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बालोद के मां गंगा मैया मंदिर में जलाए गए 900 से अधिक ज्योति कलश, सालों पुराना है मंदिर का इतिहास - Sharadiya Navratri 2024

बालोद के मां गंगा मैया मंदिर में नवरात्रि के पहले दिन 900 से अधिक ज्योति कलश प्रज्जवलित किए गए हैं. यहां नवरात्रि के पहले दिन भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. इस मंदिर का इतिहास तकरीबन 135 साल पुराना है.

Balod Ganga Maiya temple History
बालोद के मां गंगा मैया मंदिर (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Oct 3, 2024, 7:40 PM IST

बालोद: बालोद जिले का विख्यात शक्तिपीठ मां गंगा मैया मंदिर में शारदीय नवरात्र पर्व के पहले दिन भक्तों की भीड़ देखने को मिली. यहां नवरात्रि के मौके पर 900 दीप प्रज्वलित किए गए. हर साल की तरह इस साल भी कम दामों में भक्तों के लिए दाल भात सेवा और पूड़ी सब्जी सेवा शुरू की गई है. वहीं, ज्योति कलश की स्थापना भी मां गंगा मैया मंदिर में की गई. सुबह से ही यहां भक्तों की भीड़ लगी हुई है.

भक्तों की पूरी होती है मनोकामना: मंदिर पहुंची बालोद निवासी सीमा ने बताया कि वह बचपन से इस मंदिर में आ रही है. जो यहां पर मनोकामना द्वीप जलाते हैं, उनकी हर एक मनोकामनाएं पूरी होती है. अपने पूर्वजों से सुना है कि मां गंगा मैया का इतिहास 100 सालों से भी अधिक पुराना है. यहां माता की चमत्कारिक मूर्ति एक तालाब से निकली थी, जिसके पीछे यह कथा है कि केवट उसे मूर्ति को सामान्य समझकर वापस बांध में फेंक दिया करता था, जिसके बाद एक पुजारी को सपना आया और उस मूर्ति को निकाल कर एक वृक्ष के नीचे स्थापित कर दिया. आज यह चमत्कारिक मूर्ति यहां स्थापित है.

मां गंगा मैया मंदिर में जलाए गए 900 से अधिक ज्योति कलश (ETV Bharat)

इस बार 900 से अधिक ज्योति कलश प्रज्जवलित किए गए हैं. यहां जो भी मनोकामना भक्त मांगते हैं, वो पूरी हो जाती है. भक्तों की नवरात्रि के पहली दिन भारी भीड़ उमड़ी है. यहां सालों से लोग अपनी मुराद लेकर आते हैं. -छन्नू साहू, मंदिर ट्रस्टी

135 साल पुराना है मंदिर का इतिहास: स्थानीय लोगों की मानें तो झलमला स्थित मां गंगा मईया मंदिर की स्थापना का इतिहास अंग्रेजी शासन काल से जुड़ा हुआ है. लगभग 135 साल पहले जिले की जीवन दायिनी तांदुला नदी पर नहर का निर्माण चल रहा था. सोमवार को वहां बड़ा साप्ताहिक बाजार लगता था. बाजार में दूर-दराज से पशुओं के झुंड के साथ बंजारे आया करते थे. पशुओं की संख्या अधिक होने की वजह से पानी की कमी महसूस होती थी. पानी की कमी को दूर करने के लिए बांधा तालाब की खुदाई कराई गई. गंगा मैया के प्रादुर्भाव की कहानी इसी तालाब से शुरू होती है.

जाल में फंसी थी प्रतिमा: मंदिर के व्यवस्थापक सोहन लाल टावरी ने बताया कि एक दिन सिवनी गांल का एक केवट मछली पकड़ने के लिए इस तालाब में गया. जाल में मछली की जगह एक पत्थर की प्रतिमा फंस गई. केवट ने अज्ञानतावश उसे साधारण पत्थर समझ कर फिर से तालाब में डाल दिया. लेकिन अगली बार जाल में फिर वहीं प्रतिमा फंस गई. केवट ने फिर मूर्ति को तालाब में डाल दिया. इस प्रक्रिया के कई बार पुनरावृत्ति से परेशान होकर केवट जाल लेकर अपने घर चला गया.

