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देवघर के स्वतंत्रता सेनानी सरयू प्रसाद मिर्धा इतिहास के पन्ने में हो गए गुम! नहीं मिला उचित सम्मान - Independence Day 2024

Deoghar freedom fighter. देवघर के स्वतंत्रता सेनानी सरयू प्रसाद मिर्धा इतिहास के पन्नों में गुम हो गए हैं. जबकि देशी की आजादी की लड़ाई में उनका योगदान महत्वपूर्ण था.

Deoghar Freedom Fighter
देवघर के स्वतंत्रता सेनानी सरयू प्रसाद मिर्धा और उनकी पत्नी सातो देवी. (फाइल फोटो-ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Aug 14, 2024, 7:35 PM IST

देवघर: आज हम आजादी की 78वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. आजादी प्राप्त करने में देश के कई महान विभूतियों ने अपनी शहादत दी तो कई ने कठोर संघर्ष किया. ऐसे ही कठोर संघर्ष कर देश को आजादी दिलाने में देवघर के भी एक लाल शामिल हैं, जिनका नाम है सरयू प्रसाद मिर्धा. सरयू प्रसाद मिर्धा को भले ही सरकार से उचित सम्मान नहीं मिला हो, लेकिन उनके देश के लिए दी गई कुर्बानी का गौरवशाली इतिहास है.

देवघर के स्वतंत्रता सेनानी सरयू प्रसाद मिर्धा के योगदान पर रिपोर्ट और जानकारी देते परिजन. (वीडियो-ईटीवी भारत)

देवघर के सारवां प्रखंड में हुआ था सरयू का जन्म

देवघर के स्वतंत्रता सेनानी सरयू प्रसाद मिर्धा का जन्म देवघर जिले के सारवां प्रखंड के पानीडीह में 3 फरवरी 1918 को हुआ था. सरयू मिर्धा काफी गरीब परिवार से थे, लेकिन उन्होंने अपने कार्यों से पूरे देश में अपना और जिले का नाम रोशन किया. सरयू प्रसाद मिर्धा को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी सम्मानित किया था. 1932 में महात्मा गांधी जब देवघर आए थे तो उन्होंने सरयू प्रसाद मिर्धा को अपना आशीर्वाद दिया था. महात्मा गांधी देवघर दौरे से जब पटना गए थे तो वहां से उन्होंने पत्र के माध्यम से हरिजन सेवक संघ को यह निर्देश दिया था कि सरयू प्रसाद मिर्धा को प्रति माह चार रुपये छात्रवृत्ति दी जाए.

1930 से 1945 तक लड़ी थी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई

वर्ष 1930 से वर्ष 1945 तक सरयू प्रसाद मिर्धा ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. सरयू प्रसाद मिर्धा ने तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंकते हुए रेलवे लाइन उखाड़ दिया था और अंग्रेजों के हथियारों के जखीरे पर हमला बोल उनके नाक में दम कर दिया था.

1952 में सारठ विधानसभा से सरयू ने लड़ा था चुनाव

आजादी की लड़ाई में सरयू प्रसाद मिर्धा के योगदान को देखते हुए वर्ष 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में सारठ विधानसभा सीट से कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़ने के लिए सरयू प्रसाद मिर्धा को टिकट दिया गया था, लेकिन स्थानीय मतभेद की वजह से सरयू प्रसाद मिर्धा चुनाव नहीं जीत पाए.

स्वतंत्रता सेनानी को मिलती थी पेंशन

स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सरयू प्रसाद मिर्धा और उनकी पत्नी सातो देवी को पेंशन के रूप में आर्थिक लाभ मिलता रहा. वर्ष 1998 तक सरयू प्रसाद मिर्धा को पेंशन का लाभ मिला और फिर उनकी मौत के बाद उनकी पत्नी सातो देवी को वर्ष 2009 तक स्वतंत्रता सेनानी के पेंशन का लाभ मिलते रहा. वर्ष 2009 में सरयू प्रसाद मिर्धा की पत्नी भी चल बसी.

देवघर के स्वतंत्रता सेनानी सरयू प्रसाद मिर्धा अपने पीछे तीन पुत्र और एक पुत्री छोड़ गए हैं. वर्तमान में सरयू प्रसाद मिर्धा के बड़े बेटे नित्यानंद सेवक सिविल कोर्ट में वकालत करते हैं. वहीं दूसरे पुत्र परमानंद सेवक ललमटिया ईसीएल में कार्यरत हैं, जबकि उनकी बेटी मीना कुमारी देवघर के चरखी पहाड़ी मिडिल स्कूल में प्रिंसिपल हैं. वही उनके चौथे नंबर पर तीसरे पुत्र कमलानंद सेवक बेरोजगार हैं.

