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गिरीश तिवारी 'गिर्दा' की 14वीं पुण्यतिथि, राज्य आंदोलन में गीतों से लाए थे क्रांति, फिजाओं में आज भी गूंजती हैं उनकी कविताएं - Girda Death Anniversary

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Aug 22, 2024, 3:24 PM IST

Updated : Aug 22, 2024, 4:33 PM IST

Girda Death Anniversary आज उत्तराखंड के महान कवि, गीतकार और जन आंदोलनों के नायक गिरीश तिवारी गिर्दा की 14वीं पुण्यतिथि है. गिर्दा ने कई आंदोलनों में अपनी कविताओं के जरिए जान फूंकी थी.

Girda Death Anniversary
गिरीश तिवारी 'गिर्दा' की 14वीं पुण्यतिथि (PHOTO- ETV Bharat Graphics)
गिरीश तिवारी 'गिर्दा' की 14वीं पुण्यतिथि (FILE VIDEO ETV Bharat)

नैनीतालः उत्तराखंड राज्य को बने 23 साल से अधिक समय बीत चुका है. अलग राज्य लिए सैकड़ों लोगों ने अपनी शहादत दी. हजारों लोग जेल गए. लेकिन इन सब में एक व्यक्ति ऐसे भी थे जो उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान अपने जनगीतों और कविताओं के माध्यम से पहाड़ी जनमानस को उत्तराखंड राज्य के निर्माण के लिए बड़े प्रभावशाली ढंग से आंदोलित करने का काम किया. वो थे जनकवि गिरीश तिवारी (गिर्दा). आज जनकवि गिरीश चंद्र तिवारी 'गिर्दा' की 14वीं पुण्यतिथि है.

22 अगस्त 2010 को 'गिर्दा' का निधन हुआ. आज भले ही 'गिर्दा' हमारे बीच नहीं हैं. मगर उनकी रचनाएं आज भी हमारे दिलों मे जिंदा हैं. कहा जाता है कि, उत्तराखंड अलग राज्य की मांग के दौरान 'गिर्दा' ने आंदोलन की ऐसी राह पकड़ी कि वह उत्तराखंड में आंदोलनों के पर्याय बन गए. उन्होंने जनगीतों से लोगों को अपने हक-हकूकों के लिए न सिर्फ लड़ने की प्रेरणा दी, बल्कि परिवर्तन की आस जगाई. उत्तराखंड के 1977 में चले 'वन बचाओ आंदोलन', 1984 के 'नशा नहीं रोजगार दो' और 1994 में हुए उत्तराखंड आंदोलन में 'गिर्दा' की रचनाओं ने जान फूंकी थी. इतना ही नहीं, उसके बाद भी हर आंदोलन में 'गिर्दा' ने हर आंदोलन में बढ़चढ़कर शिरकत की. लेकिन 22 अगस्त 2010 को अचानक 'गिर्दा' की आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई.

ये 'गिर्दा' के जनवादी होने का ही प्रमाण था कि समाज की कुरीतियां कभी उनके ऊपर हावी हो पाई. उन्होंने रचनाओं से हमेशा राजनीति के ठेकेदारों पर गहरा वार किया. राज्य आंदोलन के दौरान लोगों को एक साथ बांधने का काम भी 'गिर्दा' ने किया. उस दौरान उनका उत्तराखंड बुलेटिन काफी चर्चाओं में रहा. लेकिन इन सब से अलग खास ये था कि स्व. 'गिर्दा' ने जो बात अपनी रचनाओं के माध्यम से 1994 में कह दी, वो सब राज्य बनने के बाद सत्य होता दिखाई दिया. इसके अलावा 'गिर्दा' साथियों के साथ इतने मिलकर रहते थे कि आज भी उनके सहयोगी रहे उन्हें याद करना नहीं भूलते हैं.

