जबलपुर। मनमाने तरीके से अनिर्वाय सेवानिवृत्ति दिये जाने के मामले में दायर याचिका पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. हाईकोर्ट जस्टिस विवेक जैन ने पाया कि संवीक्षा सेवा समिति ने निर्धारित नियमों का पालन नहीं किया. एकलपीठ ने अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश को निरस्त करते हुए याचिकाकर्ता को 50 प्रतिशत वेतन भुगतान के आदेश जारी किए हैं.
अनुशंसा पर दे दी अनिवार्य सेवानिृत्ति
सतना निवासी दीपक वाजपेयी की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया कि सामान्य न्याय तथा नि:शक्त कल्याण विभाग ने उसे साल 2020 में अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी. उसके पूरे सेवाकाल में अनधिकृत रूप से कार्य में अनुपस्थित रहने के संबंध में सिर्फ चेतावनी दर्ज है. उसे बाद में नियमित कर दिया गया. विभाग में साल 1996 में वह भृत्य के रूप में पदस्थ हुआ था. उसे साल 2016 में सहायक ग्रेड 3 में पदोन्नति प्रदान की गयी. इसके बाद साल 2020 में संवीक्षा सेवा समिति की अनुशंसा पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई.
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सरकार ने अपने ही बनाए नियमों का पालन नहीं किया
याचिका में ये भी कहा गया कि समिति ने उसके पूरे सेवा काल का आकलन नहीं किया. वहीं, सरकार की तरफ से बताया गया कि अनधिकृत रूप से अनुपस्थित रहने के कारण याचिकाकर्ता को सेवा से पृथक किया गया है. अनधिकृत छुट्टियों को इसलिए नियमित किया गया था कि उसकी सेवा पुस्तिका में व्यवधान नहीं आए. एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि सरकार के नियम अनुसार 5 साल की पूर्व अवधि में पदोन्नति पाने वाले कर्मचारियों को सामान्यतः अनिवार्य सेवानिवृत्ति प्रदान नहीं की जानी चाहिए. इसके अलावा पिछले दो सालों में उसकी एसीआर ग्रेडिंग कम से कम 2 नहीं होनी चाहिये. एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि नियमों का पालन नहीं करते हुए याचिकाकर्ता को अनिर्वाय सेवानिवृत्ति प्रदान की गयी.