कोटा: शहर के रिद्धि सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में पंचकल्याणक महोत्सव आयोजित किया जा रहा है. यहां पर जैन धर्म के तीसरे तीर्थंकर भगवान संभावनाथ और 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की स्फटिक की मूर्तियां स्थापित की जा रही हैं. सबसे खास बात यह है कि यह दोनों ही मूर्तियां अपने आप में रिकॉर्ड बना रही हैं. इन दोनों भगवानों की यह इतनी बड़ी स्फटिक की पहली मूर्तियां हैं.
मूर्तियों की जानकारी देते हुए जैन संत आदित्य सागर महाराज ने बताया कि दोनों ही मूर्तियों को मल्टीनेशनल बुक ऑफ रिकॉर्ड्स के जरिए खिताब दिया गया है. उनका कहना है कि इस पत्थर की दोनों मूर्तियां भगवान संभावनाथ और भगवान पार्श्वनाथ का जिनबिंब है. यह मूर्तियां शांति स्थापित करेंगी. इतना बड़ा स्फटिक होना मुश्किल है. ऐसे में आगामी काल में लोगों को आश्चर्य रहेगा कि इतने बड़े पत्थर के लिए उपलब्धि कैसे हुई. लोग इनकी आराधना करके पुण्य भी ले सकेंगे. इस पंचकल्याण महोत्सव में 14 नवंबर को दोनों मूर्तियां वेदी पर प्रतिस्थापित कर दी जाएगी. उसके बाद 15 नवंबर को इनका मस्तकाभिषेक होगा. इस दौरान मल्टीनेशनल बुक ऑफ रिकार्ड्स के सीईओ कृष्ण कुमार उपाध्याय ने दोनों प्रतिमाओं के रिकॉर्ड की घोषणा भी की.
जैन संत आदित्य सागर का यह भी कहना है कि इंदौर, शिवनी, सागर, दुर्ग छत्तीसगढ़, नांदणी महाराष्ट्र व भीलवाड़ा राजस्थान में भी इस तरह की स्फटिक की प्रतिमा जैन तीर्थंकरों की है. लेकिन भगवान संभावनाथ और पार्श्वनाथ की जितनी बढ़ी नहीं है. मेरा मानना है कि करीब 108 अलग-अलग ऊंचाइयों की जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां सभी जगह स्थापित होनी चाहिए, ताकि जैन दर्शन ऊंचाइयों को छू सके.
चीन नहीं जमा करें इसलिए स्फटिक पर जोर: जैन संत आदित्य सागर महाराज का कहना है कि वर्तमान में चीन स्फटिक पत्थर के मामले में मोनोपोली करना चाह रहा है. भारत में निकलने वाले सभी स्फटिक पत्थर को वह ज्यादा दाम लगाकर खरीदना चाह रहा है. मेरे ध्यान में आया कि भारत में लोग इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. इसलिए स्फटिक पत्थर को विदेश भेजने की जगह भारत में ही रखने के लिए परमात्मा की प्रतिमाएं बनाने का तय करवाया है. ताकि इतिहास, पुरातत्व और संस्कृति की दृष्टि से स्फटिक पत्थर को सुरक्षित और भारत में रखा जा सके.
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8 माह में बनी, 15 माह पॉलिश में लगे: इन मूर्तियों को बनने में 8 महीने लगे, लेकिन इसकी पॉलिश होने में 15 महीने लग गए. जयपुर के कारीगरों ने इन्हें तैयार किया है. जैन संत आदित्य सागर का कहना है कि जिन्होंने यह दोनों प्रतिमाएं भेंट की है, उन्होंने लागत हमें नहीं बताई है. हालांकि मूर्तियों का वजन 150 से 200 किलो के आसपास है. वहीं स्फटिक पत्थर 20 से 50 हजार रुपए किलो आता है. यह पूरी तरह से पारदर्शी है. दोनों मूर्तियों की ऊंचाई करीब 35-35 इंच है.
वास्तुकार मानते हैं पॉजिटिव एनर्जी का स्रोत: वास्तुकार स्फटिक को पॉजिटिव एनर्जी का स्रोत मानते हैं. मंदिर की नींव, किसी घर का शिलान्यास होता है या फिर किसी ऑफिस में पॉजिटिविटी रखनी हो, तो स्फटिक के पत्थर को रखने के सलाह दी जाती है. इसकी पैंसिल और कछुए का प्रतिबिंब भी आते हैं.
इसकी स्थापना पॉजिटिव माहौल रखने के लिए किया जाता है. जब यह प्रतिमा बनती है, तो उसकी पॉजिटिविटी कुछ और ही रहती है. स्फटिक की इस मूर्ति में सर्दी और गर्मी से कोई असर नहीं पड़ेगा. वैज्ञानिक मान्यता है कि एक पानी की बूंद जब एक करोड़ वर्ष तक पत्थर के अंदर निश्चित तापमान में रहती है, तब स्फटिक पत्थर बनता है. इसीलिए इसमें अंतर आता है, कहीं थोड़ा साफ होता है, तो कहीं थोड़ा सा हल्का कलर होता है. यह पूरी तरह से पारदर्शी होता है.
क्या होता है स्फटिक पत्थर: स्फटिक पत्थर या क्वार्टज को अंग्रेजी में रॉक क्रिस्टल भी कहा जाता है. यह एक तरह से पारदर्शी, रंगहीन और निर्मल पत्थर होता है. खास तौर पर यह पत्थर पहाड़ों के नीचे बर्फ में दबा हुआ ही मिलता है. क्वार्टज एक तरह से प्राकृतिक खनिज एक अक्षीय, रंगहीन, पारदर्शी और कठोर होता है. स्फटिक का निर्माण सिलिकॉन और ऑक्सीजन के मिलने से होता है. स्फटिक को हीरे का उपरत्न माना जाता है. संस्कृत में इसे सितोपल और शिवप्रिय भी कहते हैं. इस पत्थर की कीमत 20 से 50 हजार रुपए किलो आती जाती है.