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि उत्तराखंड में 'गिर्दा' की अहमियत महज एक कवि तक नहीं है. वह सही मायने में एक दूरदर्शी आंदोलनकारी थे. उनकी मौत ने सूबे का सच्चा रहनुमा खो दिया है, जिसकी भरपाई मुश्किल नहीं नामुमकिन है.

ये भी पढ़ेंः आज भी देवभूमि की फिजा में गूंजती हैं 'गिर्दा' की पिरोई कविताएं, हम लड़ते रैया भुला हम लड़ते रूंला

ये भी पढ़ेंः ओ जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनि मां.. 11वीं पुण्यतिथि पर गिर्दा को श्रद्धांजलि

गिरीश तिवारी 'गिर्दा' की 14वीं पुण्यतिथि (FILE VIDEO ETV Bharat)

नैनीतालः उत्तराखंड राज्य को बने 23 साल से अधिक समय बीत चुका है. अलग राज्य लिए सैकड़ों लोगों ने अपनी शहादत दी. हजारों लोग जेल गए. लेकिन इन सब में एक व्यक्ति ऐसे भी थे जो उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान अपने जनगीतों और कविताओं के माध्यम से पहाड़ी जनमानस को उत्तराखंड राज्य के निर्माण के लिए बड़े प्रभावशाली ढंग से आंदोलित करने का काम किया. वो थे जनकवि गिरीश तिवारी (गिर्दा). आज जनकवि गिरीश चंद्र तिवारी 'गिर्दा' की 14वीं पुण्यतिथि है.

22 अगस्त 2010 को 'गिर्दा' का निधन हुआ. आज भले ही 'गिर्दा' हमारे बीच नहीं हैं. मगर उनकी रचनाएं आज भी हमारे दिलों मे जिंदा हैं. कहा जाता है कि, उत्तराखंड अलग राज्य की मांग के दौरान 'गिर्दा' ने आंदोलन की ऐसी राह पकड़ी कि वह उत्तराखंड में आंदोलनों के पर्याय बन गए. उन्होंने जनगीतों से लोगों को अपने हक-हकूकों के लिए न सिर्फ लड़ने की प्रेरणा दी, बल्कि परिवर्तन की आस जगाई. उत्तराखंड के 1977 में चले 'वन बचाओ आंदोलन', 1984 के 'नशा नहीं रोजगार दो' और 1994 में हुए उत्तराखंड आंदोलन में 'गिर्दा' की रचनाओं ने जान फूंकी थी. इतना ही नहीं, उसके बाद भी हर आंदोलन में 'गिर्दा' ने हर आंदोलन में बढ़चढ़कर शिरकत की. लेकिन 22 अगस्त 2010 को अचानक 'गिर्दा' की आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई.

ये 'गिर्दा' के जनवादी होने का ही प्रमाण था कि समाज की कुरीतियां कभी उनके ऊपर हावी हो पाई. उन्होंने रचनाओं से हमेशा राजनीति के ठेकेदारों पर गहरा वार किया. राज्य आंदोलन के दौरान लोगों को एक साथ बांधने का काम भी 'गिर्दा' ने किया. उस दौरान उनका उत्तराखंड बुलेटिन काफी चर्चाओं में रहा. लेकिन इन सब से अलग खास ये था कि स्व. 'गिर्दा' ने जो बात अपनी रचनाओं के माध्यम से 1994 में कह दी, वो सब राज्य बनने के बाद सत्य होता दिखाई दिया. इसके अलावा 'गिर्दा' साथियों के साथ इतने मिलकर रहते थे कि आज भी उनके सहयोगी रहे उन्हें याद करना नहीं भूलते हैं.

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि उत्तराखंड में 'गिर्दा' की अहमियत महज एक कवि तक नहीं है. वह सही मायने में एक दूरदर्शी आंदोलनकारी थे. उनकी मौत ने सूबे का सच्चा रहनुमा खो दिया है, जिसकी भरपाई मुश्किल नहीं नामुमकिन है.

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Last Updated : Aug 22, 2024, 4:33 PM IST
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