नई दिल्ली: हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्र का विशेष धार्मिक महत्व बताया गया है. आज से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो गई है. शारदीय नवरात्र के दौरान मां भगवती के नौ स्वरूपों की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है. नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है. शैलपुत्री का अर्थ होता है पर्वतराज हिमालय की पुत्री. मां शैलपुत्री को माता सती के नाम से भी जाना जाता हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शारदीय नवरात्र की प्रथम दिन विधि विधान से मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. घर में सुख, समृद्धि और आर्थिक संपन्नता का स्थाई वास होता है.
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्तः शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 06:19 AM से 08:39 AM तक है. इसके पक्ष अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:46 AM से 12:33 PM तक है. यदि आप व्रत रखने में सक्षम है तो व्रत अवश्य रखें. यदि किसी कारणवश आप व्रत नहीं रख सकते हैं तो केवल फल आहार ग्रहण करें.
मां शैलपुत्री को की पूजा विधि
नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना कर माता शैलपुत्री का आवाह्न करें और मां को सफेद वस्त्र धारण कराएं. इसके बाद सफेद मिष्ठान, पंचमेवा, खीर आदि का भोग लगाएं और धूप एवं दीपक जलाएं. इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. यदि किसी कारणवश ऐसा नहीं कर सकते हैं तो दुर्गा चालीसा का पाठ करें. इसके बाद माता की आरती कर प्रसाद ग्रहण करें. साथ ही मां भगवती को सुबह एवं शाम के समय भोग लगाकर आरती जरूर करें. ऐसा करने से माता की कृपा प्राप्त होती है.
मां शैलपुत्री को क्या भोग लगाएं
मां शैलपुत्री को सफेद खाद्य पदार्थ जैसे कि खीर, चावल, सफेद मिष्ठान आदि का भोग लगाना चाहिए.
मां शैलपुत्री पूजा मंत्र
- ऊँ देवी शैलपुत्र्यै नमः ।।
- या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।
मां शैलपुत्री की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब मां ने माता पार्वती के रूप में पुनः जन्म लिया था तब वह मनुष्य अवतार में थीं. भगवान शिव के समान दैवीय अवतार करने और भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए माता ने घोर तपस्या की थी जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी माना था. कहा जाता है कि माता का यही तपस्वनी रूप मां शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं)
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