उत्तरकाशी: आबादी के लिए खतरा बने वरुणावत पर्वत पर 21 साल पूर्व वानस्पतिक उपचार सही ढंग से होता तो इस पर दोबारा भूस्खलन सक्रिय नहीं होता. पर्यावरणविदों का कहना है कि जिस तरह का वानस्पतिक उपचार होना चाहिए था वैसा नहीं हुआ. पर्वत के शीर्ष पर ट्रीटमेंट के नाम पर सीमेंट लगाया गया. इस कारण उस पर पानी रिसने और भूकंप, वनाग्नि की हलचलों के कारण पहाड़ पर जहां मिट्टी कच्ची है, वहां से दोबारा भूस्खलन सक्रिय हो गया है.
साल 2003 में वरुणावत पर तीन स्थानों से भूस्खलन सक्रिय हुआ था. इस कारण बस अड्डे पर बहुमंजिला होटलों के साथ ही 81 सरकारी और गैर सरकारी भवन जमींदोज हो गए थे. उसके बाद केंद्र सरकार ने करीब 282 करोड़ की धनराशि वरुणावत ट्रीटमेंट के लिए दिए थे. उसमें वरुणावत पर्वत के भूस्खलन जोन के ट्रीटमेंट के साथ ही वहां पर पानी को रोकने के लिए घास लगाई थी. इसके साथ ही ताबांखाणी में सुरंग का निर्माण किया गया.पर्यावरणविद् सुरेश भाई बताते हैं कि वरुणावत त्रासदी के समय प्रदेश के विभिन्न स्थानों से पर्यावरण संरक्षण से जुड़े लोग यहां पर एकत्रित हुए. जो कि लगातार ट्रीटमेंट कार्यों की निगरानी भी कर रहे थे.
उस समय सभी पर्यावरणविदों ने शासन-प्रशासन को सुझाव दिया था कि यहां पर सीमेंट की बजाय क्रेट वाल लगाकर झाड़ीदार वृक्ष सहित जड़ी-बूटी और बांज-बुरांश के पेड़ लगाए जाएं. इससे पहाड़ पर वजन भी नहीं बढ़ेगा और पानी को रिसने से भी रोकेगा. लेकिन इन सुझावों को दरकिनार कर दिया गया. सुरेश भाई ने कहा कि वैज्ञानिक तरीकों से वहां पर सीमेंट का लेप लगाकर घास लगाई गई. लेकिन आज उस घास का कुछ पता नहीं है. वहीं अगर निगरानी न की जाए. वहीं सीमेंट की उम्र मात्र 20 से 25 वर्ष की होती है, जो अब वरुणावत के ऊपर समाप्त हो गई है. यही कारण है कि वहां से भारी बरसात का पानी पहाड़ में रिस रहा है. वहीं जनपद में लगातार आ रहे भूकंप के झटकों और वनाग्नि के कारण पहाड़ कच्चा पड़ गया है. इसके साथ ही जहां पर भी पहाड़ी मिट्टी कमजोर पड़ रही है. वहां से भूस्खलन सक्रिय हो गया है.
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