मेरठ : सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के एक छात्र ने तितली ट्राई कार्ड का ईजाद किया है. गहन शोध के बाद तैयार इस कार्ड से जैविक खेती को बढ़ावा मिल रहा है. इससे जहरीले कीटनाशक फसलों को बर्बाद भी नहीं कर पाएंगे. इससे खेतों में कीटों का प्रकोप कम होने के साथ इंसानी जीवन पर भी इसका दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा. छात्र ने 2 साल की मेहनत के बाद इस कार्ड को तैयार किया है.
फसलों को कीटों के प्रकोप से बचाने के लिए किसान कई तरह की केमिकल्स और हानिकारक पेस्टिसाइड का उपयोग करते हैं. इससे फसलों को नुकसान पहुंचने के साथ मानव जीवन पर भी गलत प्रभाव पड़ता है. इस समस्या को देखते हुए सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के एक छात्र अरुण सिंह ने खास तरह का तितली ट्राई कार्ड तैयार किया है. इससे कीटों का प्रकोप कम जाता है. छात्र ने 2 साल तक फसल को इस तकनीक से बिना कीटनाशक डाले उन्हें कीटों से सुरक्षित करने में सफलता प्राप्त की.
किसानों की आय होगी दोगुनी : विश्वविद्यालय का भी दावा है कि इस कार्ड के इस्तेमाल से फसलों में न तो कीट घुसेंगे, और न ही कोई रोग लगेगा. अन्नदाता को मुनाफा भी होगा. उनकी आय भी बढ़ेगी. अपनी इस तकनीक से होर्टिकल्चर विभाग के स्टूडेंट् अरुण ने अन्य लोगों को काम भी दे दिया है. ईटीवी भारत से बातचीत में छात्र ने बताया कि उन्होंने जो कार्ड तैयार किया है वह धान, गन्ना सब्जी के अलग-अलग फसलों को सुरक्षित करने के लिए है.
ऐसे काम करता है तितली ट्राई कार्ड : गन्ने और धान की फसल को कीड़े नुकसान पहुंचाते हैं. बैंगन, करेला आदि सब्जियों में फल छेदक कीड़े लगते हैं. इन्हें इस कार्ड से पूरी तरह से नियंत्रित किया जा सकता है. छात्र ने बताया कि प्रयोग के बाद जो कीट बनाते हैं, उनके अंडों को एक कार्ड पर चिपका देते हैं. एक कार्ड में लगभग 20 हजार अंडे होते हैं. उस कार्ड को फसल में अलग-अलग जगह पत्तों पर लगा देते हैं. एक हैक्टेयर में कुल 4 कार्ड फसल को बर्बाद होने से रोकने में कारगर रहता है.
उसके बाद कार्ड के अंडे एक निश्चित तापमान के बाद बच्चों में तब्दील हो जाते हैं. इसके बाद फसल या फिर सब्जियों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े को अपना भोजन बना लेते हैं. हार्मफुल इनसेक्ट को ये खा जाते हैं, इससे फसल भी सुरक्षित हो जाती है और कीटनाशक का छिड़काव भी नहीं करना पड़ता है. छात्र ने बताया कि इस स्टार्ट अप से अब तो देशभर में लगभग 70 हजार लोगों को भी जोड़ लिया है. उन्हें किसान मित्र नाम दिया है.
देश के दूसरे विश्वविद्यालयों से आ रही डिमांड : देश के सभी कृषि विश्वविद्यालयों के द्वारा भी डिमांड आ रही है. लोग लगातार जुड़ने के लिए भी संपर्क कर रहे हैं. एक हेक्टेयर भूमि पर खड़ी फसल को बचाने में महज तीन सौ रुपये का ही खर्च इस तकनीक से आता है. विश्वविद्यालय के ट्रेनिंग एवं प्लेसमेंट सेल के प्रभारी आरएस सेंगर ने बताया कि अरुण के साथ और भी स्टूडेंट जुड़ गए हैं. कार्ड बनाकर किसानों की गंभीर समस्या को वे दूर कर रहे हैं. देश के सभी कृषि विश्वविद्यालयों से इनके बनाए खास कार्ड की डिमांड आ रही है. अपने हुनर से पढ़ाई के साथ- साथ ये स्टूडेंट कमाई भी कर रहे हैं. अरुण ने बताया कि हर माह लगभग एक से डेढ़ लाख रूपये की कमाई भी इनकी हो रही है.
अरुण ने बताया कि वह खुद किसान परिवार से हैं. जब से उन्होंने विवि में दाखिला लिया, तब से वह यही सोचते चले आ रहे हैं कि कैसे बिना दवा छिड़काव के ही, फसलों को कीटों से बचाया जाए. कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति ने बताया कि पूरे प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों में अरुण सिंह ऐसे छात्र बन गए हैं जो पढ़ाई के दौरान ही स्टार्टअप भी चला रहे हैं.
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