है. कुछ मामलों की जांच रिपोर्ट आ चुकी है और इसके बाद अधिकारियों को लेकर निर्णय भी लिया जाएगा.

इसके अलावा वन विभाग में वन कर्मियों के प्रमोशन और संविदा कर्मियों को स्थाई नियुक्ति दिए जाने का मामला भी प्रकाश में आया. इसके बाद आईएफएस अधिकारी मनोज चंद्रन के लिए आरोप पत्र तैयार हुआ और इसकी जांच सीनियर अफसर को दी गई. हालांकि, इस मामले में अब तक जांच रिपोर्ट शासन को नहीं मिली है. प्रमुख सचिव वन आर के सुधांशु ने इस बात की पुष्टि की है कि प्रकरण में फिलहाल जांच रिपोर्ट शासन को प्राप्त नहीं हुई है. जल्द ही मामले में जांच पूरी होने की उम्मीद है.

वन मंत्री सुबोध उनियाल कहते हैं कि राज्य में तमाम मामलों को लेकर जैसे-जैसे जांच रिपोर्ट प्राप्त हो रही है. उसी के आधार पर आगे की कार्रवाई भी की जा रही है. जिन अधिकारियों पर आरोप गलत साबित हो रहे हैं उन्हें राहत देने का काम भी किया जा रहा है. हाल ही में कुमाऊं के रहे पीके पात्रों की विभाग में वापसी करते हुए उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई थी.

महिला से छेड़छाड़ मामले पर आईएफएस अफसर को हटाया गया: उत्तराखंड में सीनियर आईएफएस अधिकारी को भी वन मुख्यालय में अटैच किया गया है. अधिकारी पर पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के सदस्य के रूप में काम करते हुए एक महिला से छेड़छाड़ करने का आरोप लगा था. खास बात ये है कि इस मामले में उन पर मुकदमा भी दर्ज किया जा चुका है. उधर, दूसरी तरफ इस प्रकरण के ठीक बाद प्रवर्तन निदेशालय (ED) के अफसर ने भी उनके घर पर छापेमारी की थी. बताया गया था कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व मामले को लेकर यह छापेमारी की गई थी.

अवैध पेड़ कटान, अवैध निर्माण, गलत नियुक्ति, महिला छेड़छाड़ जैसे सामने आए गंभीर प्रकरण: उत्तराखंड में ऑल इंडिया सर्विस के अफसरों पर ऐसे कई गंभीर आरोप लगे जो न केवल विभाग की छवि के लिए खराब साबित हुए हैं. बल्कि, इसके कारण अफसरों को भी मुसीबत का सामना करना पड़ा है. राज्य में अवैध रूप से पेड़ कटान का मामला हो या फिर बिना अनुमति के अवैध निर्माण की बात, ऐसे गंभीर मामलों में भी अफसरों पर आरोप लगे हैं.

इतना ही नहीं एक मामला तो ऐसा आया, जिससे वन महकमे की किरकिरी हुई. दरअसल, एक मामले में तो महिला से छेड़छाड़ पर अफसर को जांच का सामना करना पड़ रहा है. जबकि, नियुक्तियों को नियम विरुद्ध किए जाने पर भी एक अधिकारी जांच का सामना कर रहा है. कुल मिलाकर बेहद गंभीर मामलों को लेकर आईएएस अधिकारी सवालों के घेरे में रहे हैं, जिन पर जांच गतिमान है.

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देहरादून: ऑल इंडिया सर्विस के अफसरों पर कार्रवाई का ऐसा दौर शायद ही किसी प्रदेश में दिखाई दिया हो. जैसा उत्तराखंड में रहा. ये स्थिति साल 2021 के बाद बनती दिखाई दी. जब कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में पाखरो सफारी का मामला सामने आया. इस प्रकरण के बाद महकमा ऐसे विवाद में फंसा, जिससे अब तक वो उबर नहीं पाया है. पहले इस मामले के कारण कुछ अफसरों को जेल की हवा खानी पड़ी तो कुछ को निलंबन और अटैचमेंट पर भी रहना पड़ा.

मामले में तत्कालीन प्रमुख वन संरक्षक हॉफ राजीव भरतरी को आरोप पत्र जारी किया गया. जिसका रिटायरमेंट के बाद भी उन्हें सामना करना पड़ रहा है. तत्कालीन के वाइल्डलाइफ वार्डन जेएस सुहाग निलंबित कर दिए गए. तत्कालीन निदेशक राहुल को वन मुख्यालय में अटैचमेंट पर रहना पड़ा. किशन चंद को तो जेल की भी हवा खानी पड़ी. हालांकि, इस मामले में डीजी फॉरेस्ट की जांच में आईएफएस (IFS) अफसर सुशांत पटनायक का नाम भी सामने आया.

विवाद की ये शुरुआत आगे जाकर दो प्रमुख वन संरक्षक के बीच कुर्सी की लड़ाई तक भी पहुंची. जब सरकार ने हॉफ राजीव भरतरी को हटाया तो वो हाईकोर्ट में इसके खिलाफ चले गए और विनोद सिंघल को हटाकर खुद की प्रमुख वन संरक्षक बनाए जाने का आदेश ले आए. इस मामले ने वन विभाग की छवि पर बेहद ज्यादा चोट पहुंचाई. बहरहाल, दोनों शीर्ष अफसर रिटायर हो गए.

