रांची: झारखंड में विस्थापितों की समस्या वर्षों से चली आ रही है. विस्थापितों की समस्या के समाधान के लिए विभिन्न संगठन आए दिन विस्थापित आयोग के गठन की मांग भी करते नजर आते हैं. लेकिन वर्षों से विस्थापितों की समस्या जस की तस है. विस्थापित अपने समस्या के समाधान के लिए कई बार आंदोलन भी कर चुके हैं. लेकिन अभी तक विस्थापितों के समस्याओं के समाधान नहीं हो पाया.
मालूम हो कि झारखंड की धरती खनिज पदार्थों से धनी है. इस राज्य के सभी जिलों के जमीन के अंदर खनिज मौजूद है. जिस वजह से सरकार झारखंड के विभिन्न जिलों में जमीन अधिग्रहण करती है. जमीन अधिग्रहण करने के बाद उस जमीन पर बसे लोग विस्थापित हो जाते हैं. जमीन अधिग्रहण करने से पहले सरकार जमीन मालिकों से कई वादे करते हैं. लेकिन जमीन अधिग्रहण करते ही सरकार के अधिकारी सभी वादे को भूल जाते हैं.
विस्थापितों की इन्हीं समस्या को देखते हुए राजधानी रांची के विस्थापित लोग एक बार फिर आंदोलन के मूड में दिख रहे हैं. हटिया क्षेत्र में रह रहे विस्थापित लोगों के लिए आवाज उठाने वाले विस्थापित नेता पंकज शाहदेव बताते हैं कि राजधानी के धुर्वा क्षेत्र में एचईसी, विधानसभा, हाई कोर्ट जैसे कई सरकारी भवन निर्माण किए गए और इन भवनों के निर्माण के लिए मूल वासियों का जमीन लिया गया. जमीन लेने से पहले कई लोक लुभावन बातें सरकार के द्वारा कही गई. लेकिन जमीन अधिग्रहण करने के बाद विस्थापितों को ऐसे ही छोड़ दिया गया.
विस्थापित नेता पंकज शाहदेव ने कहा कि सरकार अगर विस्थापितों की समस्या पर ठोस कदम नहीं उठाती है तो आने वाले बजट सत्र में विधानसभा घेराव किया जाएगा. सरकार से विस्थापित अपने हक के लिए आवाज उठाएंगे. वहीं एयरपोर्ट क्षेत्र में विस्थापितों के लिए आवाज बुलंद करने वाले विस्थापित नेता अजीत उरांव बताते हैं कि सन 1940 से सरकार मूलवासियों और खतियानियों की जमीन का अधिग्रहण कर रही है. लेकिन उसके बदले खतियानियों को कोई मुआवजा नहीं मिल पाया है.
अजीत उरांव ने बताया कि एयरपोर्ट क्षेत्र में करीब 1500 एकड़ जमीन अधिग्रहण किया गया है और 500 विस्थापित परिवार आज तक मुआवजे के लिए दर दर की ठोकर खा रहे हैं. जमीन अधिग्रहण करने से पहले संस्थाओं द्वारा यह वादा किया जाता है कि जो भी विकास कार्य का काम विस्थापितों की जमीन पर किया जाएगा. उसमें चतुर्थ और तृतीय वर्ग की नौकरियां मूलवासियों के लिए होगी लेकिन यह वादे जमीन लेने के बाद तोड़ दिए जाते हैं. जिस वजह से आज राजधानी सहित पूरे राज्य में सैकड़ों विस्थापित परिवार एक-एक पैसे के लिए मोहताज है. हालांकि अपनी समस्याओं के समाधान के लिए विस्थापितों ने विधानसभा घेराव का ऐलान किया है. अब देखने वाली बात होगी कि विस्थापितों के इस कदम के बाद उन्हें अपने मुआवजे कब तक मिल पाते हैं.
इसे भी पढ़ें- बोकारो के 19 विस्थापित गांवों की बदलेगी तस्वीर, पंचायत में होंगे शामिल, झारखंड सरकार पूरी करेगी लोगों की मांग
इसे भी पढ़ें- 42 वर्षों से सरकारी मुआवजे और नियोजन की आस लगाए विस्थापितों का टूटा सब्र, राजभवन के सामने कर रहे आमरण अनशन