बांसवाड़ा : पुलिसकर्मी की मौत के बाद उसके ही साथियों ने क्लेम की राशि हासिल करने के लिए बड़ी साजिश रच डाली. इसका खुलासा मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण में सुनवाई के दौरान हुआ. ऐसे में न्यायाधीश अभय जैन ने 2 करोड़ 59 लाख 46000 के दावे को खारिज कर दिया. साथ ही इसके लिए पुलिस को दोषी माना है, जिन्होंने दुर्घटना न होते हुए भी क्लेम के लिए इस घटना को दुर्घटना का रूप दे दिया.
कोर्ट से मिली जानकारी के मुताबिक गढ़ी थाना क्षेत्र के पानसी छोटी के कोना ग्राम निवासी सुनीता देवी पत्नी प्रभुलाल (40), पुत्री अनीता (18), पुत्री दीपिका (16), पुत्री प्रियंका (15), पुत्र दिलपेश (13) और पुत्र कल्पेश (11) की ओर से 2 करोड़ 59 लाख 46 हजार रुपए का दावा किया गया था. कोर्ट में बांसवाड़ा शहर के नीलम नगर निवासी हेमंत कुमार पुत्र लक्ष्मण, सुनीता पत्नी लक्ष्मण और लिबर्टी जनरल इंश्योरेंस पर क्लेम किया गया था.
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कोर्ट को बताया गया था कि 26 जून, 2020 की शाम को मृतक प्रभुलाल अपने साले दिलीप कुमार के साथ बाइक पर बांसवाड़ा पुलिस लाइन आ रहे थे. रास्ते में पुल के पास एक बाइक ने टक्कर मार दी. इस दुर्घटना में पुलिसकर्मी प्रभुलाल की उपचार के दौरान मौत हो गई थी. कोर्ट ने 3 साल तक चली सुनवाई के बाद इस मामले को फर्जी माना है. न्यायाधीश अभय जैन ने कहा कि यह दुर्घटना नहीं, बल्कि सामान्य घटना है. साथ ही दुर्घटना का कोई भी मजबूत साक्ष्य फाइल में मौजूद नहीं है.
वहीं, पुलिस से सवाल किया गया कि जब पुलिसकर्मी की मौत 26 जून की रात में हो गई थी तो इस मामले की रिपोर्ट 11 अक्टूबर को क्यों दर्ज की गई. पुलिस को लेकर कोर्ट ने टिप्पणी की, कि किसी भी सामान्य व्यक्ति की दुर्घटना में मौत होती है तो 24 घंटे में पुलिस रिपोर्ट दर्ज कर लेती है तो फिर अपने ही पुलिसकर्मी की मौत पर ऐसा क्यों नहीं किया गया.
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कोर्ट में सुनवाई के दौरान पता चला कि मृतक प्रभुलाल की बाइक चलाने वाला दिलीप कुमार मृतक का साला था. दिलीप कुमार भी एक पुलिसकर्मी है. जांच के दौरान दिलीप कुमार पुत्र कमला शंकर निवासी नगारसी का बयान भी नहीं कराया गया था. कोर्ट ने टिप्पणी की, कि चश्मदीद का बयान कराना पुलिस की नैतिक जिम्मेदारी है, जो कि पुलिस ने इस केस में नहीं किया है, जो एक गंभीर त्रुटि है.
मौके पर नहीं दिखा कोई वाहन : इस मामले की रिपोर्ट सदर थाने में दर्ज की गई थी और वहां के हेड कांस्टेबल युवराज सिंह ने इस मामले की जांच की. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान माना कि जो मौका पर्चा बनाया गया, उसमें मौके पर कोई वाहन ही नहीं बताया गया है. घटनास्थल को लेकर भी असमंजस की स्थिति दिखी. इसके अलावा भी सुनवाई के दौरान कई ऐसी बातें सामने आई, जो पुलिस की जांच पर सवाल खड़ा करती है.
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उपचार हुआ, लेकिन पोस्टमार्टम नहीं : कोर्ट में सुनवाई के दौरान बीमा कंपनी ने सवाल खड़े किए कि मृतक की मौत बाइक दुर्घटना से हुई है और उसका उपचार भी किया गया तो महात्मा गांधी अस्पताल का कोई रिकॉर्ड फाइल में क्यों नहीं है. यहां तक कि कोर्ट में मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी सबमिट नहीं की गई. ऐसे में कोर्ट ने माना कि पोस्टमार्टम हुआ ही नहीं है. यदि पोस्टमार्टम हुआ होता और अस्पताल में मृतक भर्ती कराया गया होता तो रिकॉर्ड जरूर रहता. ऐसे में कोर्ट ने जांच अधिकारी की त्रुटियों को गंभीर मानते हुए साक्ष्यों के अभाव में ढाई करोड़ से अधिक के क्लेम को खारिज कर दिया.