मुजफ्फरपुर: लोकसभा चुनाव में महिलाओं को प्रत्याशी बनाने में भले की राजनीतिक दलों की ज्यादा रुचि नहीं दिखती है, लेकिन लोकतंत्र के इस महापर्व में आधी आबादी पिछले दो चुनावों से बढ़ चढ़कर भाग ले रहीं है. बिहार में महिलाओं के वोटिंग के आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं. इस बार भी बिहार का संसद में प्रतिनिधित्व करने वाले कई प्रत्याशियों के चयन में इनकी अहम भूमिका रहने की उम्मीद है.
महिलाओं ने अधिक मतदान किया: 2014 के आम चुनावों में जहा पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने अधिक मतदान किया था. वहीं, 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर बिहार के कई संसदीय क्षेत्रों तक जा पहुंचा. राजनीति प्रेक्षक इस बार इसमें और बढ़ोतरी की संभावना देख रहे हैं. 2019 के चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि तिरहुत, मिथिलांचल और सीमांचल की महिलाओं ने खुलकर अपने मत का प्रयोग किया.
सुपौल में 70 फीसदी महिलाओं ने मत डाला: हालांकि ज्यादा साक्षर और आर्थिक रूप से संपन्न संसदीय इलाकों की महिलाएं मतदान केंद्रों तक कम पहुंची. 2019 के मतदान प्रतिशत आंकड़ों के अनुसार, मिथिलांचल से सीमांचल तक महिलाओं ने सभी अवरोधों को दरकिनार कर वोट किया. सुपौल में 71.68 और किशनगंज 70.40 फीसदी महिलाओं ने मत डाला.
12 फीसदी तक अधिक महिलाएं पहुंची: वाल्मीकिनगर, पश्चिमी व पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, दरभंगा, मधुबनी सहित कई संसदीय इलाकों में तो पुरुषों की तुलना में 10 से 12 फीसदी तक अधिक महिलाएं मतदान केंद्रों तक पहुंचीं जो प्रत्याशियों की जीत-हार के फासले को तय करने में महत्वपूर्ण रही.
आत्मनिर्भर हो रही महिलाएं: विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार की महिला कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं के अलावा मजदूरी के लिए घर के पुरुष सदस्यों के बाहर चले जाने से भी यह आंकड़ा बढ़ा है. विशेषज्ञ सह वरिष्ठ पत्रकार अजय शाही बताते है कि जिन इलाकों में महिलाओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया है, उनमें से अधिकांश वे इलाके हैं. जहां से मजदूरी के पलायन दर काफी है. इसके अलावा प्रदेश और केंद्र सरकार ने महिला आरक्षण देने के अलावा उनके उत्थान के लिए भी कई योजनाएं चलाई गई है। इससे महिलाएं आत्मनिर्भर होने के साथ एक हद तक अपना निर्णय खुद लेने में सक्षम हुई हैं.
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