रांची: झारखंड विधानसभा का रण शुरू होने से पहले सभी पार्टियां अपनी तैयारी में लग गई हैं. कांग्रेस अपनी अलग रणनीति पर काम कर रही है. कांग्रेस की ओर से 18 विधानसभा सीटों को जीतने की पहली प्राथमिकता दी गई है. कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, अगस्त महीने के अंतिम सप्ताह में रांची आये कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी गुलाम अहमद मीर ने विधायक दल की बैठक में साफ शब्दों में कहा है कि हर हाल में पार्टी की पहली प्राथमिकता 18 विधानसभा सीट को जीतना है.
दरअसल, यह 18 विधानसभा सीट वे हैं, जहां से वर्तमान में कांग्रेस के विधायक हैं या दूसरे दल के सिटिंग विधायक पार्टी में शामिल हुए हैं. ऐसे में कांग्रेस पाकुड़, जामताड़ा, पोड़ैयाहाट, महागामा, जरमुंडी, बरही, बेरमो, झरिया, बड़कागांव, मांडू, मांडर, खिजरी, जमशेदपुर पश्चिमी, जगरनाथपुर, कोलेबिरा, सिमडेगा, मनिका और लोहरदगा विधानसभा सीट इस बार भी जीतना चाहती है.
कई जानकारों का मानना है कि कांग्रेस को 18 की बजाए 19 विधानसभा सीट पर फोकस करना चाहिए था, क्योंकि 2019 के विधानसभा चुनाव में रामगढ़ से कांग्रेस प्रत्याशी ममता देवी ने आजसू की सुनीता देवी को हराया था और विधायक बनी थीं. लेकिन एक मामले में कोर्ट से सजा मिलने के बाद उनकी विधायकी चली गई, जिसके बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी बजरंगी महतो आजसू प्रत्याशी सुनीता चौधरी से हार गए. इसलिए इस सीट पर भी कांग्रेस को फोकस करना चाहिए था.
हालांकि, फिलहाल कांग्रेस की पहली प्राथमिकता वर्तमान में कांग्रेस के 16 विधायकों वाली सीट है और मांडू से भाजपा विधायक जयप्रकाश भाई पटेल और पोड़ैयाहाट से झाविमो विधायक प्रदीप यादव के कांग्रेस में शामिल होने के कारण कांग्रेस इन दोनों सीटों को लेकर 18 सीट हर हाल में जीतना चाहती है. इन 18 के बाद उन विधानसभा सीटों पर फोकस करना होगा, जहां 2019 के विपरीत नतीजे आने की प्रबल संभावना है.
फंस सकती है कांग्रेस विधायक दल के नेता की सीट
वैसे तो कांग्रेस 'विनिंग ऑल सिटिंग सीट' की बात कर रही है, लेकिन अगर 2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजों का विश्लेषण करें तो कई सीट फंसती नजर आ रही है. इसमें पहला नाम राज्य के वित्त मंत्री और कांग्रेस विधायक दल के नेता रामेश्वर उरांव का है, जिनकी विधानसभा सीट लोहरदगा मुश्किल में फंसती नजर आ रही है.
2019 में आजसू से गठबंधन न हो पाने का नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा था, तब आजसू प्रत्याशी के तौर पर नीरू शांति भगत 39916 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रही थीं और भाजपा प्रत्याशी सुखदेव भगत 44230 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे. इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रामेश्वर उरांव 74380 वोट पाकर 30150 वोटों से विजयी हुए थे. साफ है कि भाजपा-आजसू के बीच वोटों के जबरदस्त बंटवारे के कारण कांग्रेस की जीत आसान हो गई थी. इस बार आजसू भाजपा के साथ है, जबकि बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो का भी भाजपा में विलय हो चुका है.
