रांची: झारखंड में 25 मई को एनडीए के ताकत की परीक्षा होनी है. मोदी के गारंटी का भी इम्तिहान होना है. इसकी वजह भी है. दरअसल, जिन चार सीटों मसलन, रांची, धनबाद, गिरिडीह और जमशेदपुर में चुनाव होना है, वहां एनडीए का दबदबा है. चारों सीटों पर एनडीए लंबे समय से काबिज है. लेकिन तुष्टिकरण, भीतरघात, ध्रुवीकरण और बाहरी-भीतरी के मुद्दे ने चुनाव को रोचक बना दिया. भाजपा और आजसू ने अपनी-अपनी सीट बचाने के लिए धुंआधार चुनावी सभाएं की है. दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. सहानुभूति वोट बटोरने के लिए कल्पना सोरेन ने भी खूब मेहनत की है.
एक सीट जहां पीएम और गृह मंत्री को करना पड़ा रोड शो
पूरे झारखंड में इसकी चर्चा हो रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि रांची लोकसभा सीट पर 2009 से भाजपा का कब्जा है. इसको भाजपा का गढ़ कहा जाता है. लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि रांची में पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को रोड शो करना पड़ा. पीएम ने तो चाईबासा में चुनावी सभा के आगाज के दिन ही रांची में रोड शो किया था. लेकिन कुछ दिन भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह को भी रोड करना पड़ा, वो भी उस चुटिया इलाके में, जिसे भाजपा का गढ़ कहा जाता है. इसपर विपक्ष ने भी चुटकी ली थी. इससे पता चलता है कि रांची सीट को लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेता कितने गंभीर हैं. क्योंकि यहां प्रत्याशी संजय सेठ के नाम पर नहीं बल्कि पीएम मोदी के नाम पर वोट मांगा जा रहा है. दूसरा रोचक पहलू यह है कि संजय सेठ का मुकाबला पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे सुबोधकांत सहाय की बेटी यशस्विनी सहाय से हो रहा है. उनके पक्ष में प्रियंका गांधी भी रांची में चुनावी सभा कर चुकी हैं.
रांची लोस क्षेत्र का विधानसभावार समीकरण
रांची लोकसभा क्षेत्र में ईचागढ़ (सरायकेला), सिल्ली, खिजरी, रांची, हटिया और कांके विधानसभा सीटें हैं. इनमें खिजरी सीट कांग्रेस के पास है. एनडीए की सहयोगी आजसू के पास सिल्ली सीट है. शेष चार सीटों पर भाजपा का कब्जा है. इस लिहाज से विधानसभा स्तर पर रांची में भाजपा मजबूत स्थिति में है.
2019 के लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो ईचागढ़, सिल्ली, रांची, हटिया और कांके विधानसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी ने एकतरफा बढ़त हासिल की थी. खिजरी इलाके में भी भाजपा को बढ़त मिली थी लेकिन बेहद मामूली. लेकिन इसबार के चुनाव में रांची सीट काफी चर्चा में है क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव के कुछ माह बाद हुई विधानसभा चुनाव में भाजपा के सीपी सिंह को झामुमो की महुआ माजी से सिर्फ 5,904 वोट की बढ़त ने जीत दिलाई थी. हटिया सीट पर भी भाजपा प्रत्याशी नवीन जायसवाल को कांग्रेस के अजयनाथ शाहदेव से जबरदस्त टक्कर मिली थी.
धनबाद में भाजपा को मिली थी रिकॉर्ड जीत, इसबार विवादों में है यह सीट
धनबाद सीट पर भी लंबे समय से भाजपा काबिज है. 2019 के चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी रहे पीएन सिंह ने पूरे राज्य में सबसे अधिक वोट के अंतर से जीत का रिकॉर्ड बनाया था. उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी रहे कीर्ति झा आजाद को 4,86,194 वोट के अंतर से हराया था. लेकिन इसबार पीएन सिंह की जगह बाघमारा से भाजपा विधायक ढुल्लू महतो मैदान में हैं.
खास बात है कि उनके सामने कांग्रेस ने स्वर्गीय राजेंद्र सिंह की बहू व बेरमो विधायक जयमंगल सिंह की पत्नी अनुपमा सिंह को उतारा है. इस सीट पर अगड़ा और पिछड़ा का समीकरण जमकर देखने को मिला है. ऊपर से भीतरघात और खौफ को लेकर भी माहौल बनाया गया है. यह ऐसी सीट बन गयी है जिसकी वजह से भाजपा की आंतरिक लड़ाई खुलकर सामने आ गई है. जाहिर है कि इसका चुनाव पर संभावित असर से इनकार नहीं किया जा सकता.
