नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को दिल्ली पुलिस से फरवरी 2020 में राजधानी में हुए दंगों से संबंधित आपराधिक मामलों की स्थिति के बारे में जानकारी देने को कहा. न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हिंसा के बाद 750 से अधिक एफआईआर दर्ज की गईं और 273 में जांच अभी भी लंबित है. उन्होंने दिल्ली पुलिस से मामलों के संबंध में एक नई स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा.
पीठ ने आदेश दिया कि प्रतिवादी को 10 दिनों के भीतर मामलों के संबंध में वर्तमान स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है. नागरिकता कानून समर्थकों और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसा काबू से बाहर होने के बाद 24 फरवरी, 2020 को उत्तर पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे, जिसमें कम से कम 53 लोग मारे गए थे और लगभग 700 घायल हुए थे.
अदालत जमीयत उलेमा-ए-हिंद की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दंगों की स्वतंत्र जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने की मांग की गई थी. वकील ने कहा कि कम से कम उन मामलों में एसआईटी का आदेश दिया जाना चाहिए, जहां अब तक आरोपपत्र दाखिल करने की नौबत भी नहीं आई है. सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि मामले 2020 में दर्ज किए गए थे, लेकिन उनमें से कई अभी भी लंबित हैं और पुलिस से इसके पीछे का कारण पूछा. कोर्ट ने पूछा कि आप कितना समय लेंगे? मामला 2020 का है और हम 2024 में प्रवेश कर चुके हैं.
कोर्ट ने आगे कहा, 'कुल दर्ज मामले 757 हैं, जिसमें से 62 अपराध शाखा में स्थानांतरित हैं. आरोप पत्रित मामलों की संख्या 367 है, विचाराधीन मामलों की संख्या 250 है और 273 मामलों की जांच लंबित है.' याचिकाकर्ता ने मार्च 2020 में उत्तरपूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के सीसीटीवी फुटेज के संरक्षण सहित कई राहतों की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था.
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जनहित याचिका में दावा किया गया है कि दंगों के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की गई है. साथ ही आरोप लगाया गया है कि पुलिस उस शिकायत को स्वीकार नहीं कर रही है, जिसमें आरोपियों का नाम है और वे अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ शिकायत देने पर जोर दे रहे हैं. मामले में अगली सुनवाई 29 अप्रैल को होगी. अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा एक स्वतंत्र निकाय द्वारा जांच के साथ-साथ कथित तौर पर नफरत भरे भाषण देने के लिए कई राजनीतिक नेताओं के खिलाफ एफआईआर की मांग करने वाली जनहित याचिकाएं भी उच्च न्यायालय में लंबित हैं.
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