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दूधेश्वर नाथ मंदिर में महाशिवरात्रि पर भक्तों का लगा तांता, रावण ने यहीं चढ़ाया था अपना 10वां सिर - MAHASHIVRATRI 2025

गाजियाबाद में महाशिवरात्रि पर दूधेश्वर नाथ मंदिर में भारी संख्या में श्रद्धालु उमड़े. मान्यता के अनुसार इस चमत्कारी मंदिर में सबकी मनोकामना पूरी होती है.

प्राचीन दूधेश्वर नाथ मंदिर में उमड़े श्रद्धालु
प्राचीन दूधेश्वर नाथ मंदिर में उमड़े श्रद्धालु (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Feb 26, 2025, 12:18 PM IST

नई दिल्ली: महाशिवरात्रि के अवसर पर गाजियाबाद स्थित प्राचीन दूधेश्वर नाथ मठ मंदिर में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा. यहां रात 12:00 बजे से जलाभिषेक शुरू हो गया था और अनुमान लगाया जा रहा है कि सुबह 9 बजे तक करीब 5 लाख श्रद्धालुओं ने दर्शन पूजन किया. मंगलवार दोपहर 2 बजे से ही श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया था. महाशिवरात्रि को लेकर पुलिस प्रशासन द्वारा दूधेश्वर नाथ मंदिर भी विशेष इंतजाम किए गए. वहीं, ट्रैफिक पुलिस द्वारा मंदिर के आसपास ट्रैफिक डायवर्ट कर डायवर्जन लागू किया गया, ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की समस्या न हो.

मंदिर के पीठाधीश्वर महंत नारायण गिरि महाराज ने बताया, हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है. महाशिवरात्रि पर भगवान शिव का व्रत, पूजा अर्चना और जलाभिषेक करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है. साथ ही जीवन में सुख समृद्धि और खुशहाली आने के साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. रात 12 बजे प्रथम अभिषेक के बाद भक्तों के जल चढ़ाने का सिलसिला हो गया था.

108 प्रकार के व्यंजन चढ़ाए गए: वहीं, मंदिर के मीडिया प्रभारी एसआर सुथार ने बताया कि प्रात: काल 3:30 - 4:30 तक भव्य श्रृंगार और आरती की गई. वहीं मंदिर की श्रृंगार सेवा समिति के अध्यक्ष विजय मित्तल व समस्त समिति के सदस्यों द्वारा सायंकाल 5.45 से रात्रि 7 बजे तक भगवान दूधेश्वर नाथ का श्रृंगार किया जाएगा. प्रथम भोग प्रसाद के रूप में 108 प्रकार के व्यंजन भगवान दूधेश्वर नाथ को अर्पित किए गए. जलाभिषेक बुधवार रात्रि 12 बजे तक चलेगा. मान्यता है कि प्राचीन दूधेश्वर नाथ मंदिर में सभी श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. यही वजह है कि देशभर से भारी संख्या में श्रद्धालु हर साल दूधेश्वर नाथ मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं.

रावण के पिता ने की थी स्थापना: प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर की स्थापना रावण के पिता ऋषि विश्रवा ने की थी. यह भी कहा जाता है कि रावण ने यहीं अपना दसवां शीश भगवान शिव के चरणों में अर्पित किया था. प्राचीन काल में मंदिर के स्थान पर टीला हुआ करता था, जहां पर गाय आकर स्वयं ही दूध दिया करती थी. इसलिए इस मंदिर को दूधेश्वर नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है. महंत नारायण गिरी ने बताया कि पुराणों में भी प्राचीन दूधेश्वर नाथ मठ मंदिर का वर्णन है.

यह भी पढ़ें- महाशिवरात्रि पर शिवालयों में गूंजा 'हर हर महादेव', CM रेखा गुप्ता सहित ये नेता भी पहुंचे मंदिर

नई दिल्ली: महाशिवरात्रि के अवसर पर गाजियाबाद स्थित प्राचीन दूधेश्वर नाथ मठ मंदिर में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा. यहां रात 12:00 बजे से जलाभिषेक शुरू हो गया था और अनुमान लगाया जा रहा है कि सुबह 9 बजे तक करीब 5 लाख श्रद्धालुओं ने दर्शन पूजन किया. मंगलवार दोपहर 2 बजे से ही श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया था. महाशिवरात्रि को लेकर पुलिस प्रशासन द्वारा दूधेश्वर नाथ मंदिर भी विशेष इंतजाम किए गए. वहीं, ट्रैफिक पुलिस द्वारा मंदिर के आसपास ट्रैफिक डायवर्ट कर डायवर्जन लागू किया गया, ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की समस्या न हो.

मंदिर के पीठाधीश्वर महंत नारायण गिरि महाराज ने बताया, हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है. महाशिवरात्रि पर भगवान शिव का व्रत, पूजा अर्चना और जलाभिषेक करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है. साथ ही जीवन में सुख समृद्धि और खुशहाली आने के साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. रात 12 बजे प्रथम अभिषेक के बाद भक्तों के जल चढ़ाने का सिलसिला हो गया था.

108 प्रकार के व्यंजन चढ़ाए गए: वहीं, मंदिर के मीडिया प्रभारी एसआर सुथार ने बताया कि प्रात: काल 3:30 - 4:30 तक भव्य श्रृंगार और आरती की गई. वहीं मंदिर की श्रृंगार सेवा समिति के अध्यक्ष विजय मित्तल व समस्त समिति के सदस्यों द्वारा सायंकाल 5.45 से रात्रि 7 बजे तक भगवान दूधेश्वर नाथ का श्रृंगार किया जाएगा. प्रथम भोग प्रसाद के रूप में 108 प्रकार के व्यंजन भगवान दूधेश्वर नाथ को अर्पित किए गए. जलाभिषेक बुधवार रात्रि 12 बजे तक चलेगा. मान्यता है कि प्राचीन दूधेश्वर नाथ मंदिर में सभी श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. यही वजह है कि देशभर से भारी संख्या में श्रद्धालु हर साल दूधेश्वर नाथ मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं.

रावण के पिता ने की थी स्थापना: प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर की स्थापना रावण के पिता ऋषि विश्रवा ने की थी. यह भी कहा जाता है कि रावण ने यहीं अपना दसवां शीश भगवान शिव के चरणों में अर्पित किया था. प्राचीन काल में मंदिर के स्थान पर टीला हुआ करता था, जहां पर गाय आकर स्वयं ही दूध दिया करती थी. इसलिए इस मंदिर को दूधेश्वर नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है. महंत नारायण गिरी ने बताया कि पुराणों में भी प्राचीन दूधेश्वर नाथ मठ मंदिर का वर्णन है.

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