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VIDEO: बांके बिहारी की पोशाक इस ईरानी कला से होती तैयार, फिल्म देवदास में माधुरी भी दिखा चुकी इसकी झलक, तुगलक-अकबर ने भी माना था लोहा - Farrukhabad Zardozi Art - FARRUKHABAD ZARDOZI ART

फर्रुखाबाद के जरी जरदोजी की कारीगरी की पूरे देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी डिमांड है. लेकिन, महंगाई के चलते कारीगरों को अब काम कम मिल रहा है. कोरोना काल के दौरान लाखों कारीगर जिले से पलायन होकर चले गए. जरदोजी कला को राजनीतिक इच्छा शक्ति से बचाने की उम्मीद जताई जा रही है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 28, 2024, 1:33 PM IST

जरदोजी कारीगर परवेज और प्रोफेसर डॉ. अभिषेक शुक्ला ने दी जानकारी

फर्रुखाबाद: जिले के जरी जरदोजी वाले लहंगे पूरे देश में फेमस है. लहंगा के साथ-साथ साड़ी सलवार सूट दुपट्टा और यहां तक की इंडो वेस्टर्न ड्रेस में भी जरदोजी का काम हो रहा है. वहीं, मंदिर में भगवानों की पोशाक यहां से बनती हैं. शहर से मथुरा में बांके बिहारी,राधा कृष्ण की पोशाक बनकर जाती है. महंगाई की वजह से जरदोजी के काम पर असर पड़ रहा है. अब पहले के मुकाबले काम कम आने लगा है. जिससे, करीगरों की आर्थिक स्थिती पर असर पड़ रहा है. दुर्भाग्यपूर्ण कोरोना काल के दौरान लाखों कारीगर जिले से पलायन होकर चले गए.

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राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए, तो फर्रुखाबाद में यह मंशा नहीं है, कि इस औद्योगिक धरोहर को बचाकर रखा जाए. क्यों कि गृह उद्योग और कुटीर उद्योग में इसका बहुत ही बड़ा महत्व और योगदान रहा है. अगर इसकी राजनीतिक इच्छा शक्ति हो, तो उसका फिर से पुनर्वास किया जा सकता है. देवदास फिल्म में माधुरी दीक्षित ने जो लहंगा इस्तमाल किया था, वह भी फर्रुखाबाद के जरदोजी कारीगर ने ही तैयार किया था.

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विदेशों में भी है डिमांड: जरदोजी कारीगर परवेज ने ईटीवी भारत को बताया, कि फर्रुखाबाद में जरदोजी का इतिहास मुगलकाल या नवाबों के दौर से है. कपड़े या वस्त्र की जो कला है, वह काफी प्रचलित है. देश-विदेश में भी इसका बहुत ही ज्यादा महत्व है. यहां से माल कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन,लंदन, ऑस्ट्रेलिया आदि जगह जाता है.शहर में करीब 400 जरदोजी के कारखाने हैं. करीब 50 हजार कारीगर इस काम से जुड़ा हुआ है. जिसमें सबसे ज्यादा मुस्लिम कारीगर है. करोड़ों का व्यापार जरदोजी के काम से होता है. जिससे, फर्रुखाबाद की अर्थव्यवस्था बनी हुई है. जरदोजी की वजह से देश-विदेश में फर्रुखाबाद का नाम काफी प्रचलित है. इसलिए इस जिले को भी लोग पहचानते हैं. जिले का मेन कारोबार भी जारी जरदोजी ही है.

कारीगरों पर पड़ा है महंगाई का असर: जब ईटीवी भारत ने सवाल किया, कि क्या जरदोजी का काम मशीन से या हाथ की कारीगरी से होता है. जबाब में उन्होंने बताया, कि जरदोजी का काम हाथ की कारीगर से ही किया जाता रहा है. अब थोड़ा बहुत मशीन से भी होने लगा है. जब ईटीवी भारत ने सवाल किया, कि लखनऊ की चिकन के काम में फर्रुखाबाद की जरदोजी के काम में फर्क क्या है? जबाब में उन्होंने बताया, कि चिकन का काम एक प्लेन कपड़े पर रेशम की कढ़ाई है. यह एक एंब्रॉयडरी है जो की चिकन को कहते हैं..वो मशीन द्वारा चिकन की कढ़ाई का काम होता है. यह हेंड जरी जादोजी है इसमे जरी का भी काम होता है. जैसे करदाना मोती,कोरा,टपका,नक्काशी, सादी कसब आदि का हाथ के प्रयोग होता है. महंगाई की वजह से काम पर असर पड़ा है. अब पहले जितना काम नहीं मिल रहा है. एक साधारण साड़ी को तैयार करने में जरदोजी की कढ़ाई में एक महीने का समय लग जाता है, तब जाकर वह साड़ी या लहंगा पूर्ण तरीके से तैयार होती है. इस काम के लिए करीब 10 से 12 कारीगर बैठ कर काम करते है. साधारण साड़ी 8 से 10 दिन में तैयार की जा सकती है. लेकिन, शादी समारोह में पहनने वाली साड़ियों में कम से कम 1 महीने का समय लग जाता है.

