नई दिल्ली: सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉर्पोरेशन (CWC) में अधिकारी के तौर पर काम करने वाले गौरव शर्मा का प्रकृति और पर्यावरण से इतना लगाव है कि वो कभी अकेले ही इसके लिए कुछ करने के लिए निकल पड़े. उन्होंने पर्यावरण प्रेमियों की एक टोली बनाई. गौरव ने इस टोली का नाम 'नीम टीम' रखा. गौरव और उनकी टीम ने यमुनापार के नॉर्थ ईस्ट एरिया के कई सड़कों के सेंट्रल वर्ज (डिवाइडर) को नीम के पेड़ों से लबालब कर दिया है. वहीं, भीषण गर्मी में इन पौधों को मरने से बचाने के लिए पानी पिलाने का काम भी करते हैं.
पृथ्वी संतरात् संतु नः पुण्य पुण्येन वातः
पुण्येन अध्युष्ट पुण्य पृथ्वी पुण्येन संतु नः
इसका मतलब है- "हमारे अच्छे कर्मों से पृथ्वी की रक्षा होती है.'' इस पंक्ति को चरितार्थ करते हुए गौरव ने लोगों के साथ मिलकर करीब 12-13 साल से सड़क किनारे और बीचों बीच लगे पेड़ पौधों को जिंदा रखने की मुहिम चलाए हुए हैं. शुरुआती करीब 6-7 सालों तक खुद ही इस जज्बे को कायम रखते हुए आगे बढ़ाते रहे हैं और आज कहें तो वो अकेले नहीं, बल्कि उनके साथ एक टीम मिलकर दिल्ली की सांसों में 'ऑक्सीजन' भरने के लिए पूरी मेहनत, लगन और निष्ठा से जुटी है. गौरव शर्मा ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत के दौरान अपनी इस मुहिम के बारे में सिलसिलेवार तरीके से बताया है.
सवाल: नीम टीम नाम कैसे पड़ा, इसके पीछे की सोच क्या है?
जवाब: पेड़ों के ऊपर ही कुछ नाम रखने का मन बनाया और उसके नाम पर ही यह रखा गया. नीम की निंबोलियों से हम छोटी-छोटी पौध बनाना लोगों को सिखाते हैं. इन पौधों को हम सड़कों के बीचो-बीच सेंट्रल वर्ज पर, सड़क के किनारे और दूसरी जगहों पर इसको लगाते हैं और सिर्फ लगाते ही नहीं है उनकी सेवा भी करते हैं. इन पौधों को लगाने के बाद इनके लिए सेवादार भी नियुक्त करते हैं जो इन पौधों को पानी की कमी महसूस नहीं होने देते हैं.
सवाल: किस तरह से नीम की पौध तैयार करते हैं?
जवाब: नीम की पौधे तैयार करने में कोई रॉकेट साइंस प्रयोग नहीं की जाती है बल्कि इसको तैयार करना बहुत ही आसान है. हम पहले नीम की निंबोलियां लेते हैं. जैसे पेडे पर चिरौंजी दबाई जाती है, उस तरह से मिट्टी में निंबोली को दबाया जाता है और वॉटरिंग की जाती है. यह प्रक्रिया तकरीबन 8 से 10 दिनों की है जिसके बाद निंबोली फूटकर पौध का रूप ले लेती है. इसके लिए ईस्ट ऑफ लोनी रोड के एलआईजी फ्लैट्स स्थित एक नर्सरी पार्क के पास पार्क में एक जगह बनाई हुई है जहां पर इसको तैयार करने का काम किया जाता है.
सवाल: पौध तैयार करने में दूध की पॉलिथीन का किस तरह से प्रयोग करते हैं?
जवाब: दिल्ली में दूध की पॉलिथीन बड़ी मात्रा में निकलती हैं जोकि पर्यावरण को अलग-अलग तरह से नुकसान भी पहुंचाती हैं. खासकर बरसात के मौसम में बहकर यह कहीं ना कहीं नाली और ड्रेनेज सिस्टम को ब्लॉक करने का काम करती हैं. इन सभी पॉलिथीन को हम लोग एकत्र करते हैं और अपने आसपास के लोगों को जागरुक करते हुए इनको फेंकने की बजाय इकट्ठा कर हमें देने के लिए कहते हैं. इन पॉलिथीन में हम मिट्टी भरकर उनमें निंबोली आदि दबाकर नीम की नई पौध तैयार करते हैं. हमारा मकसद वेस्ट के जरिए ही प्रोडक्टिविटी तैयार करना है और जीरो कास्टिंग या फिर मिनिमम कास्टिंग पर काम करना है. अगर देखा जाए तो पर्यावरण को बचाने के लिए इसके जरिए एक तीर से कई निशाने साधे जा रहे हैं.
