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नए वेतन आयोग और OPS का बोझ, लोन की किस्त से अधिक ब्याज की देनदारी, पांच साल में ब्याज चुकाने को चाहिए 44,617 करोड़ - Himachal Economic Crisis

Himachal Govt Economic Crisis: हिमाचल प्रदेश में बढ़ता कर्ज का बोझ राज्य सरकार के लिए मुसीबत बन गया है. प्रदेश सरकार को कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है. हिमाचल के पास खुद के आर्थिक संसाधन न के बराबर हैं. वहीं, बजट का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च हो रहा है.

Himachal Govt Economic Crisis
हिमाचल प्रदेश आर्थिक संकट (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jul 2, 2024, 7:18 AM IST

शिमला: फाइनेंस कमीशन के हिमाचल दौरे के बाद से राज्य में कर्ज के बढ़ते बोझ को लेकर चर्चा हो रही है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने 16वें वित्तायोग के समक्ष राज्य की कमजोर आर्थिक स्थिति का हवाला दिया है. सीएम ने स्वीकार किया है कि लिए गए कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी सरकार को कर्ज लेना पड़ रहा है. हिमाचल के पास खुद के आर्थिक संसाधन न के बराबर हैं. ऊपर से बजट का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च हो जाता है. इन दो मदों पर बजट का 42 फीसदी हिस्सा खर्च हो रहा है.

इसके अलावा लोन की अदायगी के लिए सौ रुपए में से 9 रुपए खर्च हो रहे हैं. कर्ज के ब्याज की रकम को चुकाने के लिए 11 रुपए खर्च हो रहा है. इस प्रकार लोन की किस्त और ब्याज की अदायगी पर सौ रुपए में से 20 रुपए खर्च हो रहे हैं. यदि वेतन व पेंशन के 42 रुपए इसमें जोड़ दिए जाएं तो चार मदों में कुल खर्च 62 रुपए हो रहा है. यानी सौ रुपए में से 62 रुपए इन्हीं चार मदों पर खर्च है. ऐसे में विकास कार्यों के लिए धन कितना बचता है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. आंकड़ों के अनुसार पांच साल में कर्ज के ब्याज की रकम चुकाने के लिए 44,617 करोड़ रुपए की रकम चाहिए. औसत लगाएं तो साल भर में 8923.20 करोड़ की रकम चाहिए. आलम ये है कि इस साल अप्रैल से दिसंबर 2024 तक नौ महीने की केंद्र से सेंक्शन लोन लिमिट ही महज 6200 करोड़ रुपए है.

लोन की किस्त से ज्यादा ब्याज का खर्च

सोलहवें वित्त आयोग ने सबसे पहले हिमाचल का दौरा किया है. वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद ही केंद्र राज्यों को बजट का आवंटन करता है. वित्त आयोग जिस भी राज्य का दौरा करता है, वहां की सरकार को फाइनेंशियल मेमोरेंडम तैयार कर उसे विभाग की साइट पर अपलोड करना होता है. हिमाचल सरकार के फाइनेंशियल मेमोरेंडम में वे सभी आंकड़े मौजूद हैं, जो राज्य की वित्तीय स्थिति के संदर्भ प्रदान करते हैं. उन्हीं आंकड़ों के अनुसार आने वाले पांच साल में लोन व ब्याज की अदायगी पर भारी-भरकम रकम खर्च करनी होगी. बड़ी बात है कि लोन की किस्त से कहीं अधिक ब्याज की देनदारी है.

डेब्ट ट्रैप में उलझ गया हिमाचल

वित्त वर्ष 2026-27 में जिस समय सोलहवें वित्त आयोग की सिफारिशें लागू होंगी, उस वित्त वर्ष में हिमाचल की सरकार को लोन अदायगी की किस्त के 4826 करोड़ रुपए चुकाने होंगे. यानी लिए गए कर्ज की किस्त को चुकाने के लिए 2026-27 में 4826 करोड़ रुपए चाहिए. फिर इसी वित्त वर्ष में कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए 7535 करोड़ रुपए की रकम चाहिए. इस तरह लोन किस्त व ब्याज की अदायगी के लिए 2026-27 में 12361 करोड़ रुपए की जरूरत पड़ेगी. अगले वित्त वर्ष यानी 2027-28 में लोन किस्त के 4730 करोड़ व ब्याज के 8115 करोड़ रुपए को मिलाकर दोनों मदों में कुल 12845 करोड़ रुपए की देनदारी होगी.