इसे भी पढ़े-चिकनकारी और जरदोजी सीखकर हुनरमंद बन रहीं लड़कियां

जरदोजी की कला ईरान से भारत आई: बद्री विशाल डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर डॉक्टर अभिषेक शुक्ला ने बताया, कि जरदोजी की जो कल है वह ईरान से भारत में आई है. सबसे पहले दिल्ली सलतनत के दौरान मोहम्मदबीन तुगलक के के समय इस कला को बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया गया. अकबर ने बड़े पैमाने से महिलाओं की साड़ियों ,सलवार उनकी सजावट के आइटम को बनाने में उपयोग किया. फर्रुखाबाद इसका बहुत बड़ा केंद्र है.इसके अलावा जयपुर, बरेली आदि में जरदोजी का काम देखने को मिलेगा. जरदोजी का मतलब है, जर माने सोना दोजी मतलब कढ़ाई है. सोने की कढ़ाई, चांदी की कढ़ाई, हीरे जवारत की कढ़ाई, इस तरीके का काम बहुत बड़ा यह फर्रुखाबाद केंद्र रहा है.

राजनीतिक इच्छा हो तो हो सकता है पुनर्वास: प्रोफेसर ने बताया, कि दुर्भाग्यपूर्ण कोरोना काल के दौरान लाखों कारीगर जिले से पलायन होकर चले गए. राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो, फर्रुखाबाद में यह मंशा नहीं है, कि इस औद्योगिक धरोहर को बचाकर रखा जाए. क्यों, कि गृह उद्योग और कुटीर उद्योग में इसका बहुत ही बड़ा महत्व और योगदान रहा है. अगर इसकी राजनीतिक इच्छा हो तो इसका पुनर्वास किया जा सकता है. आपको जरदोजी की कला हर जगह देखने को मिल जाएगी. महिलाओं की साड़ियां पर,बिल्डिंग में पर्दों पर जरदोजी की कला, महिलाओं के आदि सामान पर यह जरदोजी कि कल देखने को मिल जाती है. देवदास फिल्म मे माधुरी दीक्षित ने जो लहंगा इस्तमाल किया था वह भी जरदोजी कारीगर ने ही तैयार किया था. इस लहंगें को फर्रुखाबाद में ही बनाया गया था. इसकी बहुत बड़े पैमाने पर डिमांड है. इसको बनाने में महीना का समय लग जाता है. यह एक बहुत ही बारिक कढ़ाई की कारीगरी है. इस तरीके के गृह उद्योग में कुटीर उद्योग को बचाने का प्रयास करना चाहिए. एक समय में यह फर्रुखाबाद की पहचान रही है.

यह भी पढ़े-यूपी में 7 दिनों तक भीषण गर्मी और हीट वेव का अलर्ट, 33 जिलों में चलेगी लू, रात में भी नहीं मिलेगी राहत - UP Weather Forecast

जरदोजी कारीगर परवेज और प्रोफेसर डॉ. अभिषेक शुक्ला ने दी जानकारी

फर्रुखाबाद: जिले के जरी जरदोजी वाले लहंगे पूरे देश में फेमस है. लहंगा के साथ-साथ साड़ी सलवार सूट दुपट्टा और यहां तक की इंडो वेस्टर्न ड्रेस में भी जरदोजी का काम हो रहा है. वहीं, मंदिर में भगवानों की पोशाक यहां से बनती हैं. शहर से मथुरा में बांके बिहारी,राधा कृष्ण की पोशाक बनकर जाती है. महंगाई की वजह से जरदोजी के काम पर असर पड़ रहा है. अब पहले के मुकाबले काम कम आने लगा है. जिससे, करीगरों की आर्थिक स्थिती पर असर पड़ रहा है. दुर्भाग्यपूर्ण कोरोना काल के दौरान लाखों कारीगर जिले से पलायन होकर चले गए.

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राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए, तो फर्रुखाबाद में यह मंशा नहीं है, कि इस औद्योगिक धरोहर को बचाकर रखा जाए. क्यों कि गृह उद्योग और कुटीर उद्योग में इसका बहुत ही बड़ा महत्व और योगदान रहा है. अगर इसकी राजनीतिक इच्छा शक्ति हो, तो उसका फिर से पुनर्वास किया जा सकता है. देवदास फिल्म में माधुरी दीक्षित ने जो लहंगा इस्तमाल किया था, वह भी फर्रुखाबाद के जरदोजी कारीगर ने ही तैयार किया था.

