गोपालगंजः आज हम ऐसे शख्स के बारे में बात करने जा रहे हैं, जो कभी कमांडो बनने का सपना सजाए रखे थे. लेकिन 12 साल पहले एक हादसा ने सबकुछ बदल दिया. हादसा के बाद शारीरिक रूप से दिव्यांग हो गए. कभी जिंदगी को खत्म करने की सोच रहे थे लेकिन फिर से दोबारा हिम्मत कर जीवन जीने की सोची. आज बेड से नहीं उठ पाते हैं लेकिन गांव समाज इनका कद ऊंचा है.
बच्चों को पढ़ाई के साथ साथ गीता उपदेश: हम गोपालगंज के रमेश कुमार यादव के बारे में बात कर रहे हैं. मूल रूप से थावे प्रखण्ड के विदेशी टोला गांव में रहते हैं. बताते हैं कि वे 16 साल के थे, तब हादसे का शिकार हो गए थे. हादसे में शारीरिक रूप से दिव्यांग हो गए. कोई काम करने लायक नहीं रहे. दिन-रात बिछावन पर लेटे रहते हैं और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते हैं. रमेश बच्चों कक्षा के सिलेबस के साथ साथ गीता उपदेश भी देते हैं. ट्यूशन में 80 से 100 छात्र-छात्राएं हैं जिसमें 50 से ज्यादा फ्री में पढ़ने वाले हैं.
"जब शारीरिक रूप से दिव्यांग हुए और कमर के निचला हिस्सा काम करना बंद कर दिया तो मैं एक ही जगह पर लेटा रहता था. यह काफी पीड़ा दायक थी. इसके अलावा मेरे मन में कई ऐसे ख्याल आने लगे. मेरा जीवन मुझे बोझ बनने लगा. कई बार मैं खुद को खत्म करना चाहा लेकिन हिम्मत नहीं हुई. इसी बीच ख्याल आया कि इस जीवन को यूंही व्यर्थ नहीं होने दूंगा. पूरा जीवन किसी का भविष्य बनाने में लगा दूंगा." -रमेश कुमार यादव
सेना में जाने का थ सपनाः विदेशी टोला गांव निवासी शिवनारायण यादव के बेटा रमेश कुमार यादव दो भाई और एक बहन में सबसे छोटा हैं. बचपन से काफी तेज थे. रमेश की इच्छा थी कि वह बड़ा होकर सेना का जवान बनकर देश की सेवा करें, लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था. रमेश बताते हैं कि 2012 में बाइक से किसी शादी में शामिल होने गए थे, लेकिन सुबह पढ़ाई न छूट जाए इसको लेकर रात में ही बाइक से अपने घर के लिए निकल पड़े थे.
हादसे में टूट गयी स्पाइनलः रास्ते में ही सड़क हादसा हो गया. बाइक हादसे में वे सड़क किनारे गड्ढे में गिर गए और उनके ऊपर साथ में मौजूद अन्य साथ गिर गए. इससे उनकी स्पाइनल टूट गई. 15 से 20 लाख रुपए खर्च होने के बावजूद रमेश ठीक नहीं हो सके. रमेश के दोनों पैर तभी से निष्क्रिय है. कमर के नीचे का हिस्सा काम करना बंद कर दिया. बावजूद उन्होंने अपनी अक्षमता को खुद पर हावी नहीं होने दिया.
समाज सेवा का जज्बा बरकरारः समाज के लिए काम करने का जज्बा हम नहीं हुआ. दिव्यांग, गरीब, बेसहारा, विधवा माताओं के बच्चों को शिक्षित कर मुख्यधारा में लाने का बीड़ा उठाया. रमेश बताते हैं कि उनका सपना तो पूरा नहीं हुआ लेकिन दूसरे का सपना पूरा कराने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. इसी सोच के साथ छोटे छोटे बच्चो को बुलाकर पढ़ाना शुरू किया. रमेश अपनी शारीरिक चुनौतियों के बावजूद, शिक्षा के महत्व को गहराई से समझा.
"शिक्षा ही एक व्यक्ति को सशक्त बना सकती है. समाज में उसका स्थान सुनिश्चित कर सकती है. इसी सोच के साथ गांव के बच्चों को शिक्षित करने की ठानी. एक छोटी सी पहल से शुरुआत की और धीरे-धीरे यह मुहिम बड़े पैमाने पर फैल गई. गांव में ही एक छोटा कोचिंग खोला. बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया. केवल बच्चों को पढ़ाई-लिखाई बल्कि उन्हें जीवन के मूल्यों से भी अवगत कराया. श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान भी दे रहे हैं." -रमेश कुमार यादव
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