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बैजयंती, फाल्गुनी और कोमल लगाकार किसान बन सकते हैं मालामाल - Cultivation of Barbatti

मॉनसून के मौसम में बरबट्टी की खेती छत्तीसगढ़ में जोश शोर से होती है. छत्तीसगढ़ की जमीन बरबट्टी की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है. बरबट्टी की फसल लगाने वाले किसान एक सीजन में मालामाल हो सकते हैं. किसानों को बस कुछ बातों का ध्यान रखना है.

Cultivation of Barbatti
बरबट्टी की खेती आपको बनाएगी मालामाल (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jun 29, 2024, 4:17 PM IST

रायपुर: बरबट्टी की खेती के लिए बारिश के मौसम को उपयुक्त माना गया है. बारिश के मौसम में प्रदेश की किसान बरबट्टी की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं. किसान अगर कुछ बातों का ध्यान रखें तो ये फसल उनका मालामाल बना देगा. फसल लगाने से पहले किसानों को पता होना चाहिए कि उनको कौन सी बीज का चुनाव करना है. अच्छी फसल पाने के लिए खेती की कौन सी ट्रिक अपनानी है. बीज लगाते समय थरहा लगाने का भी किसानों को ध्यान रखना चाहिए. किसान अगर इन सभी बातों का ध्यान रखेंगे तो उनकी 40 से साठ दिनों के भीतर आने वाली फसल सोने के दामों में बिकेगी. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि बरबट्टी लगाने के लिए जून के आखिरी सप्ताह या जुलाई में किसानों को इसकी खेती शुरू कर देनी चाहिए.

बरबट्टी की खेती आपको बनाएगी मालामाल (ETV Bharat)

ऐसे करेंगे बरबट्टी की खेती तो बन जाएंगे मालामाल: इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर घनश्याम दास साहू ने बताया कि "बारिश के दिनों में स्थानीय स्तर पर सब्जियों की आवक कम होने के कारण सब्जियों के दाम बढ़ जाते हैं. ऐसे में छत्तीसगढ़ के किसान बरबट्टी की खेती करके अधिक उत्पादन लेने के साथ ही अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं. बरबट्टी के दो प्रकार होते हैं जिसमें एक पोल टाइप का होता है और दूसरा बुस टाइप का होता है. उन्होंने बताया कि बुस टाइप बरबट्टी छोटी होने के साथ ही पेड़ वाली होती है. इस बरबट्टी को सहारा देने की आवश्यकता नहीं पड़ती. पोल वाली जो बरबट्टी होती है उसे सहारा देने की आवश्यकता पड़ती है. यह नारवर्गीय होता है. दोनों तरह की बरबट्टी 40 से 60 दिनों के अंदर उत्पादन देना शुरू कर देती है."



''बारिश की शुरुआत होते ही प्रदेश के किसानों को बरबट्टी के बीज पेड़ वाली लगानी है तो उसके लिए किसानों को पौध से पौध की दूरी 2 मीटर और कतार से कतार की दूरी 2 मीटर होनी चाहिए. लता या नारवर्गीय बरबट्टी चाहिए तो ढाई ढाई फीट कतार से कतार की दूरी और ढाई ढाई फीट पौधों से पौधों की दूरी होनी चाहिए. बरबट्टी की किस्म में वैजयंती पूसा, फाल्गुनी पूसा, दो फसलीय, पूसा कोमल, रेड गोल्ड, अरका गरिमा जैसी किस्म प्रमुख है. इन सभी किस्मों को लगाकर प्रदेश के किसान बरबट्टी का उत्पादन ले सकते हैं.'' - घनश्याम दास साहू, वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर

आम के आम गुठलियों के दाम: बरबट्टी लगाते समय प्रदेश की किसानों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि यह दालवर्गीय फसल होने के कारण पानी सहन करने की क्षमता बहुत कम होती है. इसके साथ ही किसानों को यह भी ध्यान रखना होगा कि बरबट्टी के बीज लगाने के पहले इन बीजों का उपचार करना भी जरूरी है. बरबट्टी का उत्पादन बहुत अधिक इसलिए भी होता है कि बारिश का मौसम बरबट्टी के लिए उपयुक्त माना गया है. इस मौसम में बरबट्टी लगाने से इसकी पैदावार अच्छी होती है. बरबट्टी का दो या तीन बार उत्पादन लेने के बाद इसे हरे चारे के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है जो पशुओं को खिलाने के काम में आता है.

