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कर्ज में डूबी हिमाचल सरकार नहीं झेल पाएगी कर्मियों के वेतन का भार, 2026-27 में सिर्फ सैलरी देने को 20639 करोड़ की जरूरत - Debt on Himachal

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jun 26, 2024, 7:23 AM IST

Updated : Jun 26, 2024, 7:29 AM IST

Himachal Pradesh Under Debt: हिमाचल प्रदेश बुरी तरह से कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा है. प्रदेश के ऊपर 85 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज हो गया है, जो कि आने वाले दिनों में 1 लाख करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर जाएगा. नए वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद कर्मचारियों को वेतन देना भी सरकार के लिए सिरदर्द बन गया है.

Himachal Pradesh Under Debt
कर्ज में डूबा हिमाचल प्रदेश (ETV Bharat)

शिमला: छोटा पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश बुरी तरह से कर्ज के जाल में फंस गया है. एक दशक से कैग यानी कंपट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया जिस डेब्ट ट्रैप की तरफ इशारा कर रहा था, वो अब हकीकत बन चुका है. आलम ये है कि नए वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद हिमाचल सरकार के लिए कर्मचारियों का वेतन देना चिंता का विषय हो गया है.

वित्त वर्ष 2026-27 में राज्य सरकार को कर्मचारियों के वेतन पर ही सालाना 20,639 करोड़ रुपए खर्च करने होंगे. इससे भी बढ़कर चिंता की बात ये है कि वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद राज्य सरकार के सिर पर आई एरियर की लायबिलिटी आउट ऑफ कंट्रोल होती चली जाएगी. ये बात अलग है कि सरकारी नौकरियों की संख्या कम हो रही है, लेकिन अनुबंध अवधि को पेंशन के लिए गिने जाने और बकाया एरियर आदि को लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जिस तरह से आदेश आ रहे हैं, उससे हालात काबू से बाहर हो रहे हैं. हिमाचल के दौरे पर आए सोलहवें वित्त आयोग के समक्ष राज्य सरकार ने ये सारे तथ्य रखे हैं.

कर्मचारी हो रहे कम, लेकिन बढ़ रहा वेतन का खर्च

हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2018-19 के बाद से बेशक सरकारी कर्मचारियों की संख्या कम हो रही है, लेकिन वेतन का खर्च बढ़ रहा है. खर्च बढ़ने के कारण नए वेतन आयोग की सिफारिशें भी हैं. सोलहवें वित्त आयोग के समक्ष पेश किए गए वित्तीय मेमोरेंडम में हिमाचल सरकार ने दर्ज किया है कि नए वेतन आयोग के बाद से सरकारी कर्मचारियों के वेतन का खर्च 59 प्रतिशत तक बढ़ गया है. राज्य सरकार में शिक्षा व स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों की संख्या सबसे अधिक है और इन्हीं दो विभागों के कर्मचारियों के वेतन पर सबसे अधिक खर्च हो रहा है.

वित्त आयोग के समक्ष पेश किए गए आंकड़ों पर गौर करें तो शिक्षा व स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों पर वर्ष 2017-18 में वेतन का खर्च 5615 करोड़ रुपए था. ये बढ़कर 2018-19 में 5903 करोड़, फिर वर्ष 2019-20 में 6299 करोड़ और 2020-21 में 6476 करोड़ रुपए हो गया. वर्ष 2025-26 में वेतन का ये खर्च 9361 करोड़ रुपए सालाना हो जाएगा.

Himachal Pradesh Under Debt
हिमाचल पर कर्ज का बोझ (File Photo)

आने वाले सालों में वेतन पर खर्च

राज्य सरकार की तरफ से सोलहवें वित्त आयोग के समक्ष दिए गए मेमोरेंडम के अनुसार वित्त वर्ष 2026-27 में सरकारी कर्मियों के वेतन पर ही सालाना 20639 करोड़ रुपए खर्च होंगे. वित्त वर्ष 2027-28 में ये खर्च 22502 करोड़ सालाना, फिर वर्ष 2028-29 में 24145 करोड़, वर्ष 2029-30 में 26261 करोड़ रुपए हो जाएगा. वर्ष 2030-31 में सरकारी कर्मियों के वेतन का खर्च सालाना 28354 करोड़ रुपए हो जाएगा.

