देहरादून: उत्तराखंड में वर्किंग प्लान से जुड़े दस्तावेज अब हमेशा के लिए सुरक्षित हो गए हैं.महकमे की वर्किंग प्लान विंग ने खुद इस काम को करीब 10 महीने की कड़ी मेहनत के बाद पूरा किया है. दरअसल वन विभाग के लिए वर्किंग प्लान की पुस्तकें सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज है और इसी के आधार पर आगामी 10 साल की कार्य योजना को अमलीजामा पहनाया जाता है. इस दौरान न केवल मौजूदा वर्किंग प्लान विभाग के लिए जरूरी होता है, बल्कि पुराने वर्किंग प्लान से जुड़े दस्तावेज भी विभाग उतने ही जरूरी मानता है.
वर्किंग प्लान से जुड़े इन दस्तावेजों को सुरक्षित रखना काफी मुश्किल होता है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि यह दस्तावेज काफी ज्यादा होते हैं. समय के साथ-साथ इन दस्तावेजों के खराब होने की संभावना भी काफी ज्यादा रहती है. देहरादून वन प्रभाग के तो 125 साल पुराने दस्तावेज भी मौजूद हैं. जिन्हें सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी काफी मुश्किल होती है. वर्किंग प्लान के दस्तावेजों का महत्व और डिजिटाइजेशन की जरूरत को देखते हुए कार्य योजना में मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी के निर्देश पर सितंबर 2023 से इन दस्तावेजों को सुरक्षित करने की शुरुआत की गई.
जिसमें कार्य योजना के पांच कर्मियों ने इन भारी भरकम दस्तावेजों को डिजिटल करने का काम शुरू किया और इन्हें करीब 10 महीने में डिजिटल भी कर लिया गया. विभाग में हुए इस महत्वपूर्ण काम को देखते हुए उत्तराखंड वन विभाग ने भी हाल ही में इन सभी पांच कर्मियों को सम्मानित किया है. इसमें अपर सांख्यिकी अधिकारी शैलेश भट्ट, कनिष्ठ सहायक कौशवेंद्र जोशी, शीला तिवारी, दीपाली कार्की और मनीष मटियाली का नाम शामिल है.
वर्किंग प्लान के इन दस्तावेजों के डिजिटल होने के बाद अब इसी तरह बाकी दस्तावेजों को भी डिजिटल करने पर विचार किया जा रहा है. प्रमुख वन संरक्षक हाफ धनंजय मोहन कहते हैं कि वर्किंग प्लान के कर्मचारियों ने जो काम किया है वह वाकई काबिले तारीफ है और इसलिए इन कर्मचारियों को सम्मानित भी किया गया है.प्रमुख वन संरक्षक हाफ का कहना है कि इन महत्वपूर्ण दस्तावेजों के सुरक्षित होने के बाद अब विभाग में बाकी कार्यों को भी डिजिटल किए जाने के लिए प्रयास किए जाएंगे.
उत्तराखंड वन विभाग के लिए यह पहला मौका है जब इस तरह विभागीय पुराने दस्तावेजों को डिजिटाइजेशन किया गया है. अब इन्हें विभाग की ही वेबसाइट पर ऑनलाइन उपलब्ध कराने की भी तैयारी है. भारत सरकार लगातार डिजिटल इंडिया का स्लोगन दे रही है, ऐसे में उत्तराखंड वन विभाग में शुरू हुआ यह प्रयास इस स्लोगन को भी साकार करता है.