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रायपुर: बरबट्टी की खेती के लिए बारिश के मौसम को उपयुक्त माना गया है. बारिश के मौसम में प्रदेश की किसान बरबट्टी की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं. किसान अगर कुछ बातों का ध्यान रखें तो ये फसल उनका मालामाल बना देगा. फसल लगाने से पहले किसानों को पता होना चाहिए कि उनको कौन सी बीज का चुनाव करना है. अच्छी फसल पाने के लिए खेती की कौन सी ट्रिक अपनानी है. बीज लगाते समय थरहा लगाने का भी किसानों को ध्यान रखना चाहिए. किसान अगर इन सभी बातों का ध्यान रखेंगे तो उनकी 40 से साठ दिनों के भीतर आने वाली फसल सोने के दामों में बिकेगी. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि बरबट्टी लगाने के लिए जून के आखिरी सप्ताह या जुलाई में किसानों को इसकी खेती शुरू कर देनी चाहिए.

बरबट्टी की खेती आपको बनाएगी मालामाल (ETV Bharat)

ऐसे करेंगे बरबट्टी की खेती तो बन जाएंगे मालामाल: इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर घनश्याम दास साहू ने बताया कि "बारिश के दिनों में स्थानीय स्तर पर सब्जियों की आवक कम होने के कारण सब्जियों के दाम बढ़ जाते हैं. ऐसे में छत्तीसगढ़ के किसान बरबट्टी की खेती करके अधिक उत्पादन लेने के साथ ही अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं. बरबट्टी के दो प्रकार होते हैं जिसमें एक पोल टाइप का होता है और दूसरा बुस टाइप का होता है. उन्होंने बताया कि बुस टाइप बरबट्टी छोटी होने के साथ ही पेड़ वाली होती है. इस बरबट्टी को सहारा देने की आवश्यकता नहीं पड़ती. पोल वाली जो बरबट्टी होती है उसे सहारा देने की आवश्यकता पड़ती है. यह नारवर्गीय होता है. दोनों तरह की बरबट्टी 40 से 60 दिनों के अंदर उत्पादन देना शुरू कर देती है."



''बारिश की शुरुआत होते ही प्रदेश के किसानों को बरबट्टी के बीज पेड़ वाली लगानी है तो उसके लिए किसानों को पौध से पौध की दूरी 2 मीटर और कतार से कतार की दूरी 2 मीटर होनी चाहिए. लता या नारवर्गीय बरबट्टी चाहिए तो ढाई ढाई फीट कतार से कतार की दूरी और ढाई ढाई फीट पौधों से पौधों की दूरी होनी चाहिए. बरबट्टी की किस्म में वैजयंती पूसा, फाल्गुनी पूसा, दो फसलीय, पूसा कोमल, रेड गोल्ड, अरका गरिमा जैसी किस्म प्रमुख है. इन सभी किस्मों को लगाकर प्रदेश के किसान बरबट्टी का उत्पादन ले सकते हैं.'' - घनश्याम दास साहू, वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर

आम के आम गुठलियों के दाम: बरबट्टी लगाते समय प्रदेश की किसानों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि यह दालवर्गीय फसल होने के कारण पानी सहन करने की क्षमता बहुत कम होती है. इसके साथ ही किसानों को यह भी ध्यान रखना होगा कि बरबट्टी के बीज लगाने के पहले इन बीजों का उपचार करना भी जरूरी है. बरबट्टी का उत्पादन बहुत अधिक इसलिए भी होता है कि बारिश का मौसम बरबट्टी के लिए उपयुक्त माना गया है. इस मौसम में बरबट्टी लगाने से इसकी पैदावार अच्छी होती है. बरबट्टी का दो या तीन बार उत्पादन लेने के बाद इसे हरे चारे के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है जो पशुओं को खिलाने के काम में आता है.

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