पूर्व कृषि मंत्री की सीट कांग्रेस के लिए कठिन
झारखंड में 2019 के मुकाबले 2024 की बदली राजनीतिक परिस्थितियों में जरमुंडी विधानसभा सीट भी कांग्रेस के लिए कांटे की टक्कर वाली सीटों में से एक नजर आ रही है. 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी के मजबूत महागठबंधन के बावजूद बादल पत्रलेख महज 3099 वोटों से जीत हासिल कर पाए थे. तब बीजेपी या कहें एनडीए बिखरी हुई थी. ऐसे में पूर्व कृषि मंत्री बादल पत्रलेख के लिए इस बार विजय रथ पर सवार होना आसान नहीं लग रहा है.
2019 में जरमुंडी विधानसभा सीट से बादल पत्रलेख को 52507 वोट मिले थे जबकि भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार देवेंद्र कुमार को 49408 वोट मिले थे. यहां गौर करने वाली बात यह है कि बाबूलाल मरांडी की पार्टी तत्कालीन झारखंड विकास मोर्चा के उम्मीदवार संजय कुमार को 9242 वोट मिले थे जबकि निर्दलीय फूल कुमार को 17313 वोट मिले थे. आज की तारीख में झारखंड विकास मोर्चा का भारतीय जनता पार्टी में विलय हो चुका है और बाबूलाल मरांडी प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष हैं. आजसू भी भाजपा के साथ है, ऐसे में जरमुंडी विधानसभा सीट से बादल पत्रलेख की जीत इस बार आसान नहीं दिख रही है.
अंबा प्रसाद को करनी पड़ेगी मेहनत
बड़कागांव विधानसभा के पिछले तीन बार के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो नजर आएगा कि यह सीट कांग्रेस की सुरक्षित विधानसभा सीटों में से एक है क्योंकि पिछले तीन विधानसभा चुनाव/उपचुनाव में एक ही परिवार ने जीत दर्ज की है. बड़कागांव विधानसभा सीट पर पहले योगेंद्र साव, फिर निर्मला देवी और फिर अंबा प्रसाद ने कांग्रेस का परचम लहराया है.
हालांकि, 2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि भाजपा और आजसू के बीच दरार और गठबंधन टूटने की वजह से अंबा प्रसाद की जीत बेहद आसान हो गई. तब कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर अंबा प्रसाद ने 98862 वोट हासिल किए थे और आजसू पार्टी के उम्मीदवार रोशनलाल चौधरी (67348 वोट) को 31514 वोटों से हराया था. इस सीट पर तब भाजपा उम्मीदवार के तौर पर लोकनाथ महतो को 31761 और जेवीएम उम्मीदवार दुर्गाचरण प्रसाद को 3347 वोट मिले थे.
जगरनाथपुर सीट पर मुश्किल में कांग्रेस
2019 के विधानसभा चुनाव में पश्चिमी सिंहभूम की जगन्नाथपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. उस समय कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के कांग्रेस में होने के साथ-साथ भाजपा, आजसू-झाविमो प्रत्याशियों के बीच वोटों के बंटवारे का लाभ कांग्रेस को मिला था. तब कांग्रेस प्रत्याशी सोनेराम सिंकू ने 32499 वोट पाकर झाविमो के मंगल सिंह बोबोंगा को 11606 वोटों से हराया था. तब मंगल सिंह बोबोंगा को 20893 वोट मिले थे, जबकि भाजपा प्रत्याशी सुधीर कुमार सुंडी को 16450 और आजसू प्रत्याशी मंगल सिंह सुरेन को 14222 वोट मिले थे. आंकड़े बताते हैं कि वोटों के बंटवारे के कारण कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हुई थी. फिलहाल कोड़ा दंपती भाजपा में हैं, आजसू एनडीए का हिस्सा है और झाविमो का भाजपा में विलय हो चुका है.
खिजरी सीट का भी बदल सकता है नतीजा
जिन छह विजयी सीटों पर कांग्रेस को मिशन 18 पूरा करने में दिक्कत आ सकती है, उनमें रांची की खिजरी विधानसभा सीट भी शामिल है. 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यह सीट भाजपा से छीनी थी. तब सत्ता विरोधी लहर, आजसू से गठबंधन न हो पाने और बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो प्रजातांत्रिक के उम्मीदवार के कारण भाजपा के मौजूदा विधायक रामकुमार पाहन को कांग्रेस उम्मीदवार राजेश कच्छप के हाथों 5469 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था.
