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1969 में तीन प्रतिमाओं की स्थापना के साथ शुरू हुआ था दुर्गा पूजा महोत्सव, महराजगंज में दूर दराज से आने वाले श्रद्धालुओं से होता है गुलजार - DURGA PUJA FESTIVAL OF SISWA

चार लोगों की कमेटी ने शुरू किया था महोत्सव, दुर्गा प्रतिमा स्थापना की मानी थी मनौती

सिसवा का दुर्गा पूजा महोत्सव
सिसवा का दुर्गा पूजा महोत्सव (Photo credit: ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 11, 2024, 1:28 PM IST

महराजगंज : जिले की मशहूर सिसवा का दुर्गा पूजा महोत्सव बुधवार सप्तमी को नेत्र दर्शन के साथ शुरू हो गया. पंडालों में दूर-दराज के क्षेत्रों से श्रद्धालुओं का आना भी प्रारंभ हो गया है. सिसवा का दुर्गा पूजा महोत्सव परंपरा व वंशावली की अनोखी मिसाल है, जो विगत 54 वर्षों से लगातार गुलजार होता चला आ रहा है. वर्ष 1969 में नगर के चार लोगों की कमेटी द्वारा तीन दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना के साथ प्रारंभ हुए इस महोत्सव ने जिले के साथ पूरे पूर्वांचल में अपनी एक अलग पहचान बनाई है.

श्रीरामजानकी मंदिर कमेटी के संरक्षक व वयोवृद्ध व्यापारी लालजी सिंह बताते हैं कि वर्ष 1968 में कस्बा निवासी पेशे से अध्यापक राधेश्याम गुप्ता और व्यापारी शिवपूजन जायसवाल ने सिसवा में दुर्गा प्रतिमा स्थापना की मनौती मानी थी. एक साल बीतने के बाद शारदीय नवरात्र के कुछ दिनों पूर्व राधेश्याम गुप्ता को माता ने सपने में मनौती की याद दिलाई. राधेश्याम ने अगले दिन लालजी सिंह से इसका जिक्र किया. इसके बाद लालजी सिंह, राधेश्याम, शिवपूजन जायसवाल व जंगी सिंह ने एक कमेटी बनाकर पहली बार नवरात्र में श्रीरामजानकी मंदिर, प्राइमरी स्कूल व भूअरी माता के स्थान पर दुर्गा माता की प्रतिमा की स्थापना कराई. इसके अगले वर्ष यानी 1970 में सायर देवी स्थान व काली माता स्थान पर दो प्रतिमाओं की स्थापना के साथ प्रत्येक वर्ष प्रतिमाएं बढ़ने लगीं. तब से शुरू हुआ दुर्गा पूजा महोत्सव का सफर अनवरत हर वर्ष नए-नए कलेवर के साथ चला आ रहा है.

वर्ष 1997 से आने लगा महोत्सव में नयापन : उन्होंने कहा कि महोत्सव के शुरुआती दौर से ही नगर में माता की आकर्षक प्रतिमाएं स्थापित की जाती थीं. उस समय प्रतिमा व पंडाल में बिजली की सजावट को लेकर समितियों में होड़ लगी रहती थी, लेकिन वर्ष 1997 में पहली बार श्रीरामजानकी मंदिर समिति द्वारा माता वैष्णो देवी की तकरीबन दो सौ मीटर की लंबी गुफा बनाए जाने के बाद से दूरभाष केंद्र समिति, लोकायन समिति व गुदरी गली मेन मार्केट समिति द्वारा भव्य पंडाल, गुफाओं में आकर्षक दुर्गा प्रतिमाओं के साथ देश के शक्तिपीठों व तीर्थ स्थलों के स्वरूप का दर्शन कराया जाने लगा.

यह भी पढ़ें : कर्मचारी ने रेलवे स्टेशन के पास शुरू की थी ये 100 साल पुरानी दुर्गा पूजा, अब इस शहर में 10 जगह हो रही

यह भी पढ़ें : इस रामलीला के अंग्रेज भी थे दीवाने, जानिए 148 साल पहले शुरू हुए मंचन का क्या है इतिहास

महराजगंज : जिले की मशहूर सिसवा का दुर्गा पूजा महोत्सव बुधवार सप्तमी को नेत्र दर्शन के साथ शुरू हो गया. पंडालों में दूर-दराज के क्षेत्रों से श्रद्धालुओं का आना भी प्रारंभ हो गया है. सिसवा का दुर्गा पूजा महोत्सव परंपरा व वंशावली की अनोखी मिसाल है, जो विगत 54 वर्षों से लगातार गुलजार होता चला आ रहा है. वर्ष 1969 में नगर के चार लोगों की कमेटी द्वारा तीन दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना के साथ प्रारंभ हुए इस महोत्सव ने जिले के साथ पूरे पूर्वांचल में अपनी एक अलग पहचान बनाई है.

श्रीरामजानकी मंदिर कमेटी के संरक्षक व वयोवृद्ध व्यापारी लालजी सिंह बताते हैं कि वर्ष 1968 में कस्बा निवासी पेशे से अध्यापक राधेश्याम गुप्ता और व्यापारी शिवपूजन जायसवाल ने सिसवा में दुर्गा प्रतिमा स्थापना की मनौती मानी थी. एक साल बीतने के बाद शारदीय नवरात्र के कुछ दिनों पूर्व राधेश्याम गुप्ता को माता ने सपने में मनौती की याद दिलाई. राधेश्याम ने अगले दिन लालजी सिंह से इसका जिक्र किया. इसके बाद लालजी सिंह, राधेश्याम, शिवपूजन जायसवाल व जंगी सिंह ने एक कमेटी बनाकर पहली बार नवरात्र में श्रीरामजानकी मंदिर, प्राइमरी स्कूल व भूअरी माता के स्थान पर दुर्गा माता की प्रतिमा की स्थापना कराई. इसके अगले वर्ष यानी 1970 में सायर देवी स्थान व काली माता स्थान पर दो प्रतिमाओं की स्थापना के साथ प्रत्येक वर्ष प्रतिमाएं बढ़ने लगीं. तब से शुरू हुआ दुर्गा पूजा महोत्सव का सफर अनवरत हर वर्ष नए-नए कलेवर के साथ चला आ रहा है.

वर्ष 1997 से आने लगा महोत्सव में नयापन : उन्होंने कहा कि महोत्सव के शुरुआती दौर से ही नगर में माता की आकर्षक प्रतिमाएं स्थापित की जाती थीं. उस समय प्रतिमा व पंडाल में बिजली की सजावट को लेकर समितियों में होड़ लगी रहती थी, लेकिन वर्ष 1997 में पहली बार श्रीरामजानकी मंदिर समिति द्वारा माता वैष्णो देवी की तकरीबन दो सौ मीटर की लंबी गुफा बनाए जाने के बाद से दूरभाष केंद्र समिति, लोकायन समिति व गुदरी गली मेन मार्केट समिति द्वारा भव्य पंडाल, गुफाओं में आकर्षक दुर्गा प्रतिमाओं के साथ देश के शक्तिपीठों व तीर्थ स्थलों के स्वरूप का दर्शन कराया जाने लगा.

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