बीकानेर. फाल्गुन महीने में होली का त्योहार मनाया जाता है. बात चाहे किसी त्योहार या आयोजन की हो बीकानेर के लोग अपनी अलहदा मस्ती के लिए जाने जाते हैं. होली के मौके पर बीकानेर मे ऐसी ही एक परंपरा है डोलची पानी खेल. दरअसल, दो जातियों के बीच हुए खूनी संघर्ष को खत्म कर सौहार्द के लिए शुरू हुई पहल अब परंपरा में बदल चुकी है. होली के मौके पर हर साल इसमें दोनों जातियों के लोग बड़ी शिद्दत के साथ शिरकत करते हैं.
डोलची से पीठ पर पानी की मार : बीकानेर में होली से जुड़ी कई परंपराएं सदियों से यहां के लोग बड़ी शिद्दत से निभाते हैं. बीकानेर के पुष्करणा समाज की दो उपजातियों व्यास और हर्ष के संघर्ष से जुड़ी है. चमड़े के बने बर्तननुमा वस्तु को डोलची कहा जाता है. होली के मौके पर दोनों जातियों के बीच डोलची से पानी का खेल खेला जाता है, जिसमें दोनों तरफ से डोलची में पानी भर कर एक दूसरे की पीठ पर फेंका जाता है.
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बच्चे से लेकर बूढ़े तक होते हैं शामिल : दरअसल, होली से पहले हर साल शहर अंदरूनी क्षेत्र में एक निश्चित स्थान पर बड़े-बड़े बर्तनों में पानी भर कर रखा जाता है. बाद में दोनों जातियों के लोग यहां इकट्ठा होते हैं और एक दूसरे की पीठ पर इस डोलची में पानी भरकर वार करते हैं. करीब 2 घंटे से भी अधिक समय तक चलने वाले इस खेल में शामिल होने वाले बुजुर्ग मदन मोहन व्यास कहते हैं कि वो हर साल इस खेल में शामिल होते हैं. उनके दूर-दराज के सगे-संबंधी भी इसमें शामिल होते हैं. वहीं, बुजुर्ग हीरालाल हर्ष कहते हैं कि पुराने समय में किसी बात को लेकर हुए विवाद को खत्म करने के लिए दोनों जातियों के लोगों के बीच सुलह समझौता हुआ. भाईचारे और सौहार्द को कायम रखने के लिए इस खेल की शुरुआत हुई. आज सैकड़ों सालों से यह खेल चलता आ रहा है और अनवरत जारी है.