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उत्तराखंड में खोजी गई जंगली मशरूम की 5 नई प्रजातियां, जानिए क्या हैं खासियतें - Wild Mushroom Uttarakhand

Wild Mushroom Species in Uttarakhand उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों से हावड़ा के वैज्ञानिकों की टीम ने जंगली मशरूम की 5 नई प्रजातियां खोजी हैं. हालांकि, इन मशरूमों को खा नहीं सकते हैं, लेकिन पारिस्थितिकी तंत्र और दवा के क्षेत्र में काफी उपयोगी माना जा रहा है.

Wild Mushroom
जंगली मशरूम
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Apr 25, 2024, 8:19 PM IST

उत्तरकाशी: उत्तराखंड में जंगली मशरूम की पांच नई प्रजातियां खोजी गई हैं. मशरूम की नई प्रजातियां भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण कोलकाता के सेंट्रल नेशनल हर्बेरियम हावड़ा के वैज्ञानिकों की टीम खोजी है. खोजी गई जंगली मशरूम की प्रजातियां पारिस्थितिकी तंत्र, औषधि और दवा के क्षेत्र में उपयोगी बताई जा रही है.

ये पहली बार नहीं है कि जब भारतीय वैज्ञानिकों ने हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड से वनस्पति के क्षेत्र में नई खोज की हो, इससे पहले भी राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के वैज्ञानिकों ने उत्तरकाशी जिले के गोविंद वन्यजीव पशु विहार और गंगोत्री नेशनल पार्क क्षेत्र से लाइकेन की एक नई प्रजाति खोजी थी. जिसका नाम उत्तरकाशी जिले के नाम पर 'स्क्वामुला उत्तरकाशियाना' रखा गया था.

अब भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण की सेंट्रल नेशनल हर्बेरियम के प्रख्यात कवक विज्ञानी (माइकोलॉजिस्ट) और वैज्ञानिक एफ डॉ. कणाद दास के नेतृत्व वाली 7 सदस्यीय टीम ने उत्तराखंड के विभिन्न जिलों से जंगली मशरूम की 5 नई प्रजातियां खोजी हैं.

ये पांचों खाने योग्य तो नहीं है, लेकिन पारिस्थितिकी तंत्र के साथ ही औषधि और दवा के क्षेत्र में इन्हें उपयोगी माना जा रहा है. इस खोज से इस क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता का भी पता चलता है. वैज्ञानिकों के मशरूम की खोज से जुड़ा शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रमुख जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हो चुकी है.

खोजी गए पांच जंगली मशरूम-

  1. लेसीनेलम बोथी- जंगली मशरूम की ये प्रजाति रुद्रप्रयाग जिले के बनियाकुंड में करीब 2,622 मीटर की ऊंचाई खोजी गई है.
  2. फाइलोपोरस हिमालयेनस- ये प्रजाति बागेश्वर जिले में करीब 2,870 मीटर की ऊंचाई से खोजी गई है.
  3. फाइलोपोरस स्मिथाई- ये प्रजाति भी रुद्रप्रयाग जिले में बनियाकुंड से करीब 2,562 मीटर की ऊंचाई में खोजी गई है.
  4. पोर्फिरेलस उत्तराखंडाई- ये प्रजाति चमोली जिले में करीब 2,283 मीटर की ऊंचाई से खोजी गई है.
  5. रेटिबोलेटस स्यूडोएटर- ये प्रजाति बागेश्वर जिले में करीब 2,545 मीटर की ऊंचाई से खोजी गई है.

पेड़-पौधों के विकास में सहायक हैं मशरूम: कवक वर्ग से संबंध रखने वाले जंगली मशरूम की पारिस्थितिक तंत्र में अहम भूमिका निभाते हैं. यह अपघटक के रूप में काम करते हैं, जो पौधों और जानवरों के मृत अवशेषों के मलबे को साफ करने के साथ उन्हें ह्यूमस में बदलकर मिट्टी के पोषक तत्वों को समृद्ध करते हैं.

ये पौधों के साथ सहजीवी संबंध भी बनाते हैं, पानी और पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाकर उनके विकास में सहायता करते हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तराखंड में बांज-बुरांश के घटते जंगल का एक कारण मशरूम का घटना भी है.

भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के वैज्ञानिक एफ डॉ. कणाद दास हावड़ा ने बताया कि मशरूम या कवक को नजरअंदाज किया जाता है. संक्रमण से बचाव के लिए पेनिसिलिन और टीबी की रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन जैसी दवाइयां मशरूम से ही बनाई गई हैं. बृहद कवकों की जड़ और पेड़ों की जड़ आपस में जुड़ी रहती हैं. यह पेड़-पौधों के विकास में सहायक हैं. 40 से ज्यादा मशरूम का अध्ययन कर ये नई प्रजातियां खोजी गई हैं.

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उत्तरकाशी: उत्तराखंड में जंगली मशरूम की पांच नई प्रजातियां खोजी गई हैं. मशरूम की नई प्रजातियां भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण कोलकाता के सेंट्रल नेशनल हर्बेरियम हावड़ा के वैज्ञानिकों की टीम खोजी है. खोजी गई जंगली मशरूम की प्रजातियां पारिस्थितिकी तंत्र, औषधि और दवा के क्षेत्र में उपयोगी बताई जा रही है.

ये पहली बार नहीं है कि जब भारतीय वैज्ञानिकों ने हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड से वनस्पति के क्षेत्र में नई खोज की हो, इससे पहले भी राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के वैज्ञानिकों ने उत्तरकाशी जिले के गोविंद वन्यजीव पशु विहार और गंगोत्री नेशनल पार्क क्षेत्र से लाइकेन की एक नई प्रजाति खोजी थी. जिसका नाम उत्तरकाशी जिले के नाम पर 'स्क्वामुला उत्तरकाशियाना' रखा गया था.

अब भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण की सेंट्रल नेशनल हर्बेरियम के प्रख्यात कवक विज्ञानी (माइकोलॉजिस्ट) और वैज्ञानिक एफ डॉ. कणाद दास के नेतृत्व वाली 7 सदस्यीय टीम ने उत्तराखंड के विभिन्न जिलों से जंगली मशरूम की 5 नई प्रजातियां खोजी हैं.

ये पांचों खाने योग्य तो नहीं है, लेकिन पारिस्थितिकी तंत्र के साथ ही औषधि और दवा के क्षेत्र में इन्हें उपयोगी माना जा रहा है. इस खोज से इस क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता का भी पता चलता है. वैज्ञानिकों के मशरूम की खोज से जुड़ा शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रमुख जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हो चुकी है.

खोजी गए पांच जंगली मशरूम-

  1. लेसीनेलम बोथी- जंगली मशरूम की ये प्रजाति रुद्रप्रयाग जिले के बनियाकुंड में करीब 2,622 मीटर की ऊंचाई खोजी गई है.
  2. फाइलोपोरस हिमालयेनस- ये प्रजाति बागेश्वर जिले में करीब 2,870 मीटर की ऊंचाई से खोजी गई है.
  3. फाइलोपोरस स्मिथाई- ये प्रजाति भी रुद्रप्रयाग जिले में बनियाकुंड से करीब 2,562 मीटर की ऊंचाई में खोजी गई है.
  4. पोर्फिरेलस उत्तराखंडाई- ये प्रजाति चमोली जिले में करीब 2,283 मीटर की ऊंचाई से खोजी गई है.
  5. रेटिबोलेटस स्यूडोएटर- ये प्रजाति बागेश्वर जिले में करीब 2,545 मीटर की ऊंचाई से खोजी गई है.

पेड़-पौधों के विकास में सहायक हैं मशरूम: कवक वर्ग से संबंध रखने वाले जंगली मशरूम की पारिस्थितिक तंत्र में अहम भूमिका निभाते हैं. यह अपघटक के रूप में काम करते हैं, जो पौधों और जानवरों के मृत अवशेषों के मलबे को साफ करने के साथ उन्हें ह्यूमस में बदलकर मिट्टी के पोषक तत्वों को समृद्ध करते हैं.

ये पौधों के साथ सहजीवी संबंध भी बनाते हैं, पानी और पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाकर उनके विकास में सहायता करते हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तराखंड में बांज-बुरांश के घटते जंगल का एक कारण मशरूम का घटना भी है.

भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के वैज्ञानिक एफ डॉ. कणाद दास हावड़ा ने बताया कि मशरूम या कवक को नजरअंदाज किया जाता है. संक्रमण से बचाव के लिए पेनिसिलिन और टीबी की रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन जैसी दवाइयां मशरूम से ही बनाई गई हैं. बृहद कवकों की जड़ और पेड़ों की जड़ आपस में जुड़ी रहती हैं. यह पेड़-पौधों के विकास में सहायक हैं. 40 से ज्यादा मशरूम का अध्ययन कर ये नई प्रजातियां खोजी गई हैं.

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