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पिछले पे-कमीशन का 9000 करोड़ एरियर बकाया, अगला कमीशन सिर पर, सुखविंदर सरकार को चैन नहीं लेने देगी कर्मचारियों-पेंशनर्स की देनदारी - Himachal Employees Arrears Dues

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jun 28, 2024, 7:11 AM IST

Himachal Govt Economic Crisis: हिमाचल प्रदेश में बढ़ता कर्ज का बोझ सुक्खू सरकार के लिए मुसीबत बनता जा रहा है. छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद हिमाचल में सरकारी कर्मियों के वेतन-पेंशन का खर्च बढ़ गया है. जबकि हिमाचल की रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट लगातार घट रही है. जिससे सरकार वेतन व पेंशन सहित देनदारियों के मोर्चे पर गंभीर संकट में फंस कर रह जाएगी.

HIMACHAL EMPLOYEES ARREARS DUES
हिमाचल में कर्मचारियों का 9000 करोड़ एरियर बकाया (ETV Bharat)

शिमला: सरकारी कर्मचारियों की एरियर आदि की देनदारी और वेतन-पेंशन का बढ़ता खर्च सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को चैन की नींद नहीं लेने देगा. जोड़-तोड़ कर किसी तरह सुखविंदर सरकार इस साल वेतन व पेंशन का खर्च निकाल देगी, लेकिन अगले साल से संकट और गंभीर हो जाएगा. हिमाचल में छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद सरकारी कर्मियों के वेतन-पेंशन का खर्च बढ़ गया है. पिछले पे कमीशन के एरियर का 9000 करोड़ रुपए बकाया है. यानी कर्मचारियों की 9000 करोड़ रुपए की देनदारी सरकार के जिम्मे है. इससे भी बड़ी चिंता की बात है कि वर्ष 2026 में नए यानी सातवें पे कमीशन का समय आ जाएगा. कोढ़ पर खाज ये है कि हिमाचल की रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट लगातार घट रही है.

इस बार वित्तायोग ने यदि हिमाचल पर मेहरबानी नहीं की तो सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार वेतन व पेंशन सहित देनदारियों के मोर्चे पर गंभीर संकट में फंस जाएगी. पूर्व की भाजपा सरकार के समय राज्य में कर्मचारियों के लिए छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू किया गया था. जयराम सरकार ने एरियर की एक किस्त के रूप में पचास हजार रुपए जारी किए थे. उसके बाद से एरियर की अदायगी नहीं हुई है. इस समय कर्मचारियों के एरियर की 9000 करोड़ की अदायगी बाकी है. इधर, पिछले वेतन आयोग के संशोधित वेतनमान के एरियर की देनदारी बाकी है, उधर वर्ष 2026 में अगला पे-कमीशन सिर पर आ गया है.

अगले साल की कमाई 17044 करोड़, खर्च 26722 करोड़

हिमाचल के इस साल के बजट पर निगाह डालें तो वेतन पर 25 फीसदी व पेंशन पर 17 फीसदी खर्च होता है. यानी सौ रुपए को मानक रखें तो वेतन व पेंशन पर खर्च 42 रुपए है. फिर कर्ज को चुकाने और लिए गए कर्ज के ब्याज की अदायगी पर भी अच्छी-खासी धनराशि खर्च होती है. ऐसे में विकास के लिए बहुत कम पैसा बचता है. नए वेतन आयोग के लागू होने के बाद संशोधित वेतनमान के एरियर का बकाया तो एक तरफ रहा, सरकार को हर महीने वेतन व पेंशन का खर्च पूरा करना मुश्किल हो रहा है. अगले वित्त वर्ष यानी 2025-2026 की बात करें तो साल भर में वेतन के लिए 15,862 करोड़ और पेंशन के लिए 10,800 करोड़ रुपए की रकम चाहिए. दोनों को मिला दें तो ये खर्च 26,722 करोड़ रुपए साल का होगा. वहीं, कमाई की बात करें तो राज्य सरकार को 2025-26 में सारे संसाधनों से 17,044 करोड़ रुपए ही मिलेंगे. यानी कमाई से अधिक खर्च हो जाएगा.

