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लातेहार में वेंटिलेटर पर सिस्टम! बुजुर्ग को टोकरी में बैठाकर पहुंचाया अस्पताल - Lack of facilities in village

Problems of villagers in Latehar. लातेहार के ग्रामीण क्षेत्र का अब तक समुचित विकास नहीं हुआ है. कई गांव में पुल-पुलिया और सड़क का अब तक निर्माण नहीं हुआ है. इस कारण लोगों को परेशानी हो रही है.

Patient Taken To Hospital In Basket
मरीज को टोकरी में बैठाकर टांग कर अस्पताल ले जाते ग्रामीण. (फोटो-ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 13, 2024, 10:05 PM IST

लातेहारः आज के दौर में जहां चांद और मंगल ग्रह पर जीवन की तलाश इस ओर संकेत दे रहा है कि हम विकास के मामले में कितने आगे बढ़ गए हैं, वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण क्षेत्र में जीवन का हाल देखकर ये सारी बातें कोरी कल्पना प्रतीत होती हैं. ऐसा ही हाल लातेहार जिले के ग्रामीण क्षेत्र का है. आज भी लातेहार के ग्रामीण क्षेत्र के लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.

लातेहार में मरीज को टोकरी में बैठाकर अस्पताल ले जाते ग्रामीण. (वीडियो-ईटीवी भारत)

भीतरी कोना गांव में न सड़क है न पुल

हम बात कर रहे हैं लातेहार जिले के महुआडांड़ प्रखंड अंतर्गत भीतरी कोना गांव की. इस गांव में अब तक न सड़क बनी है और न ही नदी पर पुल का निर्माण हुआ है. आज भी गांव में जब कोई बीमार हो जाता है तो उसे खाट पर या टोकरी के सहारे जुगाड़ तंत्र के माध्यम से टांग कर कई किलोमीटर की पैदल चलकर अस्पताल पहुंचाया जाता है. इस दृश्य के आगे विकास के दावे बेईमानी साबित हो रही हैं.

बुजुर्ग को टांगकर पहुंचाया गया अस्पताल

दरअसल, महुआडांड़ प्रखंड के भीतरी कोना गांव में शुक्रवार को एक वृद्ध बीमार हो गया था. उसे इलाज की सख्त जरूरत थी. यह देख ग्रामीणों ने मरीज को टोकरी में बैठाकर बांस की रस्सी से बांधा और गांव से दो किलोमीटर दूर सड़क तक टांग कर ले गए. इसके बाद बुजुर्ग को अस्पताल ले जाया जा सका.

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बुजुर्ग को टोकरी में बैठाकर नदी पार करते ग्रामीण (ETV Bharat)

ग्रामीणों ने साझा की परेशानी

इस संबंध में स्थानीय ग्रामीण अजीत पाल कुजूर ने बताते हैं कि भीतरी कोना गांव की आबादी लगभग 400 है. इसके बावजूद इस गांव में आज तक किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं पहुंच पाई है. उन्होंने कहा कि गांव में पहुंचने के लिए नदी पर न तो अब तक पुल बनाया गया है और न ही सड़क का निर्माण कराया गया है. इस कारण जब भी कोई बीमार पड़ता है तो उसे इसी प्रकार टोकरी में बैठकर ग्रामीण गांव से 2 किलोमीटर दूर सड़क तक लाते हैं. इसके बाद बीमार व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाया जाता है.

बरसात में टापू में तब्दील हो जाता है गांव

ग्रामीण अजीत पाल कुजूर ने बताया कि गांव के ग्रामीण अन्य सभी प्रकार की सुविधाओं से वंचित हैं. गांव से प्रखंड मुख्यालय तक आने के लिए आज भी ग्रामीणों को कम से कम 2 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. रास्ते में एक नदी पड़ती है. जिसे पार करना पड़ता है. उन्होंने बताया कि नदी पर आज तक पुल का निर्माण नहीं कराया गया है. इस कारण बरसात में ग्रामीणों को खासा परेशानी का सामना करना पड़ता है. बरसात में गांव टापू में तब्दील हो जाता है और ग्रामीण घरों में कैद हो जाते हैं.

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सड़क के अभाव में पगडंडी से गुजरते ग्रामीण (ETV Bharat)

विधायक पर जताई नाराजगी

ग्रामीण अजीत पाल कुजूर ने वर्तमान कांग्रेस विधायक रामचंद्र सिंह को भी इस मामले में कटघरे में खड़ा किया है. उन्होंने कहा कि गांव की समस्या को लेकर जिले के अधिकारियों के साथ-साथ स्थानीय विधायक को भी कई बार सूचित किया गया है, लेकिन समस्या के समाधान के लिए अब तक कोई सकारात्मक पहल नहीं की गई है. जिसका परिणाम है कि आज भी यह गांव पूरी तरह सुविधा विहीन है.