गिरिडीह सीट पर भाजपा के भरोसे है आजसू
गठबंधन के तहत भाजपा ने इसबार भी आजसू को गिरिडीह सीट दिया है. लेकिन आजसू के खाते में यह सीट जाते ही विरोध के स्वर दिखे थे. चंद्रप्रकाश चौधरी के खिलाफ लोगों का कहना था कि 2019 का चुनाव जीतने के बाद तो वह दिखे ही नहीं है. यहां झामुमो के टुंडी विधायक मथुरा महतो मैदान में हैं. उनके लिए कल्पना सोरेन ने कई चुनावी सभाएं की हैं. लेकिन भाजपा ने यह कहते हुए परसेप्शन बनाने की कोशिश की है कि आपका वोट चंद्रप्रकाश चौधरी को नहीं बल्कि मोदी को मजबूत करेगा. यह भावना कहीं कहीं प्रभाव डाल सकती है. लेकिन गांडेय उपचुनाव की वजह से यहां का माहौल हमेशा गर्म रहा. यहां सहानुभूति और तुष्टिकरण बनाम ध्रुवीकरण, भ्रष्टाचार में से एक का चुनाव होना है.
वैसे 2019 के चुनाव में आजसू प्रत्याशी का सामना झामुमो के जगरनाथ महतो से हुआ था. तब राज्य में रघुवर की सरकार थी. उस चुनाव में गिरिडीह, डुमरी, गोमिया, बेरमो, टुंडी और बाघमारा को आजसू प्रत्याशी चंद्रप्रकाश चौधरी को एकतरफा बढ़त मिली थी. इनमें से डुमरी, टुंडी और गिरिडीह में झामुमो के विधायक हैं. वहीं गोमिया विधानसभा सीट पर आजसू और बेरमो में कांग्रेस और बाघमारा सीट पर भाजपा का कब्जा है. विधानसभावार समीकरण पर गौर करेंगे तो यहां इंडिया गठबंधन के पास चार सीटे हैं. लोकसभा चुनाव पर भी इसका प्रभाव पड़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. जाहिर है कि यहां भाजपा के भरोसे आजसू है तो मोदी के भरोसे भाजपा. इसलिए यहां रोचक मुकाबला होने की संभावना है.
जमशेदपुर सीट पर क्या दिखेगा एंटी इनकमबेंसी
इस सीट पर भाजपा के विद्युत वरण महतो हैट्रिक लगाने उतरे हैं. जाहिर है कि उनको एंटी इंकमबेंसी से सामना करना पड़ेगा. वैसे पीएम मोदी ने खुद जमशेदपुर में चुनावी सभा कर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने की पूरी कोशिश की है. लेकिन खास बात है कि इसबार उनका सामना बहरागोड़ा से झामुमो विधायक समीर मोहंती से है जो उड़िया ब्राह्मण परिवार से आते हैं.
दूसरी खास बात है कि आज के भाजपा प्रत्याशी विद्युत वरण कभी बहरागोड़ा से ही झामुमो के विधायक रह चुके हैं. दोनों नेता एक-दूसरे की खूबी और कमी से वाकिफ हैं. यहां भीतरघात की संभावना से इनकार नहीं किया सकता. क्योंकि 2019 के विस चुनाव में भाजपा ने कुणाल षाड़ंगी को उम्मीदवार बनाया था. लेकिन बाद में समीर से हारने पर उन्होंने ही आरोप लगाया था कि विद्युत वरण ने पार्टी लाइन को छोड़कर समीर के लिए फिल्डिंग की थी. इसी वजह से उनकी हार हुई. ग्राउंड से मिली जानकारी के मुताबिक यहां इसबार कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है.
जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र में कुल 6 सीटों मसलन, पूर्वी जमशेदपुर, पश्चिमी जमशेदपुर, पोटका, जुगसलाई, बहरागोड़ा और घाटशिला में से किसी भी विधानसभा सीट पर भाजपा नहीं जीत पाई थी. वहीं चार विधानसभा सीटों पर झामुमो का कब्जा है. जबकि एक सीट कांग्रेस और एक सीट बतौर निर्दलीय सरयू राय के खाते में है. जबकि 2014 में छह में चार सीटों भाजपा, एक सीट आजसू और एक सीट पर झामुमो की जीत हुई थी. इसका फायदा 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिला था. लेकिन इसबार समीकरण बदला हुआ है. इस इलाके में इंडिया गठबंधन मजबूत स्थिति में है. समीर मोहंती के लिए सीएम चंपाई सोरेन ने खूब मेहनत की है जबकि रघुवर दास के मेन स्ट्रिम राजनीति से अलग होने के कारण विद्युत वरण अलग थलग नजर आए हैं.
कुल मिलाकर देखें तो चारों सीटों पर एनडीए की प्रतिष्ठा दाव पर है. वहीं इंडिया गठबंधन के पास खोने के लिए कुछ नहीं है. ऊपर से इंडिया गठबंधन की एकजुटता से वोट समीकरण के प्रभावित होने की आशंका जतायी जा रही है. लिहाजा, चारों सीटें हॉट बनी हुई हैं.
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