जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने बुधवार को जालौर के ओडवाड़ा गांव में राजस्व भूमि से बेदखली के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की. इस दौरान कोर्ट ने तहसीलदार को याचिकाकर्ताओं के दस्तावेजों की जांच करने के बाद विधि सम्मत आदेश पारित करने के निर्देश दिए है. जस्टिस दिनेश मेहता की एकलपीठ के समक्ष ओडवाडा गांव के सैकड़ों ग्रामीणों की ओर से दायर अलग-अलग याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए उनका निस्तारण किया गया.
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता श्याम पालीवाल सहित अन्य अधिवक्ताओं ने याचिकाए पेश की. कोर्ट को बताया कि हाईकोर्ट खंडपीठ में अवमानना याचिका की पालना में प्रशासन की ओर से बेदखली की कारवाई को अंजाम दिया जा रहा है, जबकि कइयों के पास भूमि का पट्टा व सनद है. कोर्ट ने सुनवाई के बाद सभी याचिकाओं को निस्तारित करते हुए कहा कि सभी याचिकाकर्ता अपने स्वामित्व सम्बंधी पट्टे, दस्तावेजी साक्ष्य और भुगतान की रसीद जैसे सभी दस्तावेज की प्रमाणित प्रतिलिपि 31 जुलाई 2024 को या उससे पहले तहसीलदार के समक्ष पेश करें. तहसीलदार आहोर प्रत्येक याचिकाकर्ता की ओर से दिए गए जवाब और दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर प्रत्येक मामले पर विचार करेंगे.
कोर्ट ने कहा कि तहसीलदार यह निष्कर्ष दर्ज करेंगे कि क्या इन याचिकाकर्ताओं के पास वैध स्वामित्व पट्टा या कोई अन्य अधिकार है. यह कार्यवाही 30 सितम्बर 2024 से पहले पूरी कर ली जाए. तहसीलदार अपनी जांच में इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि याचिकाकर्ताओं मे से किसी के पास वैध हक पट्टा नहीं है तो वह ऐसे कब्जाधारियों को नोटिस जारी करने की तिथि से 15 दिन की अवधि में अपने निर्माण या कब्जे को हटाने के लिए निर्देश देगा. यदि उसके बाद ऐसा अतिक्रमण नहीं हटाया जाता है तो तहसीलदार कानून के अनुसार उचित कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र होगा.
हाईकोर्ट ने कहा कि तहसीलदार को कब्जाधारियों की ओर से प्रस्तुत पट्टे सनद या हक विलेखों की सत्यता या प्रमाणिकता के बारे में संदेह है तो वह ग्राम पंचायत ओडवाड़ा या विकास अधिकारी आहोर से अपेक्षित रिपोर्ट तलब करेंगे. गौरतलब है कि पिछले दिनों ओडवाड़ा में अतिक्रमण के खिलाफ प्रशासन की कारवाई को लेकर बवाल मच गया था और सरकार ने केबिनेट मंत्री को मौके पर भेजकर रिपोर्ट मांगी थी.