फतेहपुर: जिले के असोथर में स्थित इस मंदिर का रहस्य आज भी बरकरार है. मान्यता है, कि कस्बे में स्थित मोटे महादेवन मंदिर में प्रतिदिन सबसे पहले अश्वत्थामा पूजा करते हैं. कितनी भी सुबह कोई भक्त पहुंचे, शिवलिंग की पूजा हुई ही मिलती है. सुबह जब भी भक्त मंदिर पहुंचते हैं भक्तों को शिवलिंग पर पूजा के फूल और जल चढ़ा हुआ मिलता है.
बता दें, कि सावन माह में इस ऐतिहासिक मंदिर में भारी भीड़ जुट रही है. खासकर सावन के सोमवार को भक्तों की आपार भीड़ देखने को मिलती है. युवाओं में शिवभक्ति का जादू इस बार भी सिर चढ़ कर बोल रहा है. अश्वत्थामापुरी, असोथर में स्थापित मोटे महादेवन मंदिर का उद्गम कब हुआ, यह आज तक स्पष्ट नहीं हो सका है. यहां आदिकाल से अद्भूत शिवलिंग की पूजा करने से हर मुराद पूरी होती आ रही है, ऐसी लोगों में मान्यता है. माना जाता है कि यहां की शिवलिंग ईशान कोण की ओर झुकी हुई है जिस तरफ बाबा विश्वनाथ काशी विराजमान हैं.
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क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है, कि इस मंदिर की खास बात यह है, कि चाहे जितनी सुबह मंदिर में जाओ, मंदिर में पूजा होने के प्रमाण मिलते हैं. वे कहते हैं कि आज भी सबसे पहले सफेद घोड़े में सवार होकर अस्वस्थामा मंदिर पहुंचते हैं और पूजा करते हैं. बताया जाता है, कि जयपुर के राजा ने शिव मंदिर का माहत्म सुनने के बाद ऊंटों से धन भेज कर इस मंदिर का निर्माण कराया था.
बुजुर्गों का कहना है, कि पूर्व में असोथर कस्बा वर्तमान में स्थापित अश्वत्थामा मंदिर के पास है. तब मोटे महादेवन मंदिर के पास तालाब था. बताया जाता है, कि कुछ चरवाहे वहां पर जानवर चरा रहे थे, तभी शिवलिंग दिखाई पड़ा. काफी प्रयास के बाद शिवलिंग को खोदकर बाहर निकालने की कोशिश की गई. लेकिन, सफलता नहीं मिली. बाद में उसी स्थान पर शिवलिंग की पूजा की जाने लगी.
वहीं, मंदिर के मुख्य पुजारी पं. मदन गोपाल शुक्ला ने बताया, कि मंदिर का उद्गम कब हुआ, यह स्पष्ट नहीं है. लेकिन, इस अद्भूत शिवलिंग की पूजा करने से भक्तों की मुरादें पूरी होती हैं. मंदिर के कई तथ्य हैं, जिनसे मंदिर की ख्याति-ख्याति दूर दूर तक फैली हुई है.
(डिस्क्लेमर: यह खबर धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है)
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