जोधपुर. राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग की जोधपुर पीठ ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में बीमा कंपनी द्वारा भुगतान के लिए अपने सर्वे का आधार मानने को सही नहीं ठहराया है. निर्णय में आयोग ने कहा है कि सर्वे रिपोर्ट अंतिम नहीं है. जोधपुर के एक मामले में आयोग ने बीमा कंपनी द्वारा अंतिम भुगतान सर्वे के आधार पर करने को सही नहीं मानते हुए इसके विरुद्ध दायर परिवार को स्वीकार करते हुए आयोग के अध्यक्ष देवेंद्र कच्छवाह और न्यायिक सदस्य निर्मल सिंह मेडतवाल ने ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी पर 2 लाख रुपए का हर्जाना लगाया और सर्वे रिपोर्ट के इतर पीड़ित की बकाया राशि मय ब्याज सहित देने के आदेश जारी किए हैं.
दरअसल जयेश धूत ने परिवाद दायर कर कहा कि उनकी बीमित फर्म धूत ऑटो में 9 दिसंबर, 2009 को भीषण आग लग गई. जिससे लाखों रुपए का स्टॉक जल कर राख हो गया. लेकिन बीमा कंपनी ने 74 लाख 18 हजार 575 रुपए के नुकसान के एवज में फरवरी 2012 में महज 48 लाख 19 हजार 69 रुपए का ही भुगतान किया. परिवादी की ओर से बहस करते हुए अधिवक्ता अनिल भंडारी ने कहा कि 2 साल तक बीमा कंपनी उनके दावे पर कुंडली मार कर बैठ गई और विषम आर्थिक परिस्थिति से मजबूर होकर परिवादी ने आधे-अधूरे भुगतान पर जो सहमति दी थी, वह स्वैच्छिक सहमति नहीं मानी जा सकती और परिवादी अपनी बकाया राशि प्राप्त करने का हकदार हैं.
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उन्होंने कहा कि नुकसान के समय बीमित फर्म में 81 लाख 14 हजार 622 रुपए का स्टॉक होने के बावजूद सर्वेयर ने बिना कोई ठोस आधार के 52 लाख 53 हजार 198 रुपए का जो स्टॉक माना है, वह बेतुका है. इसलिए परिवादी बकाया दावा राशि प्राप्त करने का हकदार है. बीमा कंपनी की ओर से कहा गया कि पूर्ण एवं अंतिम भुगतान के बाद दावेदार बकाया राशि प्राप्त करने का अपना हक त्याग कर चुका है तथा सर्वेयर एक स्वतंत्र व्यक्ति है, जिसकी सर्वे रपट में किए गए नुकसान आंकलन को चुनौती नहीं दी जा सकती है. इसलिए परिवाद खारिज किया जाए.
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राज्य उपभोक्ता आयोग ने बीमा कंपनी पर 2 लाख रुपए हर्जाना लगाते हुए परिवाद मंजूर कर कहा कि परिवादी ने नुकसान के समय अपने स्टॉक को ऑडिट रिपोर्ट, खरीद तथा बिक्री बिल से पुख्ता साबित किया है. लेकिन सर्वेयर ने दो साल के औसत आधार पर जो स्टॉक राशि मानी है, उसका कोई भी औचित्य नहीं है. उन्होंने कहा कि सर्वे रपट प्राप्त हो जाने के बाद भी बीमा कंपनी ने दावे का एक साल तक निपटान नहीं किया. इसलिए बीमाधारक ने दो साल बाद आधे अधूरे भुगतान पर जो सहमति दी है, वह मजबूरी और दबाव में होने से बकाया दावा राशि प्राप्त करने से उसे वंचित नहीं किया जा सकता है.
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सर्वे रिपोर्ट अंतिम नहीं है: आयोग ने अपने निर्णय में लिखा है कि सर्वे रिपोर्ट अंतिम शब्द नहीं है और गलत दावा आंकलन को सही नहीं ठहराया जा सकता है. उन्होंने 74 लाख 18 हजार 575 रुपए नुकसान मानते हुए सर्वेयर के 48 लाख 19 हजार 69 रुपए के आकलन को रद्द करते हुए बीमा कंपनी को निर्देश दिए कि दो माह में परिवादी को बकाया दावा राशि 25 लाख 99 हजार 506 रुपए मय 1 नवंबर, 2012 से 9 फीसदी ब्याज अदा करें और इस अवधि में भुगतान नहीं किए जाने पर ब्याज दर 12 फीसदी से भुगतान करें और साथ ही पूर्व में अदा की गई दावा राशि 48 लाख 19 हजार 69 रुपए पर 13 माह का 9 फीसदी ब्याज भी अदा करें.