पुल निर्माण की मिल चुकी है स्वीकृति-विधायक

वहीं इस संबंध में विधायक रामचंद्र सिंह ने कहा कि महुआडांड़ के कई इलाके में पहले सड़क और पुल-पुलिया नहीं थे. अधिकांश गांव में अब सड़क और पुल-पुलिया बन चुकी है. भीतरी कोना गांव के लिए भी पुल निर्माण की स्वीकृति मिल चुकी है. जल्द ही यहां सड़क और पुल का निर्माण कराया जाएगा. उन्होंने कहा कि महुआडांड़ इलाके में उन्होंने जितना काम किया है, उतना काम आज तक किसी ने नहीं किया होगा.

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लातेहार में मरीज को टोकरी में बैठाकर अस्पताल ले जाते ग्रामीण. (वीडियो-ईटीवी भारत)

भीतरी कोना गांव में न सड़क है न पुल

हम बात कर रहे हैं लातेहार जिले के महुआडांड़ प्रखंड अंतर्गत भीतरी कोना गांव की. इस गांव में अब तक न सड़क बनी है और न ही नदी पर पुल का निर्माण हुआ है. आज भी गांव में जब कोई बीमार हो जाता है तो उसे खाट पर या टोकरी के सहारे जुगाड़ तंत्र के माध्यम से टांग कर कई किलोमीटर की पैदल चलकर अस्पताल पहुंचाया जाता है. इस दृश्य के आगे विकास के दावे बेईमानी साबित हो रही हैं.

बुजुर्ग को टांगकर पहुंचाया गया अस्पताल

दरअसल, महुआडांड़ प्रखंड के भीतरी कोना गांव में शुक्रवार को एक वृद्ध बीमार हो गया था. उसे इलाज की सख्त जरूरत थी. यह देख ग्रामीणों ने मरीज को टोकरी में बैठाकर बांस की रस्सी से बांधा और गांव से दो किलोमीटर दूर सड़क तक टांग कर ले गए. इसके बाद बुजुर्ग को अस्पताल ले जाया जा सका.

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बुजुर्ग को टोकरी में बैठाकर नदी पार करते ग्रामीण (ETV Bharat)

ग्रामीणों ने साझा की परेशानी

इस संबंध में स्थानीय ग्रामीण अजीत पाल कुजूर ने बताते हैं कि भीतरी कोना गांव की आबादी लगभग 400 है. इसके बावजूद इस गांव में आज तक किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं पहुंच पाई है. उन्होंने कहा कि गांव में पहुंचने के लिए नदी पर न तो अब तक पुल बनाया गया है और न ही सड़क का निर्माण कराया गया है. इस कारण जब भी कोई बीमार पड़ता है तो उसे इसी प्रकार टोकरी में बैठकर ग्रामीण गांव से 2 किलोमीटर दूर सड़क तक लाते हैं. इसके बाद बीमार व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाया जाता है.

बरसात में टापू में तब्दील हो जाता है गांव

ग्रामीण अजीत पाल कुजूर ने बताया कि गांव के ग्रामीण अन्य सभी प्रकार की सुविधाओं से वंचित हैं. गांव से प्रखंड मुख्यालय तक आने के लिए आज भी ग्रामीणों को कम से कम 2 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. रास्ते में एक नदी पड़ती है. जिसे पार करना पड़ता है. उन्होंने बताया कि नदी पर आज तक पुल का निर्माण नहीं कराया गया है. इस कारण बरसात में ग्रामीणों को खासा परेशानी का सामना करना पड़ता है. बरसात में गांव टापू में तब्दील हो जाता है और ग्रामीण घरों में कैद हो जाते हैं.

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सड़क के अभाव में पगडंडी से गुजरते ग्रामीण (ETV Bharat)

विधायक पर जताई नाराजगी

ग्रामीण अजीत पाल कुजूर ने वर्तमान कांग्रेस विधायक रामचंद्र सिंह को भी इस मामले में कटघरे में खड़ा किया है. उन्होंने कहा कि गांव की समस्या को लेकर जिले के अधिकारियों के साथ-साथ स्थानीय विधायक को भी कई बार सूचित किया गया है, लेकिन समस्या के समाधान के लिए अब तक कोई सकारात्मक पहल नहीं की गई है. जिसका परिणाम है कि आज भी यह गांव पूरी तरह सुविधा विहीन है.

पुल निर्माण की मिल चुकी है स्वीकृति-विधायक

वहीं इस संबंध में विधायक रामचंद्र सिंह ने कहा कि महुआडांड़ के कई इलाके में पहले सड़क और पुल-पुलिया नहीं थे. अधिकांश गांव में अब सड़क और पुल-पुलिया बन चुकी है. भीतरी कोना गांव के लिए भी पुल निर्माण की स्वीकृति मिल चुकी है. जल्द ही यहां सड़क और पुल का निर्माण कराया जाएगा. उन्होंने कहा कि महुआडांड़ इलाके में उन्होंने जितना काम किया है, उतना काम आज तक किसी ने नहीं किया होगा.

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