गुमलाः जिले के चैनपुर प्रखंड की कातिंग पंचायत के जोबला पाठ गांव में आज भी विकास की किरण नहीं पहुंची है. आदिम जनजाति बहुल गांव जोबला पाठ आज भी विकास की बाट जोह रहा है. इस आधुनिक दौर में भी गांव में बिजली, पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं से लोग वंचित हैं.
बताते चलें कि जोबला पाठ गांव में सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, रोजगार, आंगनबाड़ी केंद्र, जन वितरण प्रणाली दुकान आदि मौलिक सुविधाओं का अभाव है. जोबला पाठ पहुंचने के लिए सड़क भी नहीं है. यहां के ग्रामीण आज भी पगडंडियों के सहारे बाजार, जिला मुख्यालय, प्रखंड मुख्यालय, पंचायत और स्कूल-कॉलेज आना जाना करते हैं.
बीमार व्यक्तियों को खटिया में टांग कर अस्पताल ले जाना पड़ता है
जोबला गांव में स्वास्थ्य के लिए कोई साधन नहीं है. यहां के लोगों को उप स्वास्थ्य केंद्र जाने के लिए पहाड़ी के नीचे चितरपुर गांव या फिर 8 किलोमीटर दूर टोंगो गांव जाना पड़ता है. सड़क नहीं रहने के कारण बीमार व्यक्तियों को खटिया में टांग कर अस्पताल ले जाना पड़ता है.
पानी के लिए हाहाकार, गांव में एक भी चापानल नहीं
जोबला गांव में पेयजल की भी सुविधा नहीं है. गांव में एक भी चापाकल नहीं है. पर गांव में नल जल योजना के तहत दो जलमीनार का निर्माण कराया गया था. वर्तमान में दोनों जलमीनार बेकार पड़ा है और गांव के लोग कुंए का दूषित पानी पीने को विवश हैं. वहीं गर्मीयों में कुएं का पानी भी सूख जाता है. तब ग्रामीणों को कई किलोमीटर की दूरी तय कर दूसरे गांव से पानी ढो कर लाना पड़ता है.
राशन लाने के लिए भी 8 किमी दूर जाते हैं ग्रामीण
जोबला गांव में आदिम जनजाति के लोग रहते हैं, जिन्हें सरकार के द्वारा डोर-टू-डोर राशन पहुंचाने का प्रावधान है, लेकिन गांव के लोगों को राशन लेने के लिए 8 किमी दूर टोंगो गांव जाना पड़ता है.
ढिबरी युग में जीने को विवश हैं ग्रामीण, गांव में नहीं पहुंची बिजली
देशभर में राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना के तहत गांव में बिजली पहुंचाई जा रही है, लेकिन जोबला गांव में अब तक बिजली नहीं पहुंची है. यहां के लोग आज भी ढिबरी युग में जीने को विवश हैं.
गांव में नहीं है शौचालय, खुले में शौच जाते हैं ग्रामीण
स्वच्छता विभाग की ओर से भारत के हर गांव में शौचालय का निर्माण कराया जा रहा है, लेकिन जोबला पाठ गांव में किसी के घर में शौचालय नहीं बना है. लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं.
गांव में रोजगार का कोई साधन नहीं
जोबला गांव में रोजगार का कोई साधन नहीं है. यहां के लोग जलावन लकड़ी, दतवन और दोना-पत्तल बेचकर अपनी आजीविका चलाते हैं.
सरकारी योजनाओं से वंचित हैं ग्रामीण
जोबला गांव के लोगों की माने तो सरकारी लाभ के नाम पर बस उन्हें राशन ही मिल पाता है, बाकी अन्य योजनाओं का लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा है. जबकि सरकार के द्वारा आदिम जनजातियों के लिए अनेक प्रकार की लाभकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं.
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