इसके बाद सब कुछ ठीक होता हुआ दिखाई दिया, लेकिन अचानक पेड़ों के अवैध कटान के मामले सामने आने लगे. चकराता और पुरोला में सैकड़ों पेड़ों को अवैध रूप से काटे जाने की बात सामने आ गई. इसके बाद पुरोला टोंस वन प्रभाग में तत्कालीन डीएफओ सुबोध काला को निलंबित कर दिया गया. उधर, चकराता क्षेत्र में तत्कालीन डीएफओ कल्याणी को मुख्यालय में अटैच कर दिया गया.

बिनसर अभयारण्य क्षेत्र में वनाग्नि में 6 वनकर्मियों की गई थी जान: इस मामले में जांच के आदेश देने के बाद वन विभाग कुछ शांत लग रहा था कि तभी वनाग्नि सीजन में बिनसर अभयारण्य क्षेत्र में भीषण आग लगने का मामला सामने आया. जिसमें 6 लोगों की जान चली गई. प्रकरण सामने आने के बाद मुख्यमंत्री ने इसका संज्ञान लिया और क्षेत्रीय डीएफओ ध्रुव सिंह मर्तोलिया के साथ वन संरक्षक कोको रोसे को निलंबित कर दिया गया. इतना ही नहीं कुमाऊं चीफ पीके पात्रों को पद से हटाकर वन मुख्यालय में अटैच कर दिया गया.

उत्तराखंड में आईएफएस अधिकारियों की भारी कमी: उत्तराखंड में आईएफएस अधिकारियों की पहले ही काफी ज्यादा कमी है. इसी वजह से कई अधिकारियों को डबल चार्ज या इससे भी ज्यादा जिम्मेदारियां देनी पड़ रही है. वन मुख्यालय में तो एक ही अधिकारी को कई कई जिम्मेदारियां दी गई है. इन स्थितियों के बीच वन विभाग में ऑल इंडिया सर्विस के अफसर का निलंबन और हो रही कार्रवाई इस कमी को बढ़ा रही है.

क्या बोले वन मंत्री सुबोध उनियाल? हालांकि, इस मामले पर वन मंत्री सुबोध उनियाल कहते हैं कि विभाग के स्तर पर अधिकारियों पर हो रही कार्रवाई की समीक्षा की जा रही है. कुछ मामलों की जांच रिपोर्ट आ चुकी है और इसके बाद अधिकारियों को लेकर निर्णय भी लिया जाएगा.

इसके अलावा वन विभाग में वन कर्मियों के प्रमोशन और संविदा कर्मियों को स्थाई नियुक्ति दिए जाने का मामला भी प्रकाश में आया. इसके बाद आईएफएस अधिकारी मनोज चंद्रन के लिए आरोप पत्र तैयार हुआ और इसकी जांच सीनियर अफसर को दी गई. हालांकि, इस मामले में अब तक जांच रिपोर्ट शासन को नहीं मिली है. प्रमुख सचिव वन आर के सुधांशु ने इस बात की पुष्टि की है कि प्रकरण में फिलहाल जांच रिपोर्ट शासन को प्राप्त नहीं हुई है. जल्द ही मामले में जांच पूरी होने की उम्मीद है.

वन मंत्री सुबोध उनियाल कहते हैं कि राज्य में तमाम मामलों को लेकर जैसे-जैसे जांच रिपोर्ट प्राप्त हो रही है. उसी के आधार पर आगे की कार्रवाई भी की जा रही है. जिन अधिकारियों पर आरोप गलत साबित हो रहे हैं उन्हें राहत देने का काम भी किया जा रहा है. हाल ही में कुमाऊं के रहे पीके पात्रों की विभाग में वापसी करते हुए उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई थी.

महिला से छेड़छाड़ मामले पर आईएफएस अफसर को हटाया गया: उत्तराखंड में सीनियर आईएफएस अधिकारी को भी वन मुख्यालय में अटैच किया गया है. अधिकारी पर पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के सदस्य के रूप में काम करते हुए एक महिला से छेड़छाड़ करने का आरोप लगा था. खास बात ये है कि इस मामले में उन पर मुकदमा भी दर्ज किया जा चुका है. उधर, दूसरी तरफ इस प्रकरण के ठीक बाद प्रवर्तन निदेशालय (ED) के अफसर ने भी उनके घर पर छापेमारी की थी. बताया गया था कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व मामले को लेकर यह छापेमारी की गई थी.

अवैध पेड़ कटान, अवैध निर्माण, गलत नियुक्ति, महिला छेड़छाड़ जैसे सामने आए गंभीर प्रकरण: उत्तराखंड में ऑल इंडिया सर्विस के अफसरों पर ऐसे कई गंभीर आरोप लगे जो न केवल विभाग की छवि के लिए खराब साबित हुए हैं. बल्कि, इसके कारण अफसरों को भी मुसीबत का सामना करना पड़ा है. राज्य में अवैध रूप से पेड़ कटान का मामला हो या फिर बिना अनुमति के अवैध निर्माण की बात, ऐसे गंभीर मामलों में भी अफसरों पर आरोप लगे हैं.

इतना ही नहीं एक मामला तो ऐसा आया, जिससे वन महकमे की किरकिरी हुई. दरअसल, एक मामले में तो महिला से छेड़छाड़ पर अफसर को जांच का सामना करना पड़ रहा है. जबकि, नियुक्तियों को नियम विरुद्ध किए जाने पर भी एक अधिकारी जांच का सामना कर रहा है. कुल मिलाकर बेहद गंभीर मामलों को लेकर आईएएस अधिकारी सवालों के घेरे में रहे हैं, जिन पर जांच गतिमान है.

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