बेगूसराय: 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों ने पूरे देश में जोर पकड़ लिया है. इसके साथ ही हर चौक-चौराहे पर चुनावी चर्चा शुरू हो चुकी है. चुनाव लोकसभा का हो या फिर विधानसभा का..हर बार बेगूसराय की एक घटना की चर्चा जरूर होती है. वो घटना, जब पहली बार हुई थी बूथ कैप्चरिंग. आज से 66 साल पहले यानी 1957 के विधानसभा चुनाव में हुई वो घटना आज भी लोकतंत्र के काले अध्याय के तौर पर मौजूद है.
कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी का था बोलबाला : उस दौर में बेगूसराय में कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी का दबदबा था. 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बेगूसराय विधानसभा सीट से जीत दर्ज भी की थी, लेकिन 1956 में कांग्रेस विधायक के निधन के बाद 1956 में हुए उपचुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी के चंद्रशेखर सिंह ने सभी को मात देते हुए सीट पर कब्जा कर लिया.
फिर आमने-सामने कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टीः 1957 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी आमने-सामने थीं. कांग्रेस के टिकट पर सरयुग सिंह चुनावी मैदान में थे जबकि कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से 1956 में विधायक बने चंद्रशेखर प्रसाद सिंह. दोनों प्रत्याशियों ने जोर-शोर से चुनाव प्रचार किया और जनता-जनार्दन से जीत का आशीर्वाद मांगा.
रचियाही कचहरी टोल पर बनाया गया था बूथ : बेगूसराय शहर से सिर्फ 6 किलोमीटर दूर है रचियाही, जहां पहले कचहरी टोल हुआ करता था. रामदीरी से सिमरिया तक के लोगों की जमीन की रसीद इस कचहरी टोल पर कटती थी. 1957 के विधानसभा चुनाव के लिए यहीं पोलिंग बूथ बनाया गया था. कचहरी टोल के इस बूथ पर रचियाही के अलावा तीन गांवों के लोग मतदान करने आते थे.
1957 में ऐसे हुई थी पहली बार बूथ कैप्चरिंग : बताया जाता है कि वोटिंग के दिन रचियाही, मचहा, राजापुर और आकाशपुर गांव के लोग वोट करने आ रहे थे कि अचानक हथियारों से लैस 20 लोगों ने राजापुर और मचहा गांव के मतदाताओं को रास्ते में ही रोक लिया. इसके बाद बूथ पर पहले से ही मौजूद कुछ लोगों ने मतदाताओं को खदेड़ना शुरू कर दिया. दूसरे पक्ष ने घटना का विरोध किया तो जमकर मारपीट हुई. इस दौरान एक पक्ष ने बूथ कैप्चर कर लिया और जमकर फर्जी वोटिंग की.
कांग्रेस उम्मीदवार सरयुग पर लगा आरोप : तब मतदान केंद्रो पर सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं होती थी और न ही ऐसी कोई संस्था जिस तक शिकायत पहुंचाई जा सकती थी. लोगों को इस घटना का पता भी अगले दिन ही चल पाया. जिसके बाद पूरे देश में बूथ कैप्चरिंग की चर्चा शुरू हो गयी. स्थानीय लोगों के मुताबिक जिन लोगों ने बूथ कैप्चर किया था वो कांग्रेस प्रत्याशी सरयुग प्रसाद सिंह के समर्थक थे. इस चुनाव में सरयुग प्रसाद सिंह की जीत भी हुई थी.
माफिया डॉन काका कामदेव ने की थी बूथ कैप्चरिंग : गांव रचियाही के बुजुर्ग 1957 बूथ लूट की घटना को याद कर बताते हैं कि किस तरह देश में पहली बार बूथ लूटा गया और फर्जी वोट डाले गए. गांव के बुजुर्ग रामजी ने बताया कि ''कांग्रेस उम्मीदवार सरयुग प्रसाद और इलाके के माफिया कामदेव सिंह के बीच गठजोड़ था. सरयुग के कहने पर कामदेव सिंह ने मतपेटियां लूटी गई और बूथ पर कब्जा किया.''
लोकतंत्र की नयी चुनौती-बूथ कैप्चरिंगः बेगूसराय की रचियाही कचहरी टोल पर हुई ये वारदात लोकतंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर आई है. लोगों ने पहली बार बूथ कैप्चरिंग का नाम सुना. इसके बाद तो इस बूथ कैप्चरिंग के फॉर्मूले को बिहार और देश के कई नेताओं ने अपनी जीत का आधार बना लिया. कुछ ही सालों में बिहार में चुनाव का मतलब बैलेट की जगह बुलेट हो गया.
क्या कहते हैं बेगूसराय के लोग ? : इस घटना को बेगूसराय के लोग बड़ी संजीदगी से देखते हैं.कई लोगों का मानना है कि लोकतांत्रिक मूल्यों की धरती के रूप में पहचान बनानेवाले बेगूसराय के लिए ये घटना एक दाग की तरह है. जब भी चुनाव आता है इसकी चर्चा जरूर होती है. हालांकि उस घटना के बाद कई चुनाव हुए रचियाही में बूथ कैप्चरिंग की कोई वारदात नहीं हुई.
'रचियाही ने दिया लोकतंत्र की रक्षा का संदेश' : वहीं गांव के युवा बताते हैं कि यहां बूथ कैप्चरिंग नहीं हुई थी, बल्कि बूथ कैप्चरिंग की कोशिश को नाकाम कर रचियाही के लोगों ने लोकतंत्र की रक्षा का संदेश दिया. युवा ध्रुव कुमार को इस बात का दुख है कि "इस घटना को लेकर पूरे देश में एक गलत धारणा बना दी गई है और जब भी चुनाव आता है मीडिया के लोग उसे कुरेदने आ जाते हैं."
बूथ कैप्चरिंग से EVM तक, कितना बदला बिहार? : कई दशकों तक बिहार सहित पूरे देश में बूथ कैप्चरिंग का दौर चलता रहा और हर चुनाव में कई लोग अपनी जान गंवाते रहे. बाद में सरकार और चुनाव आयोग की कोशिशों के बाद बैलेट की जगह ईवीएम से वोटिंग शुरू हुई, जिसमें बूथ कैप्चरिंग की कोई गुंजाइश नहीं बची. इसके साथ ही मतदान केंद्रों पर सुरक्षा के इतने कड़े प्रबंध किए गये जिससे कि किसी किस्म का हंगामा न हो सके.
ईवीएम पर भी उठने लगे हैं सवाल : हालांकि पिछले कई चुनावों से अब ईवीएम के इस्तेमाल पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं. कई राजनीतिक दलों का आरोप है कि ईवीएम में भी तकनीकी रूप से हेरफेर कर वोटों की हड़बड़ी की जा सकती है. कई दल तो फिर से बैलेट से ही चुनाव कराने की भी मांग कर रहे हैं. सच्चाई जो भी हो लेकिन फिलहाल बूथ कैप्चरिंग इतिहास के पन्नों में सिमट गयी है, हां जब भी बूथ कैप्चरिंग की बात आएगी बेगूसराय के रचियाही का नाम जरूर लिया जाएगा.