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हर कोई है फुलवा आलू के स्वाद का मुरीद, 500 सालों से की जा रही है खेती, जानिए क्या है खासियत

फर्रुखाबाद में बड़े पैमाने पर आलू की खेती (Farrukhabad Phulwa Potato Farming ) की जाती है. यहां विभिन्न प्रजातियों के आलू पैदा होते हैं. इनमें से एक फुलवा आलू भी है.

फर्रुखाबाद में काफी किसान आलू की खेती करते हैं.
फर्रुखाबाद में काफी किसान आलू की खेती करते हैं.
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 9, 2024, 8:32 AM IST

फर्रुखाबाद में काफी किसान आलू की खेती करते हैं.

फर्रुखाबाद : जिले में आलू की भरपूर पैदावार होती है. यहां खास किस्म के आलू की खेती भी की जाती है. 500 साल से फुलवा आलू की खेती होती चली आ रही है. इसका स्वाद काफी बेहतर होता है. दूसरी प्रजाति के आलू की तुलना में इस प्रजाति के दाम ज्यादा होते हैं. जिले में पिछले वर्ष 43200 हेक्टेयर क्षेत्रफल में आलू का पैदावार हुई थी. इसमें औसत 300 से 400 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन हुआ था. इस वर्ष भी एरिया करीब वही है. हालांकि इस बार उत्पादन कम होने के आसार हैं. वजह ये है कि जिस वक्त आलू की कंद बनती है, उस वक्त तापमान ज्यादा था. इससे उत्पादन 10 से 15% तक गिरावट आएगी.

500 साल से हो रही फुलवा आलू की खेती : आलू के बगैर सब्जी की रंगत फीकी रहती है. आलू के चिप्स, नमकीन आदि बड़ों से लेकर बच्चों को भी काफी पसंद आते हैं. आलू की कई प्रजातियां हैं. जिले में बड़े पैमाने पर इनकी खेती की जाती है. आलू की सबसे प्राचीन प्रजाति फुलवा को माना जाता है. इसका जलवा आज भी कायम है. इसका स्वाद काफी बेहतर होता है. सामान्य आलू से इसकी कीमत ज्यादा होती है. होली पर स्वादिष्ट पापड़ आदि बनाने में बहुत ज्यादा इनका इस्तेमाल किया जाता है. यह आलू दूसरे राज्यों में भी भेजा जाता है. जानकार बताते हैं कि करीब 500 वर्ष पुरानी नॉन हाइब्रिड आलू फुलवा की फसल डेढ़ सौ दिनों में होती है. फुटकर बाजार में सामान्य आलू 10 रुपए प्रति किलो है. जबकि फुलवा 15 रुपये प्रति किलो बिक रहा है. फुलवा प्रजाति की आलू में शुगर की मात्रा कम रहती है. इसलिए यह सेहत के लिए भी फायदेमंद है.

500 सालों से की जा रही इस खास आलू की खेती.
500 सालों से की जा रही इस खास आलू की खेती.

पुर्तगाली व्यापारी लेकर आए थे आलू : जिला उद्यान अधिकारी आरएन वर्मा ने बताया कि शिमला की आलू अनुसंस्था का उद्गम स्थल दक्षिणी अमेरिका के पेरू बोलीविया के पास एंडीज पर्वत में माना जाता है. भारत में आलू 17वीं शताब्दी के शुरू में पुर्तगाली व्यापारी लाए थे. पिछले वर्ष में 43200 हेक्टेयर क्षेत्रफल में आलू की पैदावार हुई थी. औसत 300 से 400 कुन्तल प्रति हेक्टेयर उत्पादन हुआ था. इस वर्ष भी एरिया करीब वही है. इस बार उत्पादन कम है. जिस समय आलू का कंद बनता है, उस वक्त तापमान कम था. इससे उत्पादन 10 से 15% कम होगा. फर्रुखाबाद में चिप सोना वन व 3, 3797, कुफरी बहार, मोहन और ख्याति प्राप्त पुखराज प्रजातियों की आलू की खेती की जाती है. जिले में सारे कोल्ड स्टोरेज चल रहे हैं. भंडारण के लिए कोई समस्या नहीं है. पिछले वर्ष के आलू की निकासी हो चुकी है. अब नए भंडारण की तैयारी चल रही है. फर्रुखाबाद से यूपी पूर्वोत्तर जिलों में आलू की काफी डिमांड थी. छत्तीसगढ़, असम ,बिहार, बंगाल की डिमांड थी. वहां पर आलू भेजा गया. नेपाल में भी आलू भेजा गया था. सिद्धि विनायक ग्रुप की तरफ से एक इंडस्ट्री का खीमसेपुर में प्रपोजल हो गया है. अगर यह स्थापित हो जाती है तो जिले के आलू की यहां पर काफी मांग रहेगी. किसानों को अच्छे दाम भी मिल सकेंगे.