पिता को नहीं मिला उचित सम्मानः नित्यानंद

सरयू प्रसाद मिर्धा के बड़े पुत्र नित्यानंद सेवक बताते हैं कि उनके पिताजी ने आजादी के लिए जो बलिदान दिया था उसे आज के युवा नहीं जानते हैं. जिला प्रशासन की ओर से भी उनके पिता को उचित सम्मान नहीं मिला. शहर की किसी चौक-चौराहे पर उनके पिता की प्रतिमा नहीं लगाई गई है. नित्यानंद सेवक बताते हैं कि आज के युवा उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी सरयू प्रसाद मिर्धा को नहीं जानते हैं, जो निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है.

जरूरत है सरयू प्रसाद मिर्धा जैसे स्वतंत्रता सेनानी को जिला प्रशासन और स्थानीय लोग उचित सम्मान देते हुए उन्हें याद करें, ताकि स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देवघर के सपूतों के बलिदान को देश और दुनिया के लोग जान सकें.

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देवघर के स्वतंत्रता सेनानी सरयू प्रसाद मिर्धा के योगदान पर रिपोर्ट और जानकारी देते परिजन. (वीडियो-ईटीवी भारत)

देवघर के सारवां प्रखंड में हुआ था सरयू का जन्म

देवघर के स्वतंत्रता सेनानी सरयू प्रसाद मिर्धा का जन्म देवघर जिले के सारवां प्रखंड के पानीडीह में 3 फरवरी 1918 को हुआ था. सरयू मिर्धा काफी गरीब परिवार से थे, लेकिन उन्होंने अपने कार्यों से पूरे देश में अपना और जिले का नाम रोशन किया. सरयू प्रसाद मिर्धा को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी सम्मानित किया था. 1932 में महात्मा गांधी जब देवघर आए थे तो उन्होंने सरयू प्रसाद मिर्धा को अपना आशीर्वाद दिया था. महात्मा गांधी देवघर दौरे से जब पटना गए थे तो वहां से उन्होंने पत्र के माध्यम से हरिजन सेवक संघ को यह निर्देश दिया था कि सरयू प्रसाद मिर्धा को प्रति माह चार रुपये छात्रवृत्ति दी जाए.

1930 से 1945 तक लड़ी थी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई

वर्ष 1930 से वर्ष 1945 तक सरयू प्रसाद मिर्धा ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. सरयू प्रसाद मिर्धा ने तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंकते हुए रेलवे लाइन उखाड़ दिया था और अंग्रेजों के हथियारों के जखीरे पर हमला बोल उनके नाक में दम कर दिया था.

1952 में सारठ विधानसभा से सरयू ने लड़ा था चुनाव

आजादी की लड़ाई में सरयू प्रसाद मिर्धा के योगदान को देखते हुए वर्ष 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में सारठ विधानसभा सीट से कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़ने के लिए सरयू प्रसाद मिर्धा को टिकट दिया गया था, लेकिन स्थानीय मतभेद की वजह से सरयू प्रसाद मिर्धा चुनाव नहीं जीत पाए.

स्वतंत्रता सेनानी को मिलती थी पेंशन

स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सरयू प्रसाद मिर्धा और उनकी पत्नी सातो देवी को पेंशन के रूप में आर्थिक लाभ मिलता रहा. वर्ष 1998 तक सरयू प्रसाद मिर्धा को पेंशन का लाभ मिला और फिर उनकी मौत के बाद उनकी पत्नी सातो देवी को वर्ष 2009 तक स्वतंत्रता सेनानी के पेंशन का लाभ मिलते रहा. वर्ष 2009 में सरयू प्रसाद मिर्धा की पत्नी भी चल बसी.

देवघर के स्वतंत्रता सेनानी सरयू प्रसाद मिर्धा अपने पीछे तीन पुत्र और एक पुत्री छोड़ गए हैं. वर्तमान में सरयू प्रसाद मिर्धा के बड़े बेटे नित्यानंद सेवक सिविल कोर्ट में वकालत करते हैं. वहीं दूसरे पुत्र परमानंद सेवक ललमटिया ईसीएल में कार्यरत हैं, जबकि उनकी बेटी मीना कुमारी देवघर के चरखी पहाड़ी मिडिल स्कूल में प्रिंसिपल हैं. वही उनके चौथे नंबर पर तीसरे पुत्र कमलानंद सेवक बेरोजगार हैं.

पिता को नहीं मिला उचित सम्मानः नित्यानंद

सरयू प्रसाद मिर्धा के बड़े पुत्र नित्यानंद सेवक बताते हैं कि उनके पिताजी ने आजादी के लिए जो बलिदान दिया था उसे आज के युवा नहीं जानते हैं. जिला प्रशासन की ओर से भी उनके पिता को उचित सम्मान नहीं मिला. शहर की किसी चौक-चौराहे पर उनके पिता की प्रतिमा नहीं लगाई गई है. नित्यानंद सेवक बताते हैं कि आज के युवा उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी सरयू प्रसाद मिर्धा को नहीं जानते हैं, जो निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है.

जरूरत है सरयू प्रसाद मिर्धा जैसे स्वतंत्रता सेनानी को जिला प्रशासन और स्थानीय लोग उचित सम्मान देते हुए उन्हें याद करें, ताकि स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देवघर के सपूतों के बलिदान को देश और दुनिया के लोग जान सकें.

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