जयपुर: राजस्थान हाईकोर्ट ने सवाई माधोपुर के गंगापुर थाने में दर्ज मामले में बिना जांच अधिकारी होते हुए तत्कालीन स्थानीय एडिशनल एसपी की ओर से 34 लाख रुपए में पक्षकारों के बीच राजीनामा कराने के मामले में डीजीपी को जांच के आदेश दिए हैं. अदालत ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की ओर से वर्दी में नोटों के साथ बैठकर पक्षकारों में राजीनामा कराने को गंभीर माना है.
अदालत ने कहा कि पुलिस अधिकारी का मध्यस्थता कराना व्यक्तिगत कर्तव्य नहीं माना जा सकता. ऐसे में डीजीपी से यह अपेक्षा की जाती है कि वे मामले की पुन: जांच कराए अन्यथा पूर्व में तैयार की गई जांच रिपोर्ट के आधार पर उसे एडिशनल एसपी की सेवा पुस्तिका में लगाया जाए. इसके साथ ही अदालत ने मामले के आरोपी पवन कुमार को जमानत पर रिहा करने को कहा है. जस्टिस उमाशंकर व्यास ने यह आदेश पवन कुमार की जमानत याचिका पर दिया.
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अधिवक्ता रविन्द्र सिंह शेखावत ने बताया कि पिछली सुनवाई पर अदालत को बताया गया था कि उसने परिवादी पक्ष को राजीनामे के तौर पर 34 लाख रुपए एडिशनल एसपी सुरेश खींची की मौजूदगी में दिए थे, जबकि वे मामले में आईओ भी नहीं थे. जिस पर अदालत ने एडिशनल एसपी खींची को उपस्थित होकर उनकी भूमिका बताने के लिए कहा था, लेकिन वे पेश नहीं हुए. उनकी जगह एसआई संतराम ने पेश होकर कहा कि खींची मेघालय में प्रशिक्षण के लिए व्यस्त हैं.
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इसके साथ ही डीजीपी ऑफिस से जारी एक पत्र का हवाला देते हुए कहा कि एफआईआर गंगापुर सिटी पुलिस थाने की है और उस समय खींची का परिवादी पक्ष से परिचय था. उनकी ओर से व्यक्तिगत हैसियत से मध्यस्थता की गई है और पदीय अधिकारों का कोई दुरुपयोग नहीं किया है. दरअसल परिवादी स्कूल संचालक ने 2022 में आरोपी स्कूल लेखाकार पर रुपए गबन करने का आरोप लगाया था. इस मामले में पुलिस ने आरोपी को जून 2024 में गिरफ्तार कर लिया और वह तब से जेल में ही है. आरोपी का कहना था कि एडिशनल एसपी खींची के प्रभाव के चलते यह अनुचित कार्रवाई की गई और उससे जबरन राजीनामा करवाया गया. इसलिए उसे जमानत दी जाए.