देहरादूनः डिजिटलाइजेशन के इस दौर में लगभग अधिकांश कामकाज ऑनलाइन प्रक्रिया में तब्दील हो गए है. ऑनलाइन प्रक्रिया में आने के बाद काम काफी आसान और सुरक्षित भी हो गए हैं. यही वजह है कि अधिकांश विभाग ऑनलाइन प्रक्रिया पर आ चुके हैं. इसी क्रम में किताबें को भी ई-फाइलों में तब्दील किया जा रहा है. ताकि, छात्रों को आसानी से उपलब्ध हो सके. साथ ही किताबों के पुराने होने, फटने की दिक्कतों से निजात मिल सके. हालांकि, किताबों का ई-फाइलों में तब्दील होने से जितना फायदा है, उतना ही नुकसान भी है. क्योंकि किताबों का ई-फाइलों में तब्दील होने से छात्र और युवा किताबों से दूर होते जा रहे हैं.
उत्तराखंड सरकार प्रदेश के सभी महाविद्यालयों को ई-ग्रंथालय से जोड़ चुकी है. इसके जरिए छात्रों को ई-ग्रंथालय पोर्टल के जरिए सभी तरह के विषयों के साथ ही एग्जाम की तैयारी करने वाले बच्चों को भी पुस्तकें उपलब्ध हो रही है. इसकी खास बात यह है कि ऑनलाइन पुस्तकें उपलब्ध होने से बच्चों को किताबें लाने और ले जाने की दिक्कत दूर हो गई है. साथ ही अपने फोन के जरिए किताबों को आसानी से पढ़ भी सकते हैं. इसी क्रम में राज्य सरकार, मेडिकल कॉलेजों की भी सारी पुस्तकों को ई-ग्रंथालय पर लाने की कवायद में जुटा हुआ है. इससे मेडिकल छात्रों को ई-ग्रंथालय पर लाखों पुस्तक मिल सकेंगी.
बच्चों का किताबों का लगाव दूर: किताबों को ई-फाइलों में तब्दील करने या फिर कॉलेजों और महाविद्यालयों में ई-ग्रंथालय बनाकर बच्चों को ऑनलाइन पुस्तक उपलब्ध करने से भले ही तमाम चीजें आसान हो जाए और बच्चों को भी काफी सहूलियत मिल रही हो, लेकिन इससे एक बड़ी समस्या भविष्य में यही रहने वाली है कि बच्चों का किताबों से लगाव धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा. और इसकी शुरुआत पिछले कुछ सालों से हो चुकी है. हालांकि, साल 2020 में वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के दशक के बाद अधिकांश चीजें ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर शिफ्ट हो गई है. उस दौर के बाद बच्चों को ऑनलाइन क्लासेस देने के साथ ही ऑनलाइन प्रक्रिया पर और अधिक ध्यान दिए जाने लगा है.
बच्चों से किताब लेकर सौंपा मोबाइल: ऑनलाइन और ऑफलाइन किताबों को पढ़ने से हमारे शरीर और साइकोलॉजी पर क्या फर्क पड़ता है? इसके सवाल पर देहरादून के जाने-माने मनोवैज्ञानिक डॉ. मुकुल शर्मा ने बताया कि पिछले 10 से 12 सालों के बीच इस प्रक्रिया में बहुत अधिक बदलाव आया है. पहले बच्चों के संस्कार और सभ्यता के लिए किताबें पढ़ना बहुत जरूरी हुआ करती थी. लोग बच्चों को किताब पढ़ने के लिए भी बोलते थे. लेकिन अब नैतिक शिक्षा की किताब गायब कर दी गई और बच्चों के हाथों में मोबाइल सौंप दिया गया है. वर्तमान समय में करीब 73 फीसदी बच्चे सिर्फ पास होने के लिए किताब पढ़ते हैं.
साथ ही कहा कि किताबों से जो पढ़ते हैं फिर उसको लिखते हैं वो लंबे समय तक के लिए याद रहती है. मोबाइल के जरिए पढ़ने से, पढ़ाई लंबे समय तक याद नहीं रहती है. यानी बस पास होने के लिए पढ़ते हैं. किताबों को जब पढ़ते हैं तो किताबों से लगाव हो जाता है. ऐसे में किताब में लिखी बातों को अपने जीवन में उतारते हैं. लेकिन ऑनलाइन किताबों से ऐसा नहीं होता है. मोबाइल का अधिक इस्तेमाल करने से साइकोलॉजी संबंधित तमाम दिक्कत आ जाती है. इसके साथ ही किसी से बात न करना, अकेले रहना ज्यादा पसंद करना समेत अन्य चीजों का होना, इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण मोबाइल ही है.
लोगों को किताबों पर भरोसा: देहरादून स्थित मॉडर्न दून लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन जय भगवान गोयल ने बताया कि मॉडर्न दून लाइब्रेरी में ऑफलाइन पुस्तकों के साथ ही ऑनलाइन पुस्तकें भी उपलब्ध हैं. ऐसे में जो बच्चे ऑनलाइन पुस्तक पढ़ना चाहते हैं और जो बच्चे ऑफलाइन पुस्तक पढ़ना चाहते हैं, उनके लिए रीडिंग एरिया भी बनाया गया है. मॉडर्न दून लाइब्रेरी में तीन करोड़ 80 लाख बुक्स का डाटा भी उपलब्ध है. ऐसे में अगर किसी को किसी पुस्तक की जानकारी चाहिए तो उसे दून लाइब्रेरी से जानकारी मिल जाएगी कि वो पुस्तक किस लाइब्रेरी में उपलब्ध है. साथ ही बताया कि दून लाइब्रेरी में बच्चों के साथ ही रिटायर्ड पर्सन भी किताबें पढ़ने के लिए आते हैं. लेकिन अधिकतर कंपटीशन की तैयारी करने वाले युवा सबसे ज्यादा किताबें पढ़ने के लिए आते हैं.
लाइब्रेरियन जय भगवान गोयल ने बताया कि लोगों का अभी भी किताबों पर अधिक भरोसा है. क्योंकि उन्हें यह भरोसा रहता है कि किताबों में दी गई जानकारी सही और तथ्य पूर्ण होती है. लेकिन ऑनलाइन और अन्य प्लेटफार्म से मिलने वाली जानकारी का कोई भरोसा नहीं होता है. क्योंकि वो तमाम जगहों से ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अपलोड की जाती है. साथ ही बताया कि जब ऑनलाइन माध्यमों से पढ़ाई करते हैं तो वो चीजें उनके दिमाग में ज्यादा समय तक के लिए स्थित नहीं रहती है. बल्कि किताबों से पढ़ाई करने पर वो जानकारियां, उनके दिमाग में लंबे समय तक के लिए स्थिर रहती है.
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