तब राजेश कच्छप को 83829 वोट मिले थे जबकि रामकुमार पाहन को 78360 वोट मिले थे. यहां आजसू उम्मीदवार रामधन बेदिया 29091 वोट पाने में सफल रहे थे जबकि बाबूलाल की पार्टी झाविमो उम्मीदवार अंतु तिर्की को भी छह हजार से अधिक वोट मिले थे. इस सीट पर कांग्रेस के लिए राहत की बात सिर्फ इतनी है कि पिछले लोकसभा चुनाव में इस विधानसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार यशस्विनी सहाय को बढ़त मिली थी.
बेहद कम वोटों से सिमडेगा जीती थी कांग्रेस
कांग्रेस की सिटिंग सीटों में सिमडेगा सीट भी ऐसी सीट है जहां इस बार कांग्रेस की जीत आसान नहीं दिख रही है. 2019 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस उम्मीदवार भूषण बाड़ा महज 285 वोटों से जीत पाए थे. तब भूषण बाड़ा को 60651 वोट मिले थे. उनके निकटतम प्रतिद्वंदी बीजेपी के श्रद्धानंद बेसरा को 60366 और झारखंड पार्टी के रेजी डुंगडुंग को 10753 वोट मिले थे. यहां से तब बाबूलाल मरांडी ने जेवीएम का सिंबल मोहन बड़ाइक को दिया था और उन्हें 2137 वोट मिले थे.
मुंगेरीलाल के हसीन सपने देख रही है कांग्रेस - भाजपा
2019 में कांग्रेस को मिली सभी सीटों और दूसरे दलों से आए दो विधायकों की सीटों को जीतने के लिए कांग्रेस नेताओं द्वारा बनाई गई रणनीति को भाजपा मुंगेरीलाल के हसीन सपने बता रही है. भाजपा प्रवक्ता अजय साव कहते हैं कि कांग्रेस और उसके नेताओं को मुंगेरीलाल के हसीन सपने देखने से कोई नहीं रोक सकता. उन्होंने कहा कि जनता कांग्रेस विधायकों और महागठबंधन से तंग आ चुकी है और जनता उन्हें सबक सिखाएगी.
भाजपा अपनी चिंता करे - कांग्रेस
झारखंड में किसी भी तरह से 18 विधानसभा सीटें जीतने के कांग्रेस के दावे को भाजपा द्वारा मुंगेरीलाल का हसीन सपना बताए जाने पर कांग्रेस नेताओं ने कहा कि भाजपा को अपनी चिंता करनी चाहिए कि उनका मिशन फिफ्टी मिशन फिफ्टीन में न बदल जाए. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता जगदीश साहू ने कहा कि जिस तरह से महागठबंधन सरकार ने जनता की सेवा की है, इस बार हम 2019 से भी ज्यादा सीटें जीतेंगे और फिर से सरकार बनाएंगे. इस बीच प्रदेश मीडिया प्रभारी राकेश सिन्हा ने कहा कि हमें राज्य की जनता पर भरोसा है और भाजपा को ईवीएम पर भरोसा है. राकेश सिन्हा ने कहा कि पहले भाजपा अपनी 2019 की जीती हुई सीटें बचा ले, उसके बाद भाजपा कांग्रेस की बात करे.
कांग्रेस के मिशन 18 से महागठबंधन को फायदा -झामुमो
कांग्रेस के मिशन 18 को उत्साहवर्धक बताते हुए सहयोगी झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय ने कहा कि अंतत: इसका लाभ महागठबंधन को मिलेगा. मनोज पांडेय ने कहा कि उनकी पार्टी ने भी पिछले चुनाव की तुलना में इस बार अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है.
यह भी पढ़ें: