कोटा : हर साल 15 सितंबर को इंजीनियर्स डे मनाया जाता है. भारत के प्रसिद्ध इंजीनियर व भारतरत्न सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का इसी दिन जन्म हुआ था. वहीं, राजस्थान का कोटा शहर भी इंजीनियरिंग एंट्रेंस कोचिंग के लिए जाना जाता है. यहां लाखों स्टूडेंट इंजीनियरिंग एंट्रेंस की तैयारी के लिए आते हैं और अथक मेहनत के बाद बड़े इंजीनियरिंग संस्थानों में दाखिला प्राप्त करते हैं. वहीं, इंजीनियरिंग शिक्षा को कोटा भलीभांति समझता है. वर्तमान में इंजीनियरिंग संस्थानों में काफी अंतर देखने को मिल रहा है, जहां शीर्ष संस्थानों में दाखिले के लिए लंबी कतारें हैं तो दूसरी तरफ निचले पायदान के इंस्टिट्यूट खाली पड़े हैं. इन सबके पीछे प्लेसमेंट और पढ़ाई का स्तर ही एक मात्र कारण है.
एजुकेशन एक्सपर्ट देव शर्मा का मानना है कि सब गुणवत्ता का खेल है, जहां भी इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूशंस क्वालिटेटिव कोर्सेज चलाते हैं, वहां इंजीनियरिंग सीट भर जाती है और उन सीट्स की वैल्यू भी है. ऐसा इसलिए क्योंकि अच्छे लेवल पर प्लेसमेंट होते हैं. वहीं, जहां गुणवत्ताहीन शिक्षा है, वहां प्लेसमेंट नहीं होते हैं. लगातार गुणवत्ताहीन शिक्षा रखी गई तो फिर प्लेसमेंट गिरते चले जाते हैं. ऐसी स्थिति आ जाती है कि जहां 12वीं की परसेंटेज की बाध्यता कम कर दी जाती है. जेईई की लोवर रैंक पर एडमिशन देते हैं. फिर भी कैंडिडेट नहीं आने पर केवल 12वीं के आधार पर ही प्रवेश दे दिया जाता है. ये लोग गुणवत्ता से समझौता कर लेते हैं. इंडस्ट्री में क्या कुछ लेटेस्ट ट्रेंड चल रहा है. इसकी जानकारी भी बेहद जरूरी है. जब तक मानक स्तर नहीं होगा तब तक यही स्थिति बनी रहेगी.
इसे भी पढ़ें - गर्ल्स पावर : 7 साल में 4 गुना ज्यादा हुईं IITian Girls, फीमेल पूल कोटे का उठा रहीं फायदा - Female Students in IIT
देश में 3000 से ज्यादा इंजीनियरिंग संस्थान : भारत में करीब 3000 के आसपास इंजीनियरिंग संस्थान हैं. इनमें 200 यूनिवर्सिटी भी शामिल हैं. इनमें प्राइवेट, डीम्ड, गवर्नमेंट व सेंट्रल यूनिवर्सिटी हैं. वहीं, हर साल लाखों की संख्या में स्टूडेंट प्रवेश लेते हैं, लेकिन प्लेसमेंट की बात करें या फिर पैकेज की तो कुछ ही संस्थान इसमें टॉप लेवल पर बने हुए हैं. इनमें कुछ आईआईटी और एनआईटी के साथ-साथ निजी संस्थान भी शामिल है, जबकि शेष संस्थानों में प्रवेश के लिए भी कोई कतार नहीं होती है. वहां जाने वाले हर कैंडिडेट को आसानी से एडमिशन मिल जाता है. वहां कोई बाध्यता भी नहीं होती है. केवल छात्र 12वीं पास होना चाहिए.
बड़े संस्थानों में मिल रहे भारी भरकम पैकेज : कोटा के निजी कोचिंग संस्थान के एजुकेशन एक्सपर्ट अमित आहूजा ने बताया कि किसी भी इंजीनियरिंग संस्थान का चयन करने से पहले उसके अकादमिक प्लेसमेंट फीस, फैकल्टी, फैसिलिटी, एलुमिनि, खानपान, लोकेलिटी, कॉलेज रैंकिंग, तकनीकी करिकुलम व एक्सपोजर को देखना जरूरी होता है. आज देश के शीर्ष संस्थान इन सभी मुद्दों पर ध्यान देकर स्टूडेंट को आगे बढ़ाने में जुटे हुए हैं. उनके पास आउट इंजीनियरिंग ग्रैजुएट्स इकॉनामी के एरिया इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, आईटी व सॉफ्टवेयर, स्टार्टअप, फाइनेंस और डाटा एनालिटिक्स, कंसलटिंग, रिसर्च एंड डवलपमेंट, सर्विसेज, एजुकेशन, एफएमसीजी और पीएसयू में अच्छे पैकेज मिल रहे हैं. वर्ल्ड की टॉप कंपनी और ब्रांड गूगल, माइक्रोसाफ्ट, एप्पल, फेसबुक व आईबीएम स्टूडेंट्स को लाख से करोड़ तक के पैकेज पर सलेक्ट करते हैं.
इसे भी पढ़ें - Kota Institute Fees : मेडिकल-इंजीनियरिंग करना इस साल किफायती, महज 2 लाख में कर सकते हैं पूरे साल पढ़ाई - Kota Coaching
हाई क्वालिफाइड मिल रहे तो लो क्वालिफाइड को क्यों चुनेंगे : ज्यादातर कंपनियां बड़े संस्थानों में अपने प्लेसमेंट ड्राइव चलाती हैं. हर साल अच्छा टैलेंट पूल करती हैं और अपनी कंपनी के बढ़ोतरी के लिए लेकर जाती है. उच्चतम संस्थानों में योग्य स्टूडेंट्स आसानी से मिल जाते हैं, क्योंकि उनमें स्टूडेंट्स के एनालिटिकल, लॉजिकल, एप्टीट्यूड को विकसित और एक्सप्लोर करने के लिए बहुत सी प्रतिस्पर्धाएं आयोजित कराई जाती हैं. इससे स्टूडेंट्स की भविष्य में आने वाली किसी भी प्रतिस्पर्धा व चुनौती का सामने करने की क्षमता बढ़ जाती है. इसी कारण हाई क्वालिफाइड कैंडिडेट को ही कंपनियां चुनती हैं. साल 2013 में 126749 कैंडिडेट्स ने जेईई एडवांस्ड के लिए अप्लाई किया था. ये लोग जेईई मेन से चयनित होकर पहुंचे थे, लेकिन अब 2024 में संख्या 186585 है. ऐसे में इसमें लगातार बढ़ोतरी हुई है.
ये भी कारण है प्लेसमेंट नहीं होने के : अभिभावकों व स्टूडेंट्स के मन में आज इंजीनियरिंग सेक्टर में रोजगार की कमी को लेकर कई तरह के सवाल उठते हैं कि हर साल इतनी बड़ी संख्या में इंजीनियर्स देश में ग्रेजुएट हो रहे हैं तो उन्हें रोजगार के अवसर मिल पाता है या नहीं. वहीं, हकीकत यह है कि यदि स्टूडेंट्स किसी सामान्य या निचले की रैंक वाले इंजीनियरिंग संस्थान से डिग्री हासिल करता है या फिर स्टूडेंट्स की कॉलेज में पढ़ाई के दौरान अच्छी परफॉर्मेंस न होना या अकादमिक बैकलॉग होने की सूरत में उसे प्लेसमेंट के दौरान मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
इसे भी पढ़ें - IIT जोधपुर में हिंदी में भी होगी इंजीनियरिंग की पढ़ाई, इसी सत्र से लागू, बना देश का पहला संस्थान - IIT Jodhpur
सरकारी के हालात और भी बुरे : राजस्थान तकनीकी यूनिवर्सिटी के डाटा की बात की जाए तो साल 2022 में यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड कॉलेज में महज 40 फीसदी ही एडमिशन हुए थे. 60 फीसदी के आसपास सीट खाली थी. साल 2022 में सरकारी और निजी मिलकर 85 कॉलेज इसमें थे. इनमें 18662 सीट पर एडमिशन होने थे, जबकि एडमिशन 7654 ही हुए और 11008 सीट खाली थी. 2022 में ही आरटीयू से एफिलिएटेड सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में 1870 सीट पर एडमिशन होने थे, लेकिन केवल 316 कैंडिडेट ने ही एडमिशन लिया था. जबकि 1554 सीट खाली थी. इनमें धौलपुर में एक भी एडमिशन नहीं हुआ था, जबकि करौली में 12 और बारां में 13 एडमिशन हुए थे.
मैथमेटिक्स लेने के लिए आईक्यू भी जरूरी : एक्सपर्ट देव शर्मा का कहना है कि ऐसा नहीं होना चाहिए कि इंजीनियरिंग की सीट संस्थान के पास है तो सभी को एडमिशन दे दें. जबकि पहले मैथमेटिक्स सब्जेक्ट लेने के लिए स्कूलों में भी आईक्यू लेवल देखा जाता था. अच्छी परसेंटेज वाले कैंडिडेट को ही मैथमेटिक्स सब्जेक्ट दिया जाता था. आज की स्थिति में डिमांड और सप्लाई से सब बदल गया है. अब कोई मना करने वाला नहीं है. एक इंस्टीट्यूशन मना करेगा तो दूसरा एडमिशन देगा. बाद में यह अच्छे इंजीनियरिंग संस्थान में एडमिशन नहीं ले पाते हैं तो कंप्रोमाइज कर लेते हैं. समाज और परिवार का भी दबाव रहता है. इसके बाद रिजल्ट नहीं मिल पाते हैं और प्लेसमेंट नहीं मिलते हैं.