इसी प्रकार 2028-29 में लोन किस्त 5072 करोड़ व ब्याज अदायगी 8865 करोड़ को मिलाकर एक साल की देनदारी 13937 करोड़ रुपए रहेगी. वित्त वर्ष 2029-30 में लोन किस्त के 5347 करोड़ रुपए व ब्याज के 9595 करोड़ रुपए को मिलाकर कुल एक साल की देनदारी 14942 करोड़ रुपए होगी. अंतिम वित्त वर्ष यानी 2030-31 में लोन किस्त 6126 करोड़ रुपए व ब्याज अदायगी 10507 करोड़ को मिलाकर ये रकम 14942 करोड़ होगी. यानी पांच साल में लोन किस्त की अदायगी 26101 करोड़ रुपए व ब्याज के 44617 करोड़ रुपए को मिलाकर कुल पांच साल की देनदारी 70718 करोड़ रुपए होगी. इस तरह हिसाब लगाया जाए तो ये हिमाचल के इस साल के बजट के कुल आकार से साढ़े बारह हजार करोड़ अधिक है.

छठे वेतन आयोग और ओपीएस का इंपैक्ट

हिमाचल प्रदेश में सरकार ने छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू किया है. संशोधित वेतनमान का एरियर देने के लिए ही राज्य को 9000 करोड़ से अधिक की रकम चाहिए. संशोधित वेतनमान व ओपीएस के कारण अब राज्य सरकार के खजाने पर सैलरी व पेंशन का बिल 59 प्रतिशत बढ़ा है. ये फाइनेंस कमीशन को दिए गए मेमोरेंडम में दर्ज है. कर्ज के सहारे चल रही हिमाचल सरकार अब लोन के लिए ओपन मार्केट व्यवस्था पर निर्भर है. वित्त वर्ष 2018-19 में बाजार से लिया गया लोन 44 फीसदी था. अब 2022-23 में ओपन मार्केट लोन 53 प्रतिशत हो गया है.

अब देखना है कि सोलहवें वित्त आयोग से हिमाचल को किस तरह का रिस्पांस मिलता है. लाइफ एक्सपेक्टेंसी बढ़ने से हिमाचल में पेंशनर्स की संख्या भी बढ़ रही है. ओपीएस लागू होने के बाद से पेंशन के मद में खर्च भी बढ़ेगा. ऐसे में ये स्पष्ट है कि आने वाले समय में हिमाचल प्रदेश की वित्तीय स्थिति और भी विकट हो जाएगी. साथ ही मुफ्त की रेवड़ियों यानी फ्रीबीज का कल्चर भी प्रभावी हो रहा है. महिलाओं को 1500 रुपए प्रति माह वाली योजना का इंपैक्ट भी खजाने को झेलना होगा.

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शिमला: फाइनेंस कमीशन के हिमाचल दौरे के बाद से राज्य में कर्ज के बढ़ते बोझ को लेकर चर्चा हो रही है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने 16वें वित्तायोग के समक्ष राज्य की कमजोर आर्थिक स्थिति का हवाला दिया है. सीएम ने स्वीकार किया है कि लिए गए कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी सरकार को कर्ज लेना पड़ रहा है. हिमाचल के पास खुद के आर्थिक संसाधन न के बराबर हैं. ऊपर से बजट का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च हो जाता है. इन दो मदों पर बजट का 42 फीसदी हिस्सा खर्च हो रहा है.

इसके अलावा लोन की अदायगी के लिए सौ रुपए में से 9 रुपए खर्च हो रहे हैं. कर्ज के ब्याज की रकम को चुकाने के लिए 11 रुपए खर्च हो रहा है. इस प्रकार लोन की किस्त और ब्याज की अदायगी पर सौ रुपए में से 20 रुपए खर्च हो रहे हैं. यदि वेतन व पेंशन के 42 रुपए इसमें जोड़ दिए जाएं तो चार मदों में कुल खर्च 62 रुपए हो रहा है. यानी सौ रुपए में से 62 रुपए इन्हीं चार मदों पर खर्च है. ऐसे में विकास कार्यों के लिए धन कितना बचता है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. आंकड़ों के अनुसार पांच साल में कर्ज के ब्याज की रकम चुकाने के लिए 44,617 करोड़ रुपए की रकम चाहिए. औसत लगाएं तो साल भर में 8923.20 करोड़ की रकम चाहिए. आलम ये है कि इस साल अप्रैल से दिसंबर 2024 तक नौ महीने की केंद्र से सेंक्शन लोन लिमिट ही महज 6200 करोड़ रुपए है.

