चित्रकूट: प्रसिद्ध धार्मिक नगरी चित्रकूट अपनी आध्यात्मिक महत्ता और सांस्कृतिक धरोहर के लिए जाना जाता है. मकर संक्रांति के दिन चित्रकूट के भरतकूप में लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. मकर संक्रांति के दिन से लगातार 5 दिनों तक मेला लगता है. यह स्थान हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है और इसका उल्लेख गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के अयोध्याकांड और अरण्डकाण्ड में मिलता है. बता दें कि इस बार यह मेला 14 से 19 जनवरी तक लगा है. वहीं, मेले के लिए प्रशासन ने सुरक्षा और व्यवस्था के लिए पुख्ता इंतजाम किए है.
भरतकूप की पौराणिक कथा: भरतकूप का इतिहास त्रेता युग से जुड़ा है. जब भगवान श्री राम को उनकी मां कैकेयी के वरदान के कारण वनवास जाना पड़ा, तो भरत उन्हें अयोध्या वापस लाने के लिए चित्रकूट पहुंचे. अपने साथ उन्होंने भगवान राम के राज्याभिषेक के लिए सभी तीर्थों का पवित्र जल और सामग्री लाई थी. जब भगवान राम ने अयोध्या लौटने से मना कर दिया, तो भरत ने वह सारा जल और सामग्री ऋषि अत्रि के कहने पर भरत कूप के इसी कुएं में डाल दिया, तभी से इस स्थान को भरतकूप कहा जाने लगा और इसका जल पवित्र माना जाने लगा.
हर साल लगता है भव्य मेलाः हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर भरतकूप में भव्य मेला लगता है. इस दिन यहां श्रद्धालु स्नान, पूजा-पाठ और दान-पुण्य करके अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने की कामना करते हैं. इस मेले में धार्मिक अनुष्ठान, आध्यात्मिक गतिविधियां और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. इसके अलावा, मेले में तरह-तरह के झूले और मनोरंजन के साधन होते हैं, जो लोगों को आकर्षित करते हैं. यहां घरों को सजाने के लिए आवश्यक सामग्री आसानी से मिल जाती है. मेले में मिठाइयों का स्वादमेले में कई तरह की मिठाइयां मिलती हैं, लेकिन गुड़ की जलेबी सबसे लोकप्रिय है. मान्यता है कि इस दिन गुड़ की जलेबी खाना शुभ होता है.
आस्था का प्रतीक है जलः भरतकूप का जल आज भी भक्तों के लिए आस्था का प्रतीक है और इसे पवित्र मानकर पूजा-पाठ के लिए ले जाया जाता है. यह मेला न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं को भी जीवंत रखता है. भारत के विभिन्न स्थानों से चित्रकूट के भरपूर मंदिर श्रद्धालुओं ने कहा कि यह पवित्र स्थान सनातन धर्म के आस्था से जुड़ा हुआ है. चित्रकूट के बाद यही सबसे बड़ा पवित्र स्थान है. यहां सभी तीर्थों का जल है, जो स्वयं अत्रिमुनि के आदेश पर भरत जी इस कुंए में डाला था.
भक्त क्या बोलेः भरत कूप मंदिर पहुंचे श्रद्धालु गया प्रसाद ने बताया कि मेरी आस्था इस मंदिर और कुएं से जुड़ी हुई है. मैं जब भी समय पाता हूं तब मैं इस मंदिर में दर्शन करने जरूर आता हूं, क्योंकि मेरी मनोकामना इसी मंदिर के चलते पूर्ण हुई है. मैं बेरोजगार था जब मैं यहां पर अर्जी लगाई तो मुझे चंद दिनों में रेलवे से नौकरी का ऑफर आ गया और आज मैं रेलवे में लिपिक पद पर तैनात हूं.
सेवादार ने क्या कहाः मंदिर के सेवादार पिंटू गौतम ने बताया कि हिंदू धर्म में भरत कूप का बहुत महत्व है. भरतकूप मंदिर के सामने स्थित कुंए में भगवान श्री राम के इनकार करने पर राज्य अभिषेक के लिए लाया गया सभी तीर्थों का जल और सामग्री डाली गई थी. जिसका उल्लेख अरण्ड काण्ड और रामचरितमानस के अयोध्या कांड में मिल जाता है.
(नोटः यह खबर धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है)
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