यह भी पढ़ें : श्री काशी विश्वनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए विशालाक्षी के पास बनेगा नया रास्ता, प्रसाद का होगा वितरण

फर्रुखाबाद में काफी किसान आलू की खेती करते हैं.

फर्रुखाबाद : जिले में आलू की भरपूर पैदावार होती है. यहां खास किस्म के आलू की खेती भी की जाती है. 500 साल से फुलवा आलू की खेती होती चली आ रही है. इसका स्वाद काफी बेहतर होता है. दूसरी प्रजाति के आलू की तुलना में इस प्रजाति के दाम ज्यादा होते हैं. जिले में पिछले वर्ष 43200 हेक्टेयर क्षेत्रफल में आलू का पैदावार हुई थी. इसमें औसत 300 से 400 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन हुआ था. इस वर्ष भी एरिया करीब वही है. हालांकि इस बार उत्पादन कम होने के आसार हैं. वजह ये है कि जिस वक्त आलू की कंद बनती है, उस वक्त तापमान ज्यादा था. इससे उत्पादन 10 से 15% तक गिरावट आएगी.

500 साल से हो रही फुलवा आलू की खेती : आलू के बगैर सब्जी की रंगत फीकी रहती है. आलू के चिप्स, नमकीन आदि बड़ों से लेकर बच्चों को भी काफी पसंद आते हैं. आलू की कई प्रजातियां हैं. जिले में बड़े पैमाने पर इनकी खेती की जाती है. आलू की सबसे प्राचीन प्रजाति फुलवा को माना जाता है. इसका जलवा आज भी कायम है. इसका स्वाद काफी बेहतर होता है. सामान्य आलू से इसकी कीमत ज्यादा होती है. होली पर स्वादिष्ट पापड़ आदि बनाने में बहुत ज्यादा इनका इस्तेमाल किया जाता है. यह आलू दूसरे राज्यों में भी भेजा जाता है. जानकार बताते हैं कि करीब 500 वर्ष पुरानी नॉन हाइब्रिड आलू फुलवा की फसल डेढ़ सौ दिनों में होती है. फुटकर बाजार में सामान्य आलू 10 रुपए प्रति किलो है. जबकि फुलवा 15 रुपये प्रति किलो बिक रहा है. फुलवा प्रजाति की आलू में शुगर की मात्रा कम रहती है. इसलिए यह सेहत के लिए भी फायदेमंद है.

500 सालों से की जा रही इस खास आलू की खेती.
500 सालों से की जा रही इस खास आलू की खेती.

पुर्तगाली व्यापारी लेकर आए थे आलू : जिला उद्यान अधिकारी आरएन वर्मा ने बताया कि शिमला की आलू अनुसंस्था का उद्गम स्थल दक्षिणी अमेरिका के पेरू बोलीविया के पास एंडीज पर्वत में माना जाता है. भारत में आलू 17वीं शताब्दी के शुरू में पुर्तगाली व्यापारी लाए थे. पिछले वर्ष में 43200 हेक्टेयर क्षेत्रफल में आलू की पैदावार हुई थी. औसत 300 से 400 कुन्तल प्रति हेक्टेयर उत्पादन हुआ था. इस वर्ष भी एरिया करीब वही है. इस बार उत्पादन कम है. जिस समय आलू का कंद बनता है, उस वक्त तापमान कम था. इससे उत्पादन 10 से 15% कम होगा. फर्रुखाबाद में चिप सोना वन व 3, 3797, कुफरी बहार, मोहन और ख्याति प्राप्त पुखराज प्रजातियों की आलू की खेती की जाती है. जिले में सारे कोल्ड स्टोरेज चल रहे हैं. भंडारण के लिए कोई समस्या नहीं है. पिछले वर्ष के आलू की निकासी हो चुकी है. अब नए भंडारण की तैयारी चल रही है. फर्रुखाबाद से यूपी पूर्वोत्तर जिलों में आलू की काफी डिमांड थी. छत्तीसगढ़, असम ,बिहार, बंगाल की डिमांड थी. वहां पर आलू भेजा गया. नेपाल में भी आलू भेजा गया था. सिद्धि विनायक ग्रुप की तरफ से एक इंडस्ट्री का खीमसेपुर में प्रपोजल हो गया है. अगर यह स्थापित हो जाती है तो जिले के आलू की यहां पर काफी मांग रहेगी. किसानों को अच्छे दाम भी मिल सकेंगे.

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