सवाल: नीम की पौध तैयार करने के लिए सीड्स कैसे प्राप्त करते हैं?
जवाब: गौरव शर्मा बताते हैं कि नीम की पौध के लिए सीड्स या फिर निंबोलियां खुद में खुद पेड़ों से ही एकत्र की जाती हैं. मॉनसून के दौरान 22 जून से लेकर 22 जुलाई तक के दौरान निंबोलियां नीम के पेड़ों से खुद ही गिरती हैं. इनको एकत्र कर हम नीम की पॉलिथीन में एक-एक या दो-दो निंबोलियां मिट्टी के साथ गाड़ देते हैं. इसके बाद वह पौध के रूप में निकलने लगती हैं. मार्केट में इस पौध की कीमत ₹100 से लेकर ₹200 की कीमत होती है, लेकिन हम इसको जीरो कास्टिंग या फिर मिनिमम कास्टिंग पर फ्री में तैयार कर लेते हैं.
सवाल: अब तक नीम की कितनी पौध तैयार करने का काम किया जा चुका है?
जवाब: गौरव शर्मा ने बताया कि, हर साल हम करीब 500 नीम की पौध तैयार करने का काम कर रहे हैं और करीब-करीब साढ़े 12 सालों से यह काम निरंतर किया जा रहा है. अब तक तकरीबन 6 से साढ़े 6 हजार नीम की पौध तैयार करने का काम हम कर चुके हैं. इन सभी पौध को लोगों को वितरण करने का काम भी किया गया है. यह सिर्फ मेरे खुद के स्तर पर तैयार की गईं पौधों का आंकड़ा है, बाकी अन्य सेवादार कई सालों से इस मुहिम में जुटे हुए हैं. वह भी अपने लेवल पर नीम की पौध तैयार करते हैं और समाज में लोगों को इन पौधों को बांटने का काम करते आ रहे हैं.
सवाल: नीम टीम ने किन खास एरिया में इस तरह का काम किया है?
जवाब: हम खासकर वजीराबाद रोड जोकि सिग्नेचर ब्रिज से लेकर गगन सिनेमा (नंद नगरी) तक के पूरे रोड पर इसके लिए काम कर चुके हैं. इसके अलावा लोनी गोल चक्कर से लेकर दुर्गापुरी चौक और आगे शाहदरा मेन रोड पर इस काम को करने का काम कर चुके हैं. लोनी गोल चक्कर से लेकर दुर्गापुरी चौक और शाहदरा रोड के करीब डेढ़ किलो मीटर के रोड पर सैकड़ो की संख्या में नीम के पेड़ आज खड़े नजर मिल जाएंगे. इस रोड़ पर दूसरे पेड़ भी लगे हैं लेकिन खास बात नीम के पेड़ों की है. इसके अतिरिक्त दुर्गापुरी चौक से नत्थू कॉलोनी फ्लाईओवर, नंद नगरी एरिया को भी इस मुहिम में शामिल कर काम किया गया है. दुर्गापुरी चौक से 100 फुटा रोड़ बाबरपुर रोड़-मौजपुर रोड़ चौक तक दूसरे साथियों ने नीम के पेड़ लगाने का काम किया है.
सवाल: क्या सरकार की तरफ से किसी तरह की कोई मदद या सहयोग मिला है?
जवाब: गौरव शर्मा का कहना है कि सरकार की तरफ से आंशिक तौर पर कभी कोई थोड़ा बहुत सहयोग मिल जाता है. गौरव बताते हैं कि रोहतास नगर विधानसभा क्षेत्र के विधायक जितेंद्र महाजन की तरफ से कई बार कुछ सहयोग मिल गया है. सरकार की तरफ से कुछ पौध उनको उपलब्ध करवाई गईं. नॉर्थ ईस्ट लोकसभा सीट से क्षेत्रीय बीजेपी सांसद मनोज तिवारी की तरफ से कुछ सहयोग भी इस अभियान में मिला है, लेकिन हम 90 फ़ीसदी पौध खुद ही तैयार करते हैं. और उनको लगाने और वितरण करने का काम किया जाता है.
सवाल: नौकरी के साथ कैसे टाइम निकालते हैं और लोगों को कैसे जोड़ते हैं?
