श्रीनगर: उत्तराखंड के दिग्गज कांग्रेस नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के विभिन्न ठिकानों पर ईडी की छापेमारी चल रही है. ईडी की टीम ने हरक रावत के श्रीनगर के श्रीकोट स्थित घर और पैतृक गांव गहड़ जाकर भी छापा मारा. जहां ईडी की टीम ने पूरे घर को खंगाल डाला. जिस समय ईडी का छापा पड़ा, उस समय घर पर हरक रावत के भाई, मां समेत घर के अन्य सदस्य मौजूद थे. वहीं, ईडी की रेड की खबर स्थानीय प्रशासन को भी नहीं थी.
जानकारी के मुताबिक, आज सुबह करीब 8 बजे से 5 गाड़ियों में सवार होकर ईडी के अधिकारी श्रीनगर पहुंचे. जहां एक टीम हरक सिंह रावत के पैतृक गांव गहड़ स्थित घर पर गई तो दूसरी टीम ने हरक रावत के श्रीकोट स्थित घर पर छापा मारा. ईडी की छापेमारी की भनक स्थानीय प्रशासन को भी नहीं थी. स्थानीय पुलिस को भी पूरे छापेमारी से दूर रखा गया. छापेमारी के दौरान ईडी के अधिकारियों को उत्तराखंड पुलिस की सुरक्षा दी गई थी. पुलिस के ये जवान देहरादून से ही ईडी के अधिकारियों के आए थे.
ईडी की टीम सुबह 8 बजे से दोपहर तक घर में जांच पड़ताल करती रही. इस दौरान ईडी की टीम ने मीडिया से भी दूरी बनाई रखी. पूरी कार्रवाई के दौरान किसी भी शख्स को न तो घर में जाने दिया न ही किसी को बाहर जाने की अनुमति दी गई. पूरे घर को टटोलने के बाद ईडी की टीम अहम दस्तावेजों को अपने साथ ले गई. आसपास और मोहल्लेवासियों को भी ईडी की इस छापेमारी के बारे में जानकारी नहीं थी. सभी लोग हरक सिंह के आवास पर टकटकी लगाए हुए देखते रहे.
जानिए क्या है मामला: तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार ने साल 2019 में पाखरो टाइगर सफारी निर्माण के लिए केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मंजूरी मांगी थी. साल 2019-20 में पाखरो में करीब 106 हेक्टेयर वन भूमि पर काम शुरू किया गया. तब सरकार ने बताया कि इस योजना के तहत सिर्फ 163 पेड़ काटे जाएंगे, लेकिन बाद में जांच में खुलासा हुआ कि काफी संख्या में पेड़ काटे गए. इसके मामले ने तूल पकड़ा और दिल्ली हाईकोर्ट में वन्यजीव कार्यकर्ता गौरव बंसल ने मामले को उठाया.
वहीं, इस मामले में साल 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट ने एनटीसीए यानी राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को निर्देशित किया. जिसके बाद एनटीसीए की ओर से गठित समिति ने सितंबर 2021 में कॉर्बेट पार्क का निरीक्षण किया. निरीक्षण कर 22 अक्टूबर 2021 को अपनी रिपोर्ट सौंपी. इस रिपोर्ट में मामले की विजिलेंस जांच और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की बात एनटीसीए ने कही. जिसके बाद अक्टूबर 2021 में नैनीताल हाईकोर्ट ने मामले का स्वतः संज्ञान लिया. वहीं, उत्तराखंड वन विभाग ने फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया से मामले की जांच करवाई.
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने पूरे एरिया (पाखरो, कालू शहीद, नलखट्टा और कालागढ़ ब्लॉक) का सैटेलाइट इमेज के जरिए मिलान किया. साथ ही फील्ड निरीक्षण से पता लगाया कि 163 की जगह 6,903 पेड़ों पर आरियां चली हैं. जिसके बाद मामला गरमा गया, लेकिन इस रिपोर्ट को वन विभाग ने नहीं माना. लिहाजा, साल 2022 में एनजीटी यानी राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) ने मामले का स्वतः संज्ञान लेकर 3 सदस्यीय कमेटी गठित की. इस कमेटी में एडीजी वाइल्ड लाइफ विभाग, एडीजी प्रोजेक्ट टाइगर और डीजी फॉरेस्ट शामिल को शामिल किया.
वहीं, मार्च 2023 में इस कमेटी ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को रिपोर्ट सौंप कर निर्माण के नाम पर अवैध कार्यों की पूरी जानकारी दी. साथ ही जिम्मेदार अधिकारियों के नाम भी रिपोर्ट में छापे. खास बात ये थी कि इस रिपोर्ट में तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत के साथ 8 अन्य वनाधिकारियों के नाम शामिल थे. उधर, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. लिहाजा, सुप्रीम कोर्ट से गठित सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी ने सभी जांचों को आधार बनाकर अपनी एक रिपोर्ट तैयार की. जिसे जनवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट में सौंपी.
रिपोर्ट में बताया गया था कि कॉर्बेट फाउंडेशन के करीब ₹200 करोड़ से ज्यादा के बजट का भी इसमें इस्तेमाल किया गया है. सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी ने इस रिपोर्ट में तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत को भी जिम्मेदार बताया था. ऐसे में उत्तराखंड वन विभाग ने तमाम जांच रिपोर्ट्स के बाद कॉर्बेट में तैनात रेंजर बृज बिहारी, डीएफओ किशन चंद, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन जेएस सुहाग को निलंबित कर दिया. साथ ही तत्कालीन पीसीसीएफ हॉफ राजीव भरतरी को भी उनके पद से हटाया गया.
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