लखनऊ: राजधानी के दिलबर हुसैन तीन पीढ़ी से चांदी और असली मोती-जवाहरात से जड़ी जूतियां, चप्पल और सैंडल बनाने का हुनर संजोए हुए हैं. नवाब के वंशज नवाब मसूद अब्दुल्ला ने बताया कि 19वीं सदी के अंत में अवध के नवाबों और रईसों के बीच हीरे-जवाहरात से जड़ी चांदी की जूतियां पहनने का चलन आम हो गया था. लखनऊ की इस परंपरा को संजोने और सजाने का काम उन कारीगरों ने किया जिन्हें नवाबों ने खासतौर पर इस शहर में बसाया था.
उन्होंने कहा कि नवाबों ने कलाकारों की खूब हौसला बढ़ाया है और यही वजह है कि लखनऊ के कारीगर आज भी अपने कारीगरी और नक्काशी ने न सिर्फ देश, बल्कि विदेशों में भी लखनऊ का नाम रोशन किया.
उन्होंने कहा कि लखनऊ में अब इसके कारीगर काम होते जा रहे हैं. इसके लिए हम पुरातत्व विभाग से और यूपी सरकार से अपील करते हैं कि इस धरोहर को बचाने में अपना किरदार अदा करें और और बड़े इमामबाड़े में मीना बाजार की तरह एक बाजार का आयोजन हो, जिसमें लखनऊ के तमाम धरोहर कारीगरी और नक्काशी की प्रदर्शनी हो जिससे न सिर्फ यहां के टूरिस्ट में बढ़ोतरी होगी बल्कि यहां के धरोहर भी बच सकेगा.
चांदी की जूती बनाने की बारीकी: चांदी की जूतियां बनाने वाले दिलबर हुसैन बताते हैं कि यह कला उन्हें विरासत में मिली है. उनके पिता और भाई इस काम में माहिर थे. उन्होंने बचपन से ही इस हुनर को सीखा. जूती बनाने की प्रक्रिया में सबसे अहम है. इसका फ्रेम तैयार करना. इसके बाद चांदी के पतरे को गर्म करके मनचाहे डिज़ाइन में ढाला जाता है. फिर इस पर हीरे और जवाहरात लगाए जाते हैं, जिससे जूती की खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है. चांदी के जूते और चप्पल की शुरुआती कीमत 5000 होती है और इसे ग्राहक की मर्जी के अनुसार महंगे से महंगे जूते चप्पल बनाए जा सकते हैं.
कम होती विरासत, बढ़ती मांग: दिलबर हुसैन बताते हैं कि आज लखनऊ में सिर्फ वही चांदी की जूतियां बनाने वाले कारीगर बचे हैं. नई पीढ़ी इस काम में रुचि नहीं ले रही क्योंकि इसमें मेहनत ज्यादा ज़्यादा और आमदनी कम है. उनका मानना है कि अगर सरकार ने इस कला को संरक्षित करने के लिए कदम नहीं उठाए, तो यह विरासत जल्द ही खत्म हो जाएगी.
चांदी के जूते चप्पल बेचने वाले अजहर हुसैन बताते हैं कि हम चांदी के जूते चप्पल बनाते भी हैं और इसे खुद अपनी दुकान में बेचते भी हैं. पहले नवाबों ने इसे इस्तेमाल किया था उसके बाद धीरे-धीरे अब आम लोग भी इसका इस्तेमाल करने लगे. खास तौर से शादियों में दुल्हन और दूल्हे के लिए चांदी के खास जूते और चप्पल तैयार किए जाते हैं.
शौक और निवेश का अद्भुत संगमः हालांकि, बीते कुछ सालों में चांदी की जूतियों की मांग बढ़ी है. लोग इसे सिर्फ शौक के लिए नहीं, बल्कि निवेश के तौर पर भी खरीद रहे हैं. दिलबर कहते हैं कि चांदी की जूतियां न सिर्फ पहनने में शाही अहसास देती हैं, बल्कि इन्हें जरूरत पड़ने पर बेचकर पैसे भी हासिल किए जा सकते हैं.
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