जवाब: गौरव शर्मा बताते हैं कि वह सोशल मीडिया के माध्यम से भी लोगों को जोड़ने का काम करते हैं. फेसबुक पर भी नीम टीम का एक पेज बनाया है जिसके जरिए दिल्ली और अन्य राज्यों के लोग भी मुहिम के साथ जुड़ते हैं और इस तरह के अभियान को वह अपने राज्यों में चलाते हैं, यहां पर दिल्ली में उनके साथ बहुत से लोग जुड़े हैं. बचपन में खेलकूद की उमंग बहुत ज्यादा थी और इसमें ज्यादा रुचि थी. वह सब अब छूट गया और उसी खेलकूद की जो एनर्जी थी, वह अब पेड़ पौधों में लग गई है. सुबह के वक्त चार पांच बजे उठ जाते हैं और तीन-चार घंटे तक सेवा करते हैं. बाद फिर ऑफिस चले जाते हैं. छुट्टी वाले दिन कुछ ज्याद वक्त मिल जाता है. संस्था ने एक 'प्लांट एंबुलेंस' भी बनायी हुई जोकि ई रिक्शा पर 500 लीटर की पानी की कैन लेकर पौधों को सींचने का काम भी करती है.
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सवाल: किन पार्कों को हराभरा बनाने का काम संस्था ने किया?
जवाब: ईस्ट ऑफ़ लोनी रोड, डीडीए फ्लैट्स के स्टेज वाले पार्क का आधा हिस्सा जो पूरी तरीके से बंजर था, उसको हरा भरा बनाने का काम किया है. शाहदरा राठी मिल स्थित चंद्रशेखर आजाद पार्क जो कभी बंजर होता था, उसको भी हरा भरा बनाने का काम टीम ने क्षेत्रीय सांसद मनोज तिवारी और स्थानीय विधायक जितेंदर महाजन के सहयोग से हरा भरा बनाने का किया है. साल 2018 में सांसद मनोज तिवारी ने इसका उद्घाटन किया था लेकिन 2019 तक ऐसे ही पड़ा रहा जिसको हम सभी ने आसपास के लोगों के साथ मिलकर हरा-भरा बनाने का काम किया है. इसमें प्रशासन की तरफ से भी पूरा सहयोग मिला.
उन्होंने बताया कि यह बंजर हालत में था जिसको अब 'ऑक्सीजन पार्क' के रूप में तैयार किया जा चुका है. इसको अगर कहें कि यह नॉर्थ ईस्ट दिल्ली का सबसे खूबसूरत पार्क बना है और 'ऑक्सीजन बैंक' के रूप में लोगों को मिला है. आगे भी इसको और अच्छा बनाने का काम किया जा रहा है. इसी पार्क के पीछे एक 'दिव्यांग पार्क' भी डेवल्प किया गया है. एक साल से नीम टीम के लोगों के साथ मिलकर इसको डेवल्प करने का काम किया और अब करीब चार-पांच माह पहले अब एमसीडी ने इस 'दिव्यांग पार्क' को गोद ले लिया है जहां पर नीम टीम ने नीम के अलावा अर्जुन और दूसरे तरह के पौध लगाए थे जोकि मेडिसिनल प्लांट थे. वह सब इस पार्क में लगे हुए देखे जा सकते हैं.
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सवाल: पर्यवरण को लेकर नीम टीम की आगे की किस तरह की योजना है?
जवाब: आने वाले दिनों में इस साल जीटी रोड शाहदरा फ्लाईओवर (विश्वकर्मा सेतु) जोकि दिलशाद गार्डन पर जाकर खत्म होता है, इस मॉनसून में उसके साथ नीम, पीपल और दूसरे पौधे लगाने का काम किया जा रहा है. इस पूरे फ्लाईओवर के ट्रैक को करीब 200 से 250 पौधे लगाकर भरने का प्लान है. नंद नगरी में भी एक पार्क बनाने के लिए स्थानीय विधायक की ओर से कहा गया है, उस पर भी हम लोग आगे काम कर रहे हैं. हमारा प्रयास है कि क्षेत्र को हरा-भरा और पर्यावरण को साफ स्वच्छ बनाने की दिशा में जो भी काम संभव हो पाएगा, उसको करने का प्रयास किया जाएगा.
सवाल: पेड़ का बर्थडे मनाने के पीछे की क्या वजह है?
जवाब: नीम टीम ने 5 साल पहले 2019 में चंद्रशेखर आजाद पार्क (राठी मिल) में एक पेड़ 'पिलखन' का लगाया था जिसका नीम टीम संस्था हर साल जन्म दिवस मनाती है. इस दौरान सभी सेवादार प्रसाद वितरण के लिए स्वेच्छा से कुछ केले, आम, जामुन या दूसरे फल लेकर पहुंचते हैं और पेड़ की पूजा अर्चना करने के बाद बाकायदा केक काटकर उसका बर्थडे मनाया जाता है. दूसरी लाई गई चीजों को वितरित किया जाता है जिसके पीछे का मकसद लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना है. साथ ही यह बताना है कि जिस तरह से हम अपने बच्चों का जन्मदिन मनाते हैं और उसकी तारीख याद रखते हैं.
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