हिमाचल पर 85 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज

हिमाचल सरकार पर अभी 85 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज हो गया है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि राज्य सरकार को कर्ज चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है. अगले वित्तीय वर्ष से पहले ही कर्ज का आंकड़ा एक लाख करोड़ रुपए को पार कर जाएगा. यदि सोलहवें वित्त आयोग से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट अच्छी मिल गई तो राज्य सरकार को कुछ राहत मिल सकती है. यदि राज्य सरकार को माहवार 1500 करोड़ रुपए से अधिक का राजस्व घाटा अनुदान मिल जाए तो वेतन आदि के खर्च में कुछ सहूलियत हो जाएगी.

राज्य सरकार ने वित्त आयोग के समक्ष तर्क दिया है कि वाटर सेस के जरिए आय बढ़ाने का विकल्प तलाश किया गया था, लेकिन ये फैसला अदालतों के फेर में फंस गया है. बीबीएमबी से राज्य सरकार को अपना 4000 करोड़ रुपए के करीब का एरियर नहीं मिला है. इसके अलावा वन संपदा के दोहन की इजाजत मिले तो सालाना चार हजार करोड़ रुपए राजस्व जुटाया जा सकता है.

पूर्व वित्त सचिव केआर भारती का कहना है कि स्थिति गंभीर है और राजस्व के नए संसाधन तलाशने होंगे. पर्यटन के साथ-साथ कृषि सेक्टर को मजबूत करना होगा. ग्रामीण पर्यटन को और विस्तार देने की जरूरत है. लोक लुभावन योजनाओं में भी अच्छा-खासा बजट खर्च होता है. ऐसी घोषणाओं पर नए सिरे से मंथन होना चाहिए. अभी ओपीएस से कितना बोझ और पड़ेगा, इसका असर आने वाले समय में पता चलेगा. फिलहाल तो हिमाचल प्रदेश आर्थिक मोर्चे पर डांवाडोल स्थिति में है.

ये भी पढ़ें: CM का दर्द: कर्ज चुकाने के लिए लेना पड़ रहा कर्ज, फाइनेंस कमीशन से किया संकट दूर करने का आग्रह

ये भी पढ़ें: फाइनेंस कमीशन के ध्यान में है मुफ्त की रेवड़ियां व OPS, पिछले वित्त आयोग ने आपदा पर नहीं समझी हिमाचल की जरूरतें

शिमला: छोटा पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश बुरी तरह से कर्ज के जाल में फंस गया है. एक दशक से कैग यानी कंपट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया जिस डेब्ट ट्रैप की तरफ इशारा कर रहा था, वो अब हकीकत बन चुका है. आलम ये है कि नए वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद हिमाचल सरकार के लिए कर्मचारियों का वेतन देना चिंता का विषय हो गया है.

वित्त वर्ष 2026-27 में राज्य सरकार को कर्मचारियों के वेतन पर ही सालाना 20,639 करोड़ रुपए खर्च करने होंगे. इससे भी बढ़कर चिंता की बात ये है कि वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद राज्य सरकार के सिर पर आई एरियर की लायबिलिटी आउट ऑफ कंट्रोल होती चली जाएगी. ये बात अलग है कि सरकारी नौकरियों की संख्या कम हो रही है, लेकिन अनुबंध अवधि को पेंशन के लिए गिने जाने और बकाया एरियर आदि को लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जिस तरह से आदेश आ रहे हैं, उससे हालात काबू से बाहर हो रहे हैं. हिमाचल के दौरे पर आए सोलहवें वित्त आयोग के समक्ष राज्य सरकार ने ये सारे तथ्य रखे हैं.