लोन की किस्त से ज्यादा ब्याज का खर्च

सोलहवें वित्त आयोग ने सबसे पहले हिमाचल का दौरा किया है. वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद ही केंद्र राज्यों को बजट का आवंटन करता है. वित्त आयोग जिस भी राज्य का दौरा करता है, वहां की सरकार को फाइनेंशियल मेमोरेंडम तैयार कर उसे विभाग की साइट पर अपलोड करना होता है. हिमाचल सरकार के फाइनेंशियल मेमोरेंडम में वे सभी आंकड़े मौजूद हैं, जो राज्य की वित्तीय स्थिति के संदर्भ प्रदान करते हैं. उन्हीं आंकड़ों के अनुसार आने वाले पांच साल में लोन व ब्याज की अदायगी पर भारी-भरकम रकम खर्च करनी होगी. बड़ी बात है कि लोन की किस्त से कहीं अधिक ब्याज की देनदारी है.

डेब्ट ट्रैप में उलझ गया हिमाचल

वित्त वर्ष 2026-27 में जिस समय सोलहवें वित्त आयोग की सिफारिशें लागू होंगी, उस वित्त वर्ष में हिमाचल की सरकार को लोन अदायगी की किस्त के 4826 करोड़ रुपए चुकाने होंगे. यानी लिए गए कर्ज की किस्त को चुकाने के लिए 2026-27 में 4826 करोड़ रुपए चाहिए. फिर इसी वित्त वर्ष में कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए 7535 करोड़ रुपए की रकम चाहिए. इस तरह लोन किस्त व ब्याज की अदायगी के लिए 2026-27 में 12361 करोड़ रुपए की जरूरत पड़ेगी. अगले वित्त वर्ष यानी 2027-28 में लोन किस्त के 4730 करोड़ व ब्याज के 8115 करोड़ रुपए को मिलाकर दोनों मदों में कुल 12845 करोड़ रुपए की देनदारी होगी.

इसी प्रकार 2028-29 में लोन किस्त 5072 करोड़ व ब्याज अदायगी 8865 करोड़ को मिलाकर एक साल की देनदारी 13937 करोड़ रुपए रहेगी. वित्त वर्ष 2029-30 में लोन किस्त के 5347 करोड़ रुपए व ब्याज के 9595 करोड़ रुपए को मिलाकर कुल एक साल की देनदारी 14942 करोड़ रुपए होगी. अंतिम वित्त वर्ष यानी 2030-31 में लोन किस्त 6126 करोड़ रुपए व ब्याज अदायगी 10507 करोड़ को मिलाकर ये रकम 14942 करोड़ होगी. यानी पांच साल में लोन किस्त की अदायगी 26101 करोड़ रुपए व ब्याज के 44617 करोड़ रुपए को मिलाकर कुल पांच साल की देनदारी 70718 करोड़ रुपए होगी. इस तरह हिसाब लगाया जाए तो ये हिमाचल के इस साल के बजट के कुल आकार से साढ़े बारह हजार करोड़ अधिक है.

छठे वेतन आयोग और ओपीएस का इंपैक्ट

हिमाचल प्रदेश में सरकार ने छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू किया है. संशोधित वेतनमान का एरियर देने के लिए ही राज्य को 9000 करोड़ से अधिक की रकम चाहिए. संशोधित वेतनमान व ओपीएस के कारण अब राज्य सरकार के खजाने पर सैलरी व पेंशन का बिल 59 प्रतिशत बढ़ा है. ये फाइनेंस कमीशन को दिए गए मेमोरेंडम में दर्ज है. कर्ज के सहारे चल रही हिमाचल सरकार अब लोन के लिए ओपन मार्केट व्यवस्था पर निर्भर है. वित्त वर्ष 2018-19 में बाजार से लिया गया लोन 44 फीसदी था. अब 2022-23 में ओपन मार्केट लोन 53 प्रतिशत हो गया है.

अब देखना है कि सोलहवें वित्त आयोग से हिमाचल को किस तरह का रिस्पांस मिलता है. लाइफ एक्सपेक्टेंसी बढ़ने से हिमाचल में पेंशनर्स की संख्या भी बढ़ रही है. ओपीएस लागू होने के बाद से पेंशन के मद में खर्च भी बढ़ेगा. ऐसे में ये स्पष्ट है कि आने वाले समय में हिमाचल प्रदेश की वित्तीय स्थिति और भी विकट हो जाएगी. साथ ही मुफ्त की रेवड़ियों यानी फ्रीबीज का कल्चर भी प्रभावी हो रहा है. महिलाओं को 1500 रुपए प्रति माह वाली योजना का इंपैक्ट भी खजाने को झेलना होगा.

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