केवट को आया सपना: देवी ने गांव के गोंड़ जाति के बैगा को स्वप्न में आकर कहा कि मैं जल के अंदर पड़ी हूं. मुझे जल से निकालकर मेरी प्राण-प्रतिष्ठा करवाओ. स्वप्न की सत्यता को जानने के लिए तत्कालीन मालगुजार छवि प्रसाद तिवारी, केवट और गांव के अन्य प्रमुखों को साथ लेकर बैगा तालाब पहुंचा. केवट ने फिर जाल फेंका, जिसमें वही प्रतिमा फिर फंस गई. इसके बाद प्रतिमा को बाहर निकाला गया. उसके बाद देवी के आदेशानुसार छवि प्रसाद ने अपने संरक्षण में प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई. जल से प्रतिमा के निकलने की वजह से यह धाम मां गंगा मैया के नाम से विख्यात हुई.

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भक्तों की पूरी होती है मनोकामना: मंदिर पहुंची बालोद निवासी सीमा ने बताया कि वह बचपन से इस मंदिर में आ रही है. जो यहां पर मनोकामना द्वीप जलाते हैं, उनकी हर एक मनोकामनाएं पूरी होती है. अपने पूर्वजों से सुना है कि मां गंगा मैया का इतिहास 100 सालों से भी अधिक पुराना है. यहां माता की चमत्कारिक मूर्ति एक तालाब से निकली थी, जिसके पीछे यह कथा है कि केवट उसे मूर्ति को सामान्य समझकर वापस बांध में फेंक दिया करता था, जिसके बाद एक पुजारी को सपना आया और उस मूर्ति को निकाल कर एक वृक्ष के नीचे स्थापित कर दिया. आज यह चमत्कारिक मूर्ति यहां स्थापित है.

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इस बार 900 से अधिक ज्योति कलश प्रज्जवलित किए गए हैं. यहां जो भी मनोकामना भक्त मांगते हैं, वो पूरी हो जाती है. भक्तों की नवरात्रि के पहली दिन भारी भीड़ उमड़ी है. यहां सालों से लोग अपनी मुराद लेकर आते हैं. -छन्नू साहू, मंदिर ट्रस्टी

135 साल पुराना है मंदिर का इतिहास: स्थानीय लोगों की मानें तो झलमला स्थित मां गंगा मईया मंदिर की स्थापना का इतिहास अंग्रेजी शासन काल से जुड़ा हुआ है. लगभग 135 साल पहले जिले की जीवन दायिनी तांदुला नदी पर नहर का निर्माण चल रहा था. सोमवार को वहां बड़ा साप्ताहिक बाजार लगता था. बाजार में दूर-दराज से पशुओं के झुंड के साथ बंजारे आया करते थे. पशुओं की संख्या अधिक होने की वजह से पानी की कमी महसूस होती थी. पानी की कमी को दूर करने के लिए बांधा तालाब की खुदाई कराई गई. गंगा मैया के प्रादुर्भाव की कहानी इसी तालाब से शुरू होती है.

जाल में फंसी थी प्रतिमा: मंदिर के व्यवस्थापक सोहन लाल टावरी ने बताया कि एक दिन सिवनी गांल का एक केवट मछली पकड़ने के लिए इस तालाब में गया. जाल में मछली की जगह एक पत्थर की प्रतिमा फंस गई. केवट ने अज्ञानतावश उसे साधारण पत्थर समझ कर फिर से तालाब में डाल दिया. लेकिन अगली बार जाल में फिर वहीं प्रतिमा फंस गई. केवट ने फिर मूर्ति को तालाब में डाल दिया. इस प्रक्रिया के कई बार पुनरावृत्ति से परेशान होकर केवट जाल लेकर अपने घर चला गया.

केवट को आया सपना: देवी ने गांव के गोंड़ जाति के बैगा को स्वप्न में आकर कहा कि मैं जल के अंदर पड़ी हूं. मुझे जल से निकालकर मेरी प्राण-प्रतिष्ठा करवाओ. स्वप्न की सत्यता को जानने के लिए तत्कालीन मालगुजार छवि प्रसाद तिवारी, केवट और गांव के अन्य प्रमुखों को साथ लेकर बैगा तालाब पहुंचा. केवट ने फिर जाल फेंका, जिसमें वही प्रतिमा फिर फंस गई. इसके बाद प्रतिमा को बाहर निकाला गया. उसके बाद देवी के आदेशानुसार छवि प्रसाद ने अपने संरक्षण में प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई. जल से प्रतिमा के निकलने की वजह से यह धाम मां गंगा मैया के नाम से विख्यात हुई.

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