कर्मचारी हो रहे कम, लेकिन बढ़ रहा वेतन का खर्च

हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2018-19 के बाद से बेशक सरकारी कर्मचारियों की संख्या कम हो रही है, लेकिन वेतन का खर्च बढ़ रहा है. खर्च बढ़ने के कारण नए वेतन आयोग की सिफारिशें भी हैं. सोलहवें वित्त आयोग के समक्ष पेश किए गए वित्तीय मेमोरेंडम में हिमाचल सरकार ने दर्ज किया है कि नए वेतन आयोग के बाद से सरकारी कर्मचारियों के वेतन का खर्च 59 प्रतिशत तक बढ़ गया है. राज्य सरकार में शिक्षा व स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों की संख्या सबसे अधिक है और इन्हीं दो विभागों के कर्मचारियों के वेतन पर सबसे अधिक खर्च हो रहा है.

वित्त आयोग के समक्ष पेश किए गए आंकड़ों पर गौर करें तो शिक्षा व स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों पर वर्ष 2017-18 में वेतन का खर्च 5615 करोड़ रुपए था. ये बढ़कर 2018-19 में 5903 करोड़, फिर वर्ष 2019-20 में 6299 करोड़ और 2020-21 में 6476 करोड़ रुपए हो गया. वर्ष 2025-26 में वेतन का ये खर्च 9361 करोड़ रुपए सालाना हो जाएगा.

Himachal Pradesh Under Debt
हिमाचल पर कर्ज का बोझ (File Photo)

आने वाले सालों में वेतन पर खर्च

राज्य सरकार की तरफ से सोलहवें वित्त आयोग के समक्ष दिए गए मेमोरेंडम के अनुसार वित्त वर्ष 2026-27 में सरकारी कर्मियों के वेतन पर ही सालाना 20639 करोड़ रुपए खर्च होंगे. वित्त वर्ष 2027-28 में ये खर्च 22502 करोड़ सालाना, फिर वर्ष 2028-29 में 24145 करोड़, वर्ष 2029-30 में 26261 करोड़ रुपए हो जाएगा. वर्ष 2030-31 में सरकारी कर्मियों के वेतन का खर्च सालाना 28354 करोड़ रुपए हो जाएगा.

हिमाचल पर 85 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज

हिमाचल सरकार पर अभी 85 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज हो गया है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि राज्य सरकार को कर्ज चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है. अगले वित्तीय वर्ष से पहले ही कर्ज का आंकड़ा एक लाख करोड़ रुपए को पार कर जाएगा. यदि सोलहवें वित्त आयोग से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट अच्छी मिल गई तो राज्य सरकार को कुछ राहत मिल सकती है. यदि राज्य सरकार को माहवार 1500 करोड़ रुपए से अधिक का राजस्व घाटा अनुदान मिल जाए तो वेतन आदि के खर्च में कुछ सहूलियत हो जाएगी.

राज्य सरकार ने वित्त आयोग के समक्ष तर्क दिया है कि वाटर सेस के जरिए आय बढ़ाने का विकल्प तलाश किया गया था, लेकिन ये फैसला अदालतों के फेर में फंस गया है. बीबीएमबी से राज्य सरकार को अपना 4000 करोड़ रुपए के करीब का एरियर नहीं मिला है. इसके अलावा वन संपदा के दोहन की इजाजत मिले तो सालाना चार हजार करोड़ रुपए राजस्व जुटाया जा सकता है.

पूर्व वित्त सचिव केआर भारती का कहना है कि स्थिति गंभीर है और राजस्व के नए संसाधन तलाशने होंगे. पर्यटन के साथ-साथ कृषि सेक्टर को मजबूत करना होगा. ग्रामीण पर्यटन को और विस्तार देने की जरूरत है. लोक लुभावन योजनाओं में भी अच्छा-खासा बजट खर्च होता है. ऐसी घोषणाओं पर नए सिरे से मंथन होना चाहिए. अभी ओपीएस से कितना बोझ और पड़ेगा, इसका असर आने वाले समय में पता चलेगा. फिलहाल तो हिमाचल प्रदेश आर्थिक मोर्चे पर डांवाडोल स्थिति में है.

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Last Updated : Jun 26, 2024, 7:29 AM IST
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