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विदेशों में भी है डिमांड: जरदोजी कारीगर परवेज ने ईटीवी भारत को बताया, कि फर्रुखाबाद में जरदोजी का इतिहास मुगलकाल या नवाबों के दौर से है. कपड़े या वस्त्र की जो कला है, वह काफी प्रचलित है. देश-विदेश में भी इसका बहुत ही ज्यादा महत्व है. यहां से माल कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन,लंदन, ऑस्ट्रेलिया आदि जगह जाता है.शहर में करीब 400 जरदोजी के कारखाने हैं. करीब 50 हजार कारीगर इस काम से जुड़ा हुआ है. जिसमें सबसे ज्यादा मुस्लिम कारीगर है. करोड़ों का व्यापार जरदोजी के काम से होता है. जिससे, फर्रुखाबाद की अर्थव्यवस्था बनी हुई है. जरदोजी की वजह से देश-विदेश में फर्रुखाबाद का नाम काफी प्रचलित है. इसलिए इस जिले को भी लोग पहचानते हैं. जिले का मेन कारोबार भी जारी जरदोजी ही है.

कारीगरों पर पड़ा है महंगाई का असर: जब ईटीवी भारत ने सवाल किया, कि क्या जरदोजी का काम मशीन से या हाथ की कारीगरी से होता है. जबाब में उन्होंने बताया, कि जरदोजी का काम हाथ की कारीगर से ही किया जाता रहा है. अब थोड़ा बहुत मशीन से भी होने लगा है. जब ईटीवी भारत ने सवाल किया, कि लखनऊ की चिकन के काम में फर्रुखाबाद की जरदोजी के काम में फर्क क्या है? जबाब में उन्होंने बताया, कि चिकन का काम एक प्लेन कपड़े पर रेशम की कढ़ाई है. यह एक एंब्रॉयडरी है जो की चिकन को कहते हैं..वो मशीन द्वारा चिकन की कढ़ाई का काम होता है. यह हेंड जरी जादोजी है इसमे जरी का भी काम होता है. जैसे करदाना मोती,कोरा,टपका,नक्काशी, सादी कसब आदि का हाथ के प्रयोग होता है. महंगाई की वजह से काम पर असर पड़ा है. अब पहले जितना काम नहीं मिल रहा है. एक साधारण साड़ी को तैयार करने में जरदोजी की कढ़ाई में एक महीने का समय लग जाता है, तब जाकर वह साड़ी या लहंगा पूर्ण तरीके से तैयार होती है. इस काम के लिए करीब 10 से 12 कारीगर बैठ कर काम करते है. साधारण साड़ी 8 से 10 दिन में तैयार की जा सकती है. लेकिन, शादी समारोह में पहनने वाली साड़ियों में कम से कम 1 महीने का समय लग जाता है.

इसे भी पढ़े-चिकनकारी और जरदोजी सीखकर हुनरमंद बन रहीं लड़कियां

जरदोजी की कला ईरान से भारत आई: बद्री विशाल डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर डॉक्टर अभिषेक शुक्ला ने बताया, कि जरदोजी की जो कल है वह ईरान से भारत में आई है. सबसे पहले दिल्ली सलतनत के दौरान मोहम्मदबीन तुगलक के के समय इस कला को बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया गया. अकबर ने बड़े पैमाने से महिलाओं की साड़ियों ,सलवार उनकी सजावट के आइटम को बनाने में उपयोग किया. फर्रुखाबाद इसका बहुत बड़ा केंद्र है.इसके अलावा जयपुर, बरेली आदि में जरदोजी का काम देखने को मिलेगा. जरदोजी का मतलब है, जर माने सोना दोजी मतलब कढ़ाई है. सोने की कढ़ाई, चांदी की कढ़ाई, हीरे जवारत की कढ़ाई, इस तरीके का काम बहुत बड़ा यह फर्रुखाबाद केंद्र रहा है.

राजनीतिक इच्छा हो तो हो सकता है पुनर्वास: प्रोफेसर ने बताया, कि दुर्भाग्यपूर्ण कोरोना काल के दौरान लाखों कारीगर जिले से पलायन होकर चले गए. राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो, फर्रुखाबाद में यह मंशा नहीं है, कि इस औद्योगिक धरोहर को बचाकर रखा जाए. क्यों, कि गृह उद्योग और कुटीर उद्योग में इसका बहुत ही बड़ा महत्व और योगदान रहा है. अगर इसकी राजनीतिक इच्छा हो तो इसका पुनर्वास किया जा सकता है. आपको जरदोजी की कला हर जगह देखने को मिल जाएगी. महिलाओं की साड़ियां पर,बिल्डिंग में पर्दों पर जरदोजी की कला, महिलाओं के आदि सामान पर यह जरदोजी कि कल देखने को मिल जाती है. देवदास फिल्म मे माधुरी दीक्षित ने जो लहंगा इस्तमाल किया था वह भी जरदोजी कारीगर ने ही तैयार किया था. इस लहंगें को फर्रुखाबाद में ही बनाया गया था. इसकी बहुत बड़े पैमाने पर डिमांड है. इसको बनाने में महीना का समय लग जाता है. यह एक बहुत ही बारिक कढ़ाई की कारीगरी है. इस तरीके के गृह उद्योग में कुटीर उद्योग को बचाने का प्रयास करना चाहिए. एक समय में यह फर्रुखाबाद की पहचान रही है.

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