घट रही रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट, बढ़ रही मुसीबत

वित्त आयोग की सिफारिश के बाद केंद्र सरकार से राज्यों को रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट मिलती है. इससे राज्य सरकार को अपनी आर्थिक गाड़ी धकेलने में आसानी होती है. हिमाचल के लिए चिंता की बात है कि यहां राजस्व घाटा अनुदान यानी रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट लगातार घट रही है. पूर्व में वित्तायोग ने जो फार्मूला लगाया था वो टेपर ग्रांट का था. यानी हर साल ग्रांट घटती जाती है अथवा यूं कहें कि उसमें तय फार्मूले के तहत कटौती होती रहती है. ये हिमाचल सहित देश के 11 राज्यों के लिए था. अब हिमाचल प्रदेश को वित्त वर्ष 2025-26 में केंद्र सरकार से जारी होने वाली ग्रांट पचास प्रतिशत से भी कम हो जाएगी. इस कारण केंद्र से आने वाले राजस्व घाटा अनुदान से वेतन व पेंशन देने में जो सहायता मिलती थी, वो कम हो जाएगी. यानी अब अधिकांश बोझ राज्य सरकार को खुद उठाना होगा. मौजूदा वित्त वर्ष यानी 2024-25 में हिमाचल को केंद्र से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के रूप में 6258 करोड़ रुपए मिल रहे हैं. यानी औसतन महीने में 500 करोड़ से अधिक केंद्र से इस मद में आते हैं. इससे वेतन व पेंशन का खर्च उठाने में थोड़ी सहूलियत हो जाती है.

अगला साल लेकर आएगा चुनौती

चूंकि राजस्व घाटा अनुदान लगातार घट रहा है, लिहाजा वित्त वर्ष 2025-26 में यह महज 3257 करोड़ रह जाएगा. यानी महीने में तीन सौ करोड़ रुपए से भी कम मिलेंगे. उधर, वेतन का खर्च ही 20 हजार करोड़ से अधिक होगा. अगर पिछला रिकॉर्ड देखें तो वित्त वर्ष 2021-22 में हिमाचल को रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के रूप में 10249 करोड़ रुपए मिले थे. यानी नौ सौ करोड़ रुपए से कुछ ही कम रकम हर महीने मिलती थी. इससे काफी राहत थी. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने इसी दिक्कत को 16वें वित्त आयोग के साथ साझा किया है. नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने भी वित्त आयोग के साथ बैठक में राज्य के लिए उदार सहायता मांगी है. अब सभी की नजरें नए वित्तायोग की सिफारिशों पर होगी. हालांकि अभी इसके लिए एक साल का इंतजार करना होगा, क्योंकि सिफारिशें 2026 से लागू होंगी.

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शिमला: सरकारी कर्मचारियों की एरियर आदि की देनदारी और वेतन-पेंशन का बढ़ता खर्च सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को चैन की नींद नहीं लेने देगा. जोड़-तोड़ कर किसी तरह सुखविंदर सरकार इस साल वेतन व पेंशन का खर्च निकाल देगी, लेकिन अगले साल से संकट और गंभीर हो जाएगा. हिमाचल में छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद सरकारी कर्मियों के वेतन-पेंशन का खर्च बढ़ गया है. पिछले पे कमीशन के एरियर का 9000 करोड़ रुपए बकाया है. यानी कर्मचारियों की 9000 करोड़ रुपए की देनदारी सरकार के जिम्मे है. इससे भी बड़ी चिंता की बात है कि वर्ष 2026 में नए यानी सातवें पे कमीशन का समय आ जाएगा. कोढ़ पर खाज ये है कि हिमाचल की रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट लगातार घट रही है.

इस बार वित्तायोग ने यदि हिमाचल पर मेहरबानी नहीं की तो सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार वेतन व पेंशन सहित देनदारियों के मोर्चे पर गंभीर संकट में फंस जाएगी. पूर्व की भाजपा सरकार के समय राज्य में कर्मचारियों के लिए छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू किया गया था. जयराम सरकार ने एरियर की एक किस्त के रूप में पचास हजार रुपए जारी किए थे. उसके बाद से एरियर की अदायगी नहीं हुई है. इस समय कर्मचारियों के एरियर की 9000 करोड़ की अदायगी बाकी है. इधर, पिछले वेतन आयोग के संशोधित वेतनमान के एरियर की देनदारी बाकी है, उधर वर्ष 2026 में अगला पे-कमीशन सिर पर आ गया है.

अगले साल की कमाई 17044 करोड़, खर्च 26722 करोड़

हिमाचल के इस साल के बजट पर निगाह डालें तो वेतन पर 25 फीसदी व पेंशन पर 17 फीसदी खर्च होता है. यानी सौ रुपए को मानक रखें तो वेतन व पेंशन पर खर्च 42 रुपए है. फिर कर्ज को चुकाने और लिए गए कर्ज के ब्याज की अदायगी पर भी अच्छी-खासी धनराशि खर्च होती है. ऐसे में विकास के लिए बहुत कम पैसा बचता है. नए वेतन आयोग के लागू होने के बाद संशोधित वेतनमान के एरियर का बकाया तो एक तरफ रहा, सरकार को हर महीने वेतन व पेंशन का खर्च पूरा करना मुश्किल हो रहा है. अगले वित्त वर्ष यानी 2025-2026 की बात करें तो साल भर में वेतन के लिए 15,862 करोड़ और पेंशन के लिए 10,800 करोड़ रुपए की रकम चाहिए. दोनों को मिला दें तो ये खर्च 26,722 करोड़ रुपए साल का होगा. वहीं, कमाई की बात करें तो राज्य सरकार को 2025-26 में सारे संसाधनों से 17,044 करोड़ रुपए ही मिलेंगे. यानी कमाई से अधिक खर्च हो जाएगा.

घट रही रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट, बढ़ रही मुसीबत

वित्त आयोग की सिफारिश के बाद केंद्र सरकार से राज्यों को रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट मिलती है. इससे राज्य सरकार को अपनी आर्थिक गाड़ी धकेलने में आसानी होती है. हिमाचल के लिए चिंता की बात है कि यहां राजस्व घाटा अनुदान यानी रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट लगातार घट रही है. पूर्व में वित्तायोग ने जो फार्मूला लगाया था वो टेपर ग्रांट का था. यानी हर साल ग्रांट घटती जाती है अथवा यूं कहें कि उसमें तय फार्मूले के तहत कटौती होती रहती है. ये हिमाचल सहित देश के 11 राज्यों के लिए था. अब हिमाचल प्रदेश को वित्त वर्ष 2025-26 में केंद्र सरकार से जारी होने वाली ग्रांट पचास प्रतिशत से भी कम हो जाएगी. इस कारण केंद्र से आने वाले राजस्व घाटा अनुदान से वेतन व पेंशन देने में जो सहायता मिलती थी, वो कम हो जाएगी. यानी अब अधिकांश बोझ राज्य सरकार को खुद उठाना होगा. मौजूदा वित्त वर्ष यानी 2024-25 में हिमाचल को केंद्र से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के रूप में 6258 करोड़ रुपए मिल रहे हैं. यानी औसतन महीने में 500 करोड़ से अधिक केंद्र से इस मद में आते हैं. इससे वेतन व पेंशन का खर्च उठाने में थोड़ी सहूलियत हो जाती है.

अगला साल लेकर आएगा चुनौती

चूंकि राजस्व घाटा अनुदान लगातार घट रहा है, लिहाजा वित्त वर्ष 2025-26 में यह महज 3257 करोड़ रह जाएगा. यानी महीने में तीन सौ करोड़ रुपए से भी कम मिलेंगे. उधर, वेतन का खर्च ही 20 हजार करोड़ से अधिक होगा. अगर पिछला रिकॉर्ड देखें तो वित्त वर्ष 2021-22 में हिमाचल को रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के रूप में 10249 करोड़ रुपए मिले थे. यानी नौ सौ करोड़ रुपए से कुछ ही कम रकम हर महीने मिलती थी. इससे काफी राहत थी. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने इसी दिक्कत को 16वें वित्त आयोग के साथ साझा किया है. नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने भी वित्त आयोग के साथ बैठक में राज्य के लिए उदार सहायता मांगी है. अब सभी की नजरें नए वित्तायोग की सिफारिशों पर होगी. हालांकि अभी इसके लिए एक साल का इंतजार करना होगा, क्योंकि सिफारिशें